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संध्या तिवारी की लघुकथाएँ

संध्या तिवारी की लघुकथाएँ

मुझे  फैक्ट्री के सारे मुलाजिम हमेशा ही फैक्ट्री में बजने बाले हूटर के गुलाम सरीखे दिखते थे। हालांकि ये सब नियम से नहाते-धोते ,खाते-पीते थे, लेकिन इनके जीवन में स्फूर्ति न थी। एक यन्त्रवत जीवन यापन था। एक अनकही यन्त्रणा थी।

एक- काला फागुन

मौसम की अंँगनाई में बसन्त दस्तक दे रहा था। टेसू फूल उठे थे। फागुनाहट के जादू से बंधे चिरइया-चुरुगुनी बौराये फिर रहे थे, तो उसकी कौन बिसात।  आखिर उसकी देह की देहरी पर भी तो बसन्त कब से सिर पटक रहा था, लेकिन वह थी, कि लोक लाज के भय से  द्वार ही नहीं खोल रही, लेकिन फागुन की ऊभ-चूभ ने ऐसा षड़यन्त्र रचा कि वह सुध-बुध  खो बैठी।

उसका सारा वज़ूद 'मन-मिर्ज़ा तन-साहिबा' हो  उठा ।

'तन साहिबा' गुलाल भरी मुठ्ठियाँ लिये उसके दरवज्जे उझकी, मन ही मन हुलस कर उसने अपने 'मन  मिर्ज़ा ' को रंग दिया, लेकिन दरवज्जे के भीतर केवल मिर्जा ही न था । एक पूरी दुनिया थी। दक़ियानूसी दुनिया। जिसने देखा एक लड़की को एक लड़के पर रंग ड़ालते हुए।

" ...अरे ! कैसा मर्द है रे तू , लानत है तुझ पर। दो कौड़ी की छोरी तुझे रंग गई और तू बैठा-बैठा देखता रहा, क्यों रे ? तूने क्या चूड़ियाँ पहन रखी है... लड़की है! तो लड़की की तरह रहे…,

अपनी बहनों, भाभियों, सहेलियों से खेले न कि लड़कों से रंग खेलेगी… अब तो इस दुस्साहसी लड़की के गालों पर गाढ़ा लाल 'पोटास' लगना ही चाहिये! आखिर उसे भी तो  याद रहे ' आग से खेलने' का नतीजा...।"

दुनिया ने लड़के को मर्द होने के लिये धिक्कारा...

'पोटास' और साबुन का ऐसा केमिकल रिएक्शन कि पूरा चेहरा झुलस गया ।

साथ ही झुलस गया उसका फागुन। सूख गये टेसू। आ गया पतझड़। खो गया मिर्ज़ा। मिट गयी साहिबा । कोई दुनिया का सदक़ा तो उतारो...।

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दो- हूटर

मुझे  फैक्ट्री के सारे मुलाजिम हमेशा ही फैक्ट्री में बजने बाले हूटर के गुलाम सरीखे दिखते थे। हालांकि ये सब नियम से नहाते-धोते ,खाते-पीते थे, लेकिन इनके जीवन में स्फूर्ति न थी। एक यन्त्रवत जीवन यापन था। एक अनकही यन्त्रणा थी।

 सबेरे पांच बजे के हूटर पर मन हो या न हो बिस्तर छोड़ देना। सात बजे के हूटर पर टिफिन का झोला साइकिल में लगाये, साढ़े सात के हूटर पर फैक्ट्री गेट के अन्दर आई कार्ड पंच करने से लेकर, इस कैदखाने से छूटने की शाम सात बजे तक के हूटर की थका देने वाली  अविराम प्रतीक्षा, फैक्ट्री में काम करने वाले  हर कर्मचारी के हिस्से की दिनचर्या थी।

नापसंदगी भी कभी-कभी जीवन का अभिन्न अंग बन जाती है। शादी के बाद मेरा जीवन भी हूटराधीन था।

‘हूटर के दास पति की दासी अर्थात दासनुदासी।’

 एक दिन हूटर की आवाज़ पर वह उठा, उस दिन उसका चेहरा जल्दी में नहीं लग रहा था, हां कुछ-कुछ चोर निगाहों से मुझे जरूर देख रहा था।

    मैने टिफिन दिया। उसने टिफिन लेते हुये अपनी अंगुली मुझसे न छू जाये इसका भरसक प्रयत्न किया।

     मैने नोटिस किया लेकिन, ‘किसी अशुभ विचार से कहीं पल्ला न छू जाये इस डर से पल्ला झाड लिया।’

वह किसी परकीया  का हाथ पकड़े इस हूटर की परिधि से कहीं बाहर चला गया था ।

और मैं, दासानुदासी हूटर की गुलामी करती, आज भी सुबह के पांच बजे के हूटर पर बिस्तर छोड़कर शाम के सात बजे के हूटर पर दरवाजे की कुन्डी खोल हर आहट पर ऐसे कान लगाये रहती हूँ जैसे पूरे शरीर में कान ही कान उग आये हो।

मगर सुनाई देती है तो, केवल सात, सवा सात, साढ़े सात के हूटर की आवाज़। जो रोज मुझे 'हूट' करती है, और मैं इसका कुछ नहीं कर पाती।

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रचनाकार परिचय

संध्या तिवारी

ईमेल : sandhyat70@gmail.com

निवास : पीलीभीत (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 15 अक्टूबर
जन्मस्थान- शाहजहांपुर (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (हिंदी एवं संस्कृत), बी.एड, पीएच०डी०
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
लेखन विधाएँ- लघुकथा, कहानी, कविता, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रावृत्त, लेख, शोधपरक लेख आदि
प्रकाशन- राजा नंगा है (ई-बुक संग्रह), तत: किम, अंधेरा उबालना है (लघुकथा संग्रह), शेड्स (कथेतर गद्य)
संपादन- अविराम साहित्यिकी (त्रैमासिक पत्रिका), कॉफ़ी हाउस किताब (विविध विधा रचना संग्रह)
सम्मान- दिशा प्रकाशन द्वारा 'दिशा सम्मान', हिंदी चेतना पत्रिका, कनाडा द्वारा 'हिंदी चेतना सम्मान' तथा जैमिनी सम्मान,
प्रतिलिपि पत्र सम्मान- 2016, शब्दनिष्ठा समीक्षा सम्मान- 2020, समकालीन स्वर्ण जयंती सम्मान लघुकथा प्रथम पुरस्कार
'किस्सा कोताह' त्रैमासिक पत्रिका की ओर से लघुकथा संग्रह 'अँधेरा उबालना है' को 'कृति सम्मान', आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र लघुकथा प्रतियोगिता सम्मान- 2022, प्रज्ञा वैश्विक लघुकथा विशिष्ट सेवी सम्मान- 2023
सम्पर्क- ठेका चौकी महिला थाना के सामने, निकट सलोनी हाॅस्पिटल, यशवन्तरी रोड़, पीलीभीत (उ०प्र०)- 262001