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संदीप तोमर की लघुकथाएँ

संदीप तोमर की लघुकथाएँ

बची हुई सिगरेट में सुट्टा खींच वह गैस को मंदा कर दूसरे कमरे की ओर बढ़ा। मोबाइल स्पीकर पर स्वर उभरा,“दीपक! जानते हो मैं हमेशा ऐसे प्रेमी की कामना करती थी जो सिगरेट, शराब, माँस-मछ्ली सबसे दूर हो, तुम कितने अच्छे हो, जो आज के जमाने में इन सबसे दूर हो।”

लघुकथा- एक 

चरित्र

पहला पैग बनाकर दो सिप ले उसने सिगरेट सुलगाई और घड़ी को देखा, उसके दोस्त के आने में अभी वक़्त था। चिकन को मेरीनेट करने की गरज से उसने पहले ही तैयारी कर रखी थी। मसाले इत्यादि भी सब तैयार थे। किचन में ही ऐश ट्रे पर सिगरेट को रख, उसने गैस पर कढ़ाई को रख दिया। अभी उसने दो सिप और लिए ही थे कि उसका मोबाइल बज उठा। कॉल उसकी प्रेमिका का था। प्रेमिका के संग बातचीत में मशगूल होने की वजह से उसका ध्यान ऐश ट्रे पर रखी सिगरेट पर गया जो आधे से ज्यादा जल चुकी थी। उसने एक झटके में गिलास खाली किया, सिगरेट को उसने उँगलियों के बीच फंसाया और एक लंबा कश लिया, आवाज कुछ ऐसी कि मोबाइल की दूसरी तरफ भी आवाज को साफ-साफ सुना जा सकता था। उसे एक बारगी अपनी गलती का अहसास हुआ, दूसरे पल उसका ध्यान कढ़ाई पर केन्द्रित हो गया।

प्रेमिका ने सवाल किया,“दीपक! तुम शराब पीते हो?”

वह हड़बड़ाया, उसकी निगाह अभी-अभी खाली हुए गिलास पर गयी। उसने जवाब दिया, “शराब और मैं! मेरे पिताजी का गुस्सा जानती हो ना?”

“फिर तो तुम माँस-मच्छी भी नहीं खाते होंगे?”

उसे याद आया पिछले ही महीने कैसे उसकी प्रेमिका रेस्त्रों के मेन्यू-कार्ड में नॉनवेज लिखा हुआ देखकर उसे वहाँ से उठाकर ले आई थी। अब वह खुद पर बौखलाने की स्थिति में था। उसने माँस-मच्छी की बात को छुपाने का मन बनाया। करछी को कढ़ाई में घुमाते हुए उसने जवाब दिया-“दो साल पहले सब छोड़ दिया।”

बची हुई सिगरेट में सुट्टा खींच वह गैस को मंदा कर दूसरे कमरे की ओर बढ़ा। मोबाइल स्पीकर पर स्वर उभरा,“दीपक! जानते हो मैं हमेशा ऐसे प्रेमी की कामना करती थी जो सिगरेट, शराब, माँस-मछ्ली सबसे दूर हो, तुम कितने अच्छे हो, जो आज के जमाने में इन सबसे दूर हो।”

उसने अपना पसंदीदा गोल्डन कश लेने का विचार छोड़, बची हुई सिगरेट को फर्श पर फेंक पैर से मसलने का विचार बनाया और अगले ही पल वह जलती सिगरेट को छोड़ खाली गिलास में दूसरा पैग डालने के लिए आगे बढ़ गया।  

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लघुकथा- दो 

मिल्कियत

"कहाँ घुसे चले आ रहे हो?” सरकारी शौचालय के बाहर खड़े जमादार ने अंदर घुसते हुए भद्र व्यक्ति को रोकते हुए कहा।

"हाजत लगी है।"भद्र पुरुष ने जवाब दिया।

"तुम ऐसे चुपचाप नहीं जा सकते।" जमादार प्रत्युत्तर में बोला।

"अरे भाई! हाजत क्या ढिंढोरा पीटकर जाऊँ? अजीब बात करते हो।"भद्र पुरुष झुंझलाया।

"मेरे कहने का मलतब है फोकट में नहीं जा सकते।"

"क्यों भाई, ये सरकारी शौचालय नहीं है? क्या ये किसी की मिल्कियत है।"

"वह सब हमें नहीं मालूम, सूबे के हाकिम का आदेश है, आज से हाजत का दस रुपया देना होगा। खुल्ला दस का नोट हो तो हाथ पर रखो वर्ना दफा हो जाओ।"

भद्र पुरुष का मरोड़ के मारे बुरा हाल था। एक हाथ से पेट पकड़ वह दूसरे हाथ से जेब टटोलने लगा।

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लघुकथा- तीन 

आओ संवाद संवाद खेले

पहला दरवेश,“गैस कनेक्शन आधार से जुड़वा वरना गैस बन्द।”

दूसरा दरवेश, "बैंक एकाउंट आधार से जुड़वा वरना एकाउंट बंद।"

तीसरा दरवेश,“शादी का सर्टिफिकेट आधार से जुड़वा वरना शादी रदद्।"

चौथा दरवेश-"मोबाइल नंबर आधार से जुड़वा वरना...।"

पहला दरवेश, "अबे सुन, ये जो कपडे पहन रहा है ना इन पर एक चिप लगेगी, उसे भी आधार से जोड़ा जाएगा। अगर आधार से नही जुड़ा होगा तो पुलिस कपडे उतरवा लेगी।"

दूसरा दरवेश-"क्या जांघिया भी?"

पहला दरवेश-"अबे हाँ।"

दूसरा दरवेश-"तुझे कैसे पता।"

पहला दरवेश-वित्त मंत्रालय में अपना साथी काम करता है, उसी ने बताया।"

दूसरा, तीसरा और चौथा दरवेश-"साला कल से जांघिया पहनना ही बंद।"

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लघुकथा- चार  

जनहित

एक मास्टर था, दूसरा वैज्ञानिक। दोनो ही अलमस्त। पहले ने मास्टरी छोड़ी तो दूसरे ने वैज्ञानिक के पद से इस्तीफा दे दिया। दोनो ही आला दर्जे के फक्कड़। वैज्ञानिक महोदय नई खोज का जुनून पाले रहते तो मास्टर साहब उनके लिए फंड का जुगाड़ लगाते।

एक शाम को वैज्ञानिक महोदय मास्टर साहब के पास आये, बोले-" एक जबरदस्त खोज होने वाला है। एयर प्रेशर से टॉयलेट साफ करने का सूत्र हाथ लगा है। सैद्धान्तिक तौर पर कामयाबी मिल गयी। बस दो चीजों का इंतज़ाम करना है, एक सिलेंडर और दूसरा एक कमोड। लोहे का खाँचा बनाने में, डाई बनाने में बड़ा खर्च आएगा। कुछ जुगाड़ लगाइये, ताकि इस काम को अंजाम दिया जा सके।"

मास्टर साहब ने उन्हें अपने पुराने से स्कूटर पर बैठाया और रेलवे के ट्रेक पर ले आए और एक बॉगी के टॉयलेट में ले जाकर बोले-" इससे काम चलेगा?"

"हाँ काम तो चलेगा लेकिन..." वैज्ञानिक ने मानो कुछ कहना चाहा।

“फिर ठीक है।" Bकहकर मास्टर साहब ने कमोड उखाड़ने के लिए बारी से अभी पहला वार ही किया था कि रेलवे का चौकीदार आ धमका। आवाज सुन उसने दोनो को बोगी से उतारा और गरजकर बोला,“चोरी करते हो। अभी तुम्हें ठीक करता हूँ।”

वैज्ञानिक साहब को प्रोजेक्ट जेल में सड़ता नजर आया लेकिन मास्टर साहब ने बात संभाली," देखिये कोतवाल साहब, हम ये चोरी देश हित में कर रहे हैं। ये बहुत बड़े वैज्ञानिक हैं। अपने प्रयोग से कम पानी से धोने और साफ करने की सुविधा देने वाले हैं। आपके सहयोग से ये सब संभव हो सकता है। देश आपका ऋणी रहेगा।"

मास्टर साहब ने सौ का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढ़ाकर पूरी योजना समझा दी।

चौकीदार को खुद को कोतवाल सुनना बेहद अच्छा लगा। उसने सौ का नोट अपने खाकी कोट की जेब में ठूंसते हुए थोड़ा डपटने के लहजे में कहा,“ठीक है,ठीक है। लेकिन खबरदार! इस कमोड का उपयोग जनहित में ही होना चाहिए।"

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रचनाकार परिचय

सन्दीप तोमर

ईमेल : gangdhari.sandy@gmail.com

निवास : नई दिल्ली

जन्मतिथि- जून 1975
जन्म स्थान- खतौली (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- स्नातकोत्तर (गणित, समाजशास्त्र, भूगोल), एम.फिल. (शिक्षाशास्त्र) पी.एच.डी. शोधरत
सम्प्रति- अध्यापन
प्रकाशन- 4 कविता संग्रह , 4 उपन्यास, 2 कहानी संग्रह , एक लघुकथा संग्रह, एक आलेख संग्रह सहित आत्मकथा प्रकाशित। 
पत्र-पत्रिकाओं में सतत लेखन।
सम्पर्क- ड़ी 2/1 जीवन पार्क, 
उत्तम नगर नई दिल्ली 110059
मोबाइल- 8377875009