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सामाजिक संवेदनाओं से पूरित बेहतरीन लघुकथाएँ-डॉ० सत्यनारायण सत्य

सामाजिक संवेदनाओं से पूरित बेहतरीन लघुकथाएँ-डॉ० सत्यनारायण सत्य

समीक्ष्य पुस्तक- लघुकथा कौमुदी
रचनाकार- शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'
प्रकाशक- साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर
संस्करण- प्रथम, 2022
पृष्ठ संख्या-112
मूल्य- 200 रुपए

लघुकथाएँ वर्तमान दौर में अपने तथ्य और शिल्प की दृष्टि से सबसे लोकप्रिय विधा मानी जाती है। कम शब्दों में अत्यंत प्रभावी बात को संप्रेषित करने का जो ठोस माध्यम होता है, वह लघुकथाओं में देखा जा सकता है। क्योंकि इन दिनों समय बहुत तेजी से बदल रहा है, पल-पल पर लोगों को ऐसी-वैसी घटनाओं से रूबरू होने का मौका मिलता है, जो उनके हृदय पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं, ऐसी घटनाओं को ही साहित्यकार अपने भावों को सम्मिलित करते हुए, बहुत कम शब्दों का प्रयोग कर, पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है और इस प्रभावपूर्ण विधा को ही लघुकथा कहा जाता है।
लघुकथाएँ आज की व्यस्ततम जीवनशैली में न सिर्फ पाठकों को प्रभावित करती है बल्कि उनके दिल-दिमाग पर अपना गहरा असर भी छोड़ती हैं। पिछले दिनों भीलवाड़ा निवासी एक संवेदनशील रचनाकार शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' की पुस्तक लघुकथा कौमुदी मेरे अवलोकन में आई थी, जिनकी लघुकथाएँ पढ़कर मुझे असीम आनंद की अनुभूति हुई। सुकून की बात यह है कि शकुन जी पिछले कई समय से लिखती आ रही हैं। 'दर्द की परछाइयांँ', 'बाकी रहे निशान', 'कांच के रिश्ते', 'भावों की उर्मियाँ', 'यादों के तटबन्ध' पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने दोहा, कुंडलिया और गीत-कविताओं का सुनहरा संसार रचा है, पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है।

इस पुस्तक में उन्होंने लघुकथाओं पर अपनी कलम चलाई है, जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी रही हैं। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित 112 पृष्ठ में यह पुस्तक, लघुकथाओं के चहेते पाठकों को ख़ूब पसंद आएगी। आत्मकथ्य में वह लिखती भी हैं, गद्य साहित्य के अंतर्गत लघुकथा ही सबसे कम शब्दों में निरूपित होकर पाठक के हृदय पटल पर अपनी छाप छोड़ने में सफल होती है इसलिए 'लघुकथा कौमुदी' एक ऐसा गुलदस्ता है, जिसमें आपको विविध रूप, रंग और सुगंध के फूलों का परिचय मिलेगा। एक कविता संग्रह, दो दोहा संग्रह और एक कुंडलिया संग्रह लिखने के बाद अब लघुकथाओं के अंतर्गत यह उनकी पहली कृति है। पुस्तक को पढ़ते समय लगता नहीं है कि उन्होंने इसके लेखन में कहीं कोई कोर-कसर छोड़ी है।

'धानी चुनर' एक विधवा बेटी की बहुत मार्मिक कथा है, माँ-बाप अपनी विधवा बेटी को पुनः शादी के बंधनों में बांधना चाहते हैं, घर गृहस्थी बसवाना चाहते हैं, सफेद चुनर से पीली चुनरी ओढ़ाकर विदा करना चाहते हैं पर वह अपने सुहाग को मातृभूमि को समर्पित कर, धानी चुनर में अपने आपको धन्य मानती है। 'भीत' लघुकथा में संवेदनहीनता और संवादहीनता का शिकार हुए माँ-बेटे के रिश्तो की मार्मिक व्यंजना है, जहाँ बेटा-बहू आराम से सो रहे हैं और माँ भूख से तड़प रही है‌‌। 'धौंस' लघुकथा में एक परीक्षा केंद्र की घटना है, जहाँ पर एक ऊँची पहुँच वाला छात्र जो ,अपने पिता की धौंस को लागू करते हुए वीक्षक को धमकाता है और चोरी और सीनाज़ोरी करता है। 'मुर्दे' लघुकथा में सड़क पर हुई दुर्घटना में, जो लोग सहायता के लिए नहीं रुकते हैं, ऐसे मुर्दों पर करारा व्यंग्य किया गया है।

कुल मिलाकर पुस्तक के लगभग आधे पृष्ठ में समाई हुई छोटी-छोटी, सारी लघुकथाएँ भीतर तक प्रभावित करती हैं। संवेदनशील बिंदुओं पर हृदय को झकझोरने में समर्थ हैं तो कई अनुत्तरित प्रश्न ढूँढने की कसक छोड़ जाती हैं।

'सरप्राइज' लघुकथा में एक अकेली बेटी जब घर से बाहर सशक्त बनने के लिए आती है और उसके माता-पिता अचानक उसके कमरे की हालत देखकर दंग रह जाते हैं। ड्रिंक, नॉन वेज और एक लड़का बेटी के आसपास रहता है, यह देखकर माता-पिता ने कह दिया, चलो करो पैकिंग, बहुत बन गई सशक्त।
ऐसे ही हर एक लघुकथा सामाजिक सरोकारों से जुड़ी लगती है। इन लघुकथाओं में समाज की प्रचलित परंपराओं के साथ ही संस्कृति अवमूल्यन, जातीय विषमता, नैतिक अलगाव ,उपभोक्तावाद, भाई-भतीजावाद, संबंधों में असहजता, पारिवारिक बिखराव, स्त्री का बाज़ारीकरण, नए पुराने आर्थिक बदलाव, संवेदन शून्यता, प्रतिशोध की भावना, हिंसा और अहिंसा में उलझता जीवन, उत्कर्ष और प्रभाव की छटपटाहट तथा विभिन्न नैतिक, चारित्रिक और ऐतिहासिक तथ्यों को बहुत गहनता से समाहित किया गया है।

आज की व्यस्ततम जीवन शैली में समय का अभाव सबसे बड़ा अभाव है और ऐसे में साहित्य का लिखना और साहित्य का पढ़ना दोनों ही न्यून होता जा रहा है। ऐसे समय में शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' ने लघुकथाओं पर काम करके बहुत बड़ा काम किया है, जिसमें समाज की वास्तविक तस्वीर को ही नहीं बल्कि बदलते जीवन मूल्यों को भी दिखलाया गया है।

शकुन जी की सभी लघुकथाएँ विविध विषयों को समेटे हुई हैं। सारी की सारी रचनाएँ सरल-सहज और बहुत मधुर भाषा-शैली के साथ लिखी गई हैं। इन सारी रचनाओं में समाज की व्यवस्थाओं पर बारीकी से चित्रण किया गया है और पाठक पढ़ते समय यही महसूस करता है कि यह कहानी उसके आसपास की कहानी है। शायद ऐसा उसने भी अपने जीवन में या अपने आसपास के जीवन में जीवंत देखा हुआ है। यही एक लेखक की खासियत होती है कि वह आपके भावों को, आपके शब्दों को, अपनी रचनाओं में डाल दे, शकुंतला अग्रवाल जी ने यह कार्य बहुत सफलतापूर्वक और सहजता से कर दिया है।

कुल मिलाकर 112 पृष्ठों में सम्मिलित ये 91 लघुकथाएँ आपके और मेरे हृदय को प्रभावित करने में समर्थ प्रतीत होती हैं। सारी की सारी रचनाएँ बहुत मेहनत और प्रभावोत्पादकता के साथ रची गई हैं। अधिकांश मामलों में यह होता है कि लघुकथाएँ किसी हास-परिहास या चुटकुले का एक छोटा-सा स्वरूप बनकर रह जाती हैं और वह पाठक के हृदय को बिंधने में समर्थ नहीं होती पर इस संग्रह की सारी लघुकथाएँ आपको बहुत प्रभावित करेंगी। 'दुआएँ', 'उड़ान', 'सम्मान', 'सशक्तिकरण', 'हवा', 'भविष्य', 'द्वंद्व', 'असलियत', 'दर्शन', 'खून', 'आत्मसंतोष', 'आहुति', 'लावा' जैसे शीर्षक की लघुकथाएँ परिवार, समाज, राष्ट्र और खोखले होते मानवीय रिश्तों का सहज प्रतिबिंब बन जाती हैं।

साहित्यागार एक जाना माना प्रकाशन संस्थान है और इस संस्था से हार्ड बाउंड कवर के साथ सुंदर मुद्रण में छपा यह संकलन न केवल लघुकथाकारों बल्कि लघुकथा के चाहने वाले आमजन को भी समान रूप से प्रभावित करेगा। शकुंतला अग्रवाल जी के लेखन में दीर्घ और सुनहरा भविष्य दृष्टिगोचर होता है। मेरी शुभकामनाएँ कि वे निरंतर साहित्य साधना में जुटी रहें और आम पाठकों को इसी तरह आनंदित करते रहें। मेरी ओर से एक संग्रहणीय तथा पठनीय पुस्तक के लिए शकुन जी को साधुवाद।

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रचनाकार परिचय

सत्यनारायण 'सत्य' 

ईमेल : satyatatela@gmail.com

निवास : भीलवाडा(राजस्थान)

नाम- डॉ० सत्यनारायण सत्य 
संपर्क- समता भवन के पास, रायपुर 
जिला भीलवाड़ा राजस्थान- 311803 
मोबाइल- 9460351881