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राघव शुक्ल के गीत

राघव शुक्ल के गीत

कामनाओं का हवन होगा
यहीं अब चिंतन मनन होगा
भावनाओं के भवन में फिर
प्रेम से भगवद्भजन होगा
यहीं होंगे स्वप्न सब साकार
क्षुब्ध मन में छा गया उल्लास

गीत- एक 

ख़ुश होने के बीसो कारण
हम हैं एक व्यक्ति साधारण

नहीं चाहिए ठाठ राजसी
नहीं चाहिए नौकर चाकर
खाते हैं मेहनत की रोटी
ख़ुश हैं पैसे चार कमाकर
ईश्वर की मर्ज़ी सर माथे
सदा धैर्य को करते धारण

नहीं किसी का बुरा सोचते
करते नहीं बुराई मुख से
कर  लेते  हैं  सदा  दोस्ती
हाथ मिलाते हर सुख दुख से
विपदाएं सम्मुख आतीं जब
करते राम नाम उच्चारण

यदि कोई उपहास करे भी
हँस कर बात टाल देते हैं
अक्सर बिगड़ी हुई बात को
बातों से सम्हाल लेते हैं
क्षमा भाव रखते हैं मन में
क्रोध न करते कभी अकारण

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गीत- दो 

नहीं धूप में साया दिखता
कैसा एक अकेलापन है
कोई तो अपना ले आकर
बहुत अनमना सा ये मन है
हम सा कोई हमें चाहिए
कंधे के भूखे हैं आँसू
आँखों में सूखे हैं आँसू

इन आँखों ने अपने भीतर
तूफ़ानों की गठरी बांधी
बीता कल यूँ है कचोटता
दुख देती अतीत की आँधी
गालों को खरोंच देते हैं
इतने ये रूखे हैं आँसू
आँखों में सूखे हैं आँसू

चाल न कोई हम चल पाए
इस जीवन में समझी सोची
दिल की बात रही दिल में ही
मन ये है इतना संकोची
इसीलिए कुछ बातें मन की
कहने में चूके हैं आँसू
आँखों में सूखे हैं आँसू

लेकिन आज हुआ क्या इनको
भीतर उठती आज हिलोरें
दबा दर्द कुछ ऐसा उभरा
इन नैनों की भीगी कोरें
धीमे धीमे पाँव पलक के
आए अब छू के हैं आँसू
आँखों में सूखे हैं आँसू

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गीत- तीन 

लड़के भी उदास रहते हैं

शायद कोई दोस्त नहीं है
या खालीपन भी खाता है
या ऑफिस की दौड़ भाग है
संडे  देरी  से  आता  है
कुछ तो रात रात जगते हैं
तकिया सीने से चिपकाए
आँखें लाल लाल रहती हैं
गर्लफ्रेंड से धोखा खाए
ऊपर ऊपर मुस्काते हैं
नहीं किसी से दुख कहते हैं
लड़के भी उदास रहते हैं

क्लियर भी इंट्रेंस नहीं है
यूपीएससी निकल न पाया
परसेंटाइल रहता कम है
मेहनत हो जाती है ज़ाया
पॉकेट मनी ख़र्च हो जाती
मगर महीना बाक़ी आधा
अभी उधारी बाक़ी है कुछ
आमदनी कम ख़र्चा ज्यादा
बैक पेपरों की चिंता में
बेचारे क्या क्या सहते हैं
लड़के भी उदास रहते हैं

माँ पापा से दूर रह रहे
ख़ुद ही बना रहे हैं खाना
कॉलेज हॉस्टल या हो ऑफिस
इनको है बस चलते जाना
इयर फोन पर सुनते जाते
दर्द  भरे  नग़मे  गाने हैं
लगता है ये बड़े हो गए
मगर अभी ये बचकाने हैं
अरमानों की चिता जला कर
भीतर ही भीतर दहते हैं
लड़के भी उदास रहते हैं

ये कुमार के दीवाने हैं
सैड पोएट्री पढ़ते जाते
सबकी उल्टी-सीधी सुनते
और दोस्त से गाली खाते
ईश्वर पर है इन्हें भरोसा
कभी-कभी मंदिर जाते हैं
धागे बाँध मनौती करते
अपने मन को बहलाते हैं
इनके सीने में भी दिल है
इनके भी आँसू बहते हैं
लड़के भी उदास रहते हैं

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गीत- चार  

लो लगी दिखने नदी की धार
और देखो बुझ गई है प्यास

कौन चाहे पार जाना अब
मिल गया है जब ठिकाना अब
रेत से मन को मिला आख़िर
भीग जाने का बहाना अब
कल्पना लेने लगी आकार
पुनर्जीवित हो गया विश्वास

कामनाओं का हवन होगा
यहीं अब चिंतन मनन होगा
भावनाओं के भवन में फिर
प्रेम से भगवद्भजन होगा
यहीं होंगे स्वप्न सब साकार
क्षुब्ध मन में छा गया उल्लास

पर्णकुटिया भी बनाई है
फिर यहीं धूनी रमाई है
इधर से उसको पुकारा तो
उधर से आवाज़ आई है
मुक्त मन से ईश का आभार
बाँसुरी सी बज रही हर श्वास

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रचनाकार परिचय

राघव शुक्ल

ईमेल :

निवास : मोहम्मदी (उत्तर प्रदेश)

जन्मस्थान- मोहम्मदी उत्तर प्रदेश
शिक्षा- गणित परास्नातक शिक्षा स्नातक
प्रकाशन- नन्हे नन्हे कदम हमारे
यत्र योगेश्वरः कृष्णो
नैन तुम्हारे विनय पत्रिका
सम्प्रति- अध्यापक बेसिक शिक्षा
मोबाइल- 9956738558