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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

प्रेम: एक सतत यात्रा– अलका मिश्रा

प्रेम: एक सतत यात्रा– अलका मिश्रा

प्रेम केवल एक भावनात्मक अनुभूति नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों से उपजी वह शक्ति है, जो व्यक्ति को उसके सांसारिक रिश्तों से उठाकर परम सत्य की ओर ले जाती है।

प्रेम हमारे जीवन में ऐसे रचा बसा है जैसे पुष्प में सुगंध, किसी बच्चे के जन्म अक्सर प्रेम की परिणति स्वरूप ही होता है और फिर उसके पश्चात जब वह माँ के गर्भ में नौ माह व्यतीत करता है, उस समय भी माँ के प्रेम की आँच में पलकर उन्नत होता है और फिर वाह्य दुनिया में आकर घर परिवार में व्याप्त प्रेम को महसूसते बड़ा होता है। कई शोधों में यह पाया गया है कि जिन बच्चों को बचपन में किसी कारण प्रेम नहीं मिल पाता वो कभी किसी को प्रेम दे भी नहीं पाते और आजीवन अपूर्णता का अनुभव करते हैं। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रेम हमारे जीवन के उत्थान में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रेम केवल एक भावनात्मक अनुभूति नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों से उपजी वह शक्ति है, जो व्यक्ति को उसके सांसारिक रिश्तों से उठाकर परम सत्य की ओर ले जाती है। प्रेम का प्रारंभ प्रिय व्यक्ति से होता है, लेकिन जब यह परिपक्व होता है, तो इसका विस्तार समाज, प्रकृति और अंततः परमात्मा तक हो जाता है। प्रेम की यह यात्रा केवल वाह्य नहीं, बल्कि आंतरिक भी होती है, जिसमें व्यक्ति अपने अहंकार, मोह और भौतिक इच्छाओं को त्यागकर उच्च चेतना की ओर अग्रसर होता है।

प्रेम की शुरुआत सामान्यतः सांसारिक रिश्तों से होती है। माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम, जीवनसाथी के प्रति प्रेम, मित्रों और समाज के प्रति प्रेम – ये सभी प्रेम के प्रारंभिक स्वरूप हैं। यह प्रेम हमें आपसी समझ, सहयोग और करुणा का पाठ पढ़ाता है। लेकिन यह प्रेम यदि केवल भौतिक आकर्षण या स्वार्थ तक सीमित रह जाए, तो यह कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। जब व्यक्ति अपने प्रिय के सुख-दुःख में सहभागी बनता है और निःस्वार्थ भाव से प्रेम करता है, तब वह प्रेम की उच्च अवस्था की ओर बढ़ता है।

जब प्रेम स्वार्थ और अपेक्षाओं से मुक्त हो जाता है, तब वह परोपकार और सेवा का रूप ले लेता है। यही प्रेम आगे चलकर समाज और मानवता के प्रति प्रेम में परिवर्तित हो जाता है। प्रेम जब सीमाओं को लाँघता है, तो वह एक दिव्य रूप धारण कर लेता है।

प्रेम की सर्वोच्च अवस्था तब होती है, जब व्यक्ति सांसारिक प्रेम से आगे बढ़कर परमात्मा से जुड़ने की इच्छा करता है। भक्तों और संतों ने प्रेम को केवल सांसारिक बंधनों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे ईश्वर की भक्ति का माध्यम बनाया। मीरा का प्रेम श्रीकृष्ण के प्रति था, लेकिन वह केवल एक सांसारिक प्रेम नहीं था, बल्कि उसमें भक्ति, समर्पण और आत्मसमर्पण की गहनता थी। तुलसीदास, कबीर, और सूरदास जैसे भक्तों ने प्रेम को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना और इसे एक साधना के रूप में अपनाया।

मेरी दृष्टि में तो प्रेम एक सतत यात्रा है, जो प्रिय व्यक्ति से प्रारंभ होकर परमात्मा तक पहुँचती है। यह यात्रा व्यक्ति को आत्मा की गहराइयों तक ले जाती है, जहाँ वह न केवल स्वयं को पहचानता है, बल्कि ईश्वरीय प्रेम की अनुभूति भी करता है। प्रेम जब केवल व्यक्तिगत सुख तक सीमित न रहकर व्यापकता प्राप्त करता है, तब वह मानवता और ईश्वर की ओर अग्रसर होता है। अतः प्रेम को सीमाओं में बाँधने के बजाय उसे उच्चतम अवस्था तक ले जाने का प्रयास करना ही जीवन की सच्ची सार्थकता है।

अंत में ईश्वर से यही कामना करती हूँ कि आप सभी का जीवन प्रेम से इतना परिपूर्ण हो कि जिसके प्रकाश में आपके साथ सम्पूर्ण मानवता प्रकाशित हो अपने उज्ज्वल स्वरूप को प्राप्त कर सके।

आपकी
अलका

7 Total Review

अनिता रश्मि

21 February 2025

अच्छा संयोजन, उत्तम चयन, बहुत अच्छी रचनाओं से मिलना सुखद! संपादकीय दृष्टिऔर कौशल सराहनीय। प्रेम के उदात्त रूप पर बात रखी गई। खिरनी पढ़ी, कम में अधिक कहती है। अन्य भी प्रेम के रंग में रंगी। लगभग सभी विधा का समावेश। शुक्रिया मेरी कहानी शामिल करने के लिए।

S

Seema Singh

20 February 2025

प्रेम वाकई बड़ी पवित्र अनुभूति है, भावना है.. जिसे कितने सुंदर ढंग से शाब्दिक किया है आपने। इस सारगर्भित संपादकीय के लिए हरेक बधाई अलका जी💐❤️

A

Alka Mishra

20 February 2025

उत्साह वर्धन हेतु सरोज जी , गायत्री जी, सीमा दीदी एवं जिनका नाम नहीं दिख रहा मगर अत्यंत सुंदर शब्दों में मेरा उत्साह बढ़ाया है। आप सभी का हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ।

गायत्री सिंह

15 February 2025

प्रेम को पथ कराल महा, तलवार की धार पे धावनों है । प्रेम अकल्पनीय है ,अकथनीय है लेकिन प्रेम ही समस्त सृष्टि का सार भी है । इस ढाई आखर के प्रेम को व्यक्त करना भी अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है जिसको अल्का मिश्रा ने अपने शब्दों में पिरोने की सुंदर कोशिश की है इस कामयाबी के लिए मेरी बधाई स्वीकार करो।

इस छोटे से सम्पादकीय में आपने प्रेम की सागर सी गहराई , धरती सी व्यापकता, आकाश सी ऊंचाई को समेट लिया है। प्रेम पर कोई क्या, कितना लिखे, जो शब्दातीत, अकथ है। इस दौरे वक्त में जब सर्वत्र हिंसा, विद्वेष, निर्दयता, वैचारिक संकीर्णता औऱ अनाचार व्याप्त है, टैब यह प्रेम, इंसानियत, सौहार्द्र ही भरोसा देता है। ईश्वर को किसने देखा हसि। यह प्रेम ही उस अमूर्त की अनुभूति है। इस घृणा को घृणा से नहीं प्रेम से ही खत्म करना सम्भव है। इतने सुंदर अंक के लिए मेरी हार्दिक शुभेच्छायें सम्मान्या बहन!

15 February 2025

बहुत ही सामयिक ओर आवश्यक पाठ्य सामग्री। नित्यप्रति सघन, भयावह हो रहे आपसी विद्वेष, तंगज़ेहनियत और संवेदनहीनता के दुःपरिवेश में आपके सम्पादकीय का हर शब्द, हर पंक्ति का केंद्रीय भाव प्रेम से परिपूर्ण है। गन्द से गन्द नहीं साफ होती। यह बढ़ती घृणा हमारे परस्पर प्रेम, भाईचारे से ही समाप्त होगी। इस आयोजन के लिये आपअनमोलजी और आपकी टीम को बधाई, हार्दिक शुभेच्छायें

सीमा अग्रवाल

15 February 2025

पूरा लेख ही बहुत सुंदर आख्यान है प्रेम का किंतु चौथा अनुच्छेद बहुत सुंदर है।

सरोज सिंह परिहार

14 February 2025

बहुत सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति

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रचनाकार परिचय

अलका मिश्रा

ईमेल : alkaarjit27@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि-27 जुलाई 1970 
जन्मस्थान-कानपुर (उ० प्र०)
शिक्षा- एम० ए०, एम० फिल० (मनोविज्ञान) तथा विशेष शिक्षा में डिप्लोमा।
सम्प्रति- प्रकाशक ( इरा पब्लिशर्स), काउंसलर एवं कंसलटेंट (संकल्प स्पेशल स्कूल), स्वतंत्र लेखन तथा समाज सेवा
विशेष- सचिव, ख़्वाहिश फ़ाउण्डेशन 
लेखन विधा- ग़ज़ल, नज़्म, गीत, दोहा, क्षणिका, आलेख 
प्रकाशन- बला है इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित
101 महिला ग़ज़लकार, हाइकू व्योम (समवेत संकलन), 'बिन्दु में सिन्धु' (समवेत क्षणिका संकलन), आधुनिक दोहे, कानपुर के कवि (समवेत संकलन) के अलावा देश भर की विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं यथा- अभिनव प्रयास, अनन्तिम, गीत गुंजन, अर्बाबे कलाम, इमकान आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
रेख़्ता, कविता कोष के अलावा अन्य कई प्रतिष्ठित वेब पत्रिकाओं हस्ताक्षर, पुरवाई, अनुभूति आदि में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्पादन- हिज्र-ओ-विसाल (साझा शेरी मजमुआ), इरा मासिक वेब पत्रिका 
प्रसारण/काव्य-पाठ- डी डी उत्तर प्रदेश, के टी वी, न्यूज 18 आदि टी वी चैनलों पर काव्य-पाठ। रेखता सहित देश के प्रतिष्ठित काव्य मंचों पर काव्य-पाठ। 
सम्मान-
साहित्य संगम (साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था तिरोड़ी, बालाघाट मध्य प्रदेश द्वारा साहित्य शशि सम्मान, 2014 
विकासिका (साहित्यिक सामजिक एवं सांस्कृतिक) संस्था कानपुर द्वारा ग़ज़ल को सम्मान, 2014
संत रविदास सेवा समिति, अर्मापुर एस्टेट द्वारा संत रवि दास रत्न, 2015
अजय कपूर फैंस एसोसिएशन द्वारा कविवर सुमन दुबे 2015
काव्यायन साहित्यिक संस्था द्वारा सम्मानित, 2015
तेजस्विनी सम्मान, आगमन साहित्य संस्था, दिल्ली, 2015
अदब की महफ़िल द्वारा महिला दिवस पर सम्मानित, इंदौर, 2018, 2019 एवं 2020
उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2018, 2019, 2021 एवं 2023 में सम्मानित
संपर्क- एच-2/39, कृष्णापुरम
कानपुर-208007 (उत्तर प्रदेश) 
 
मोबाइल- 8574722458