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प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की चौदहवीं कड़ी

प्रगति गुप्ता के उपन्यास 'पूर्णविराम से पहले' की चौदहवीं कड़ी

कविता के अंत तक पहुँचते-पहुँचते दोनों एक-दूसरे का हाथ थामकर न जाने कब तक अपने रिश्ते को महसूस करते रहे। प्रखर ने शिखा की लिखी हुई कविता वाले पन्ने को तह करके अपनी शर्ट की पॉकेट में रख लिया। शिखा को अपनी कविता और प्रखर का दिल एक-दूसरे के बहुत पास महसूस हुए। दोनों एक-दूसरे की कही हुई हर बात को महसूस करके ख़ुद में सहेजते जा रहे थे।

गुज़रते वक़्त के साथ एक रोज़ अचानक शिखा के घर के लैंड्लाइन फोन पर प्रखर का कॉल आया। शिखा की आवाज़ सुनते ही प्रखर ने कहा- "शिखा! तुम बोल रही हो। मैं प्रखर बोल रहा हूँ। कल रात को ही तुम्हारे शहर में आया था। मेरी एक मीटिंग थी। आज दोपहर में फ्री हूँ। तुमसे मिलना चाहता हूँ। क्या तुम मिलने आ पाओगी?"

शादी के इतने दिनों बाद एकाएक प्रखर की आवाज़ सुनकर शिखा बहुत बैचेन हो उठी थी। प्रखर अपना नाम नहीं बताता तब भी वह उसे पहचान जाती। जैसे ही उसने प्रखर कहा, उसकी आवाज़ में एक कंपन-सा दौड़ गया। जब शिखा ने अपनी सहमति दी, तो प्रखर की जान में जान आयी।

प्रखर अपने इस ट्रिप को ज़ाया नहीं होने देना चाहता था। एक-दूसरे से संपर्क टूटे हुए दो साल से ऊपर हो चुका था। प्रखर को हर हाल में शिखा से एक बार मिलना था। शिखा के हामी भरते ही प्रखर की आँखें भर आयी थीं। एक अरसे बाद वह अपनी ज़िंदगी से मिलना चाहता था। दूसरी ओर शिखा भी हरदम साथ चलने वाली प्रखर की सुवास में खो गयी थी।

दोनों ने एक बड़े होटल के रेस्ट्रोरेंट में मिलने का तय किया। प्रखर के साथ उसकी सिक्योरिटी भी थी। शिखा के पहुँचने में थोड़ी देरी हो गई थी। बहुत मुश्किल से उसने स्कूल के समय के बीच में मिलने का तय किया। सबकुछ मैनेज करते-करते शिखा लेट हो ही गई थी। जब शिखा वहाँ पहुँची, उसने प्रखर को इंतज़ार करते हुए पाया। ब्लैक शर्ट व कैमल ब्राउन पेंट्स में प्रखर पहले से बहुत अधिक हैण्डसम व कॉन्फिडेंट दिख रहा था। वह क्रॉस लेग करके बैठा हुआ था। उसके सामने पानी से भरा हुआ गिलास रखा था। प्रखर दोनों हाथों को एक-दूसरे से थाम कर अपने ही ख़यालों में खोया हुआ था। इतने सालों बाद प्रखर को देखकर शिखा के तो आँसू ही बह चले थे।

प्रखर ने जैसे ही शिखा को देखा, उसने उठकर गले लगा लिया। पहले तो शिखा थोड़ा सकुचाई पर वह स्वयं को, प्रखर की बाँहों में समा जाने से रोक नहीं पायी। प्रखर ने थोड़ी देर बाद न चाहते हुए भी शिखा को ख़ुद से अलग करके सामने की कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। जैसे ही शिखा ने अपनी पकड़ को ढीला किया, प्रखर ने उसके दूर जाकर बैठने से पहले पुनः ऐसे थाम लिया, मानो बिछड़ने की पीड़ा फिर से हरी हो गई हो।

प्रखर की आँखों की नमी उसके चेहरे पर आई मुस्कुराहट पर भारी थी। कुछ ऐसा ही हाल शिखा का भी था। दोनों में से कोई भी आँखों में भर आई नमी को छिपा नहीं पाया। प्रखर का चेहरा और आँखें उस समय कुछ ज़्यादा ही बोल रही थीं।

"शिखा! कैसी हो तुम? ख़ुश हो न अपने वैवाहिक जीवन में।" पूछकर प्रखर चुपचाप शिखा की आँखों में खो गया।
"अब यह प्रश्न बेमानी हो गये हैं प्रखर! समीर अच्छे इंसान हैं। मेरा बहुत ख़याल रखते हैं। हम दोनों टीचिंग में ही हैं। तुमने शादी की प्रखर?"
"नहीं की अभी तक पर अब करनी पड़ेगी। अभी तक टालता आ रहा था। माँ-बाऊजी दोनों पीछे पड़े थे। न जाने क्यों दिल में बस एक ही ख़याल था। एक बार तुमसे मिल लूँ। तुम्हें महसूस कर लूँ और मुझे बस यह अहसास हो जाए कि तुम ख़ुश हो। तभी शादी के बारे में सोचूँगा। पर शिखा तुम कभी भी मेरी ज़िंदगी से दूर नहीं जा पाओगी। यह मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ। तुम्हारी जिस कमी को मैंने गुज़रे सालों में महसूस किया है, वो कसक बनकर ठहर गयी है।"

इस बीच प्रखर ने दोनों के लिए उसी कॉफी का ऑर्डर दे दिया। वही कैपिचीनो कॉफी, जो दोनों कॉलेज में पिया करते थे। दोनों की चॉइस आज भी वही थी। ऑर्डर देकर प्रखर ने अपनी बात जारी रखी- "मुझे हमेशा यही लगता रहा कि मैं जो कर रहा हूँ, तुम्हारे लिए कर रहा हूँ। तुम्हारी ख़ुशियों के लिए कर रहा हूँ पर तुम तो मेरी इस यात्रा में पीछे छूट गयी शिखा! मेरी हमेशा से ही जान रही हो, रहोगी और मेरे मरने के बाद ही मेरे साथ जाओगी। चाहता हूँ बहुत ख़ुश रहो हमेशा समीर के साथ। पर मैं कैसे रह पाऊँगा तुम्हारे बिना, नहीं पता।" बोलकर प्रखर कहीं खो गया।

तब शिखा ने कहा- "शादी ज़रूर कर लेना प्रखर! अकेले कैसे रहोगे? मेरे अंदर भी बस गये हो हमेशा के लिए। समीर मेरा वर्तमान है। हमेशा कोशिश की है ख़ुश रहने की पर नहीं जानती क्या लिखा है? तुम्हारे लिए कुछ लिखा था मैंने प्रखर! सुनोगे?" बोलते ही शिखा की आँखें वापस भर आयीं।
"तुम सुना दो शिखा।"
"मैं नहीं सुना पाऊँगी, तुम पढ़ लो प्लीज!" बोलकर शिखा ने वो पन्ना प्रखर को पकड़ा दिया। प्रखर ने पन्ने को अपने हाथ में लेकर कविता को ज्यों ही पढ़ना शुरू किया, दोनों की आँखों से आँसू बरसने लगे-

मुझमें ही तो हो

कुछ इस तरह
मुझमें रहकर मुझसे ही
मिला करते हो तुम
जैसे कोई मेरा ही साया खोकर मिलता हो
घनी रात गुज़रते ही
सूरज की रोशनी तले
ज्यों-ज्यों चढ़ता-उतरता सूरज
सिमट जाता वो साया
मुझमें ही जाकर कहीं
फिर खो जाता उस अंधकार तले
मानो, न मिलने को कभी
हर दिन कुछ ऐसे ही
कभी मुझमें खोकर
तो कभी मेरे साथ-साथ चलकर
महसूस हुआ करते हो तुम
कुछ इस तरह मुझमें रहकर
मुझसे मिला करते हो तुम।

कविता के अंत तक पहुँचते-पहुँचते दोनों एक-दूसरे का हाथ थामकर न जाने कब तक अपने रिश्ते को महसूस करते रहे। प्रखर ने शिखा की लिखी हुई कविता वाले पन्ने को तह करके अपनी शर्ट की पॉकेट में रख लिया। शिखा को अपनी कविता और प्रखर का दिल एक-दूसरे के बहुत पास महसूस हुए। दोनों एक-दूसरे की कही हुई हर बात को महसूस करके ख़ुद में सहेजते जा रहे थे।

उस छोटे-से अंतराल में दोनों के बीच गिनती की बातें हुईं। दोनों नि:शब्द रहकर भी एक-दूजे के प्रेम में सराबोर रहे। बीच-बीच में दोनों कॉफी के मग में चम्मच घुमाते हुए उसमें बनती-बिगड़ती लहरों के साथ गुज़रे समय के वाक़यों को बार-बार दोहरा कर खो रहे थे। दोनों के बीच शब्द नहीं थे पर बहुत सारी जीये-सी धड़कनों का अंबार इकट्ठा कर लिया था उन्होंने। उस रोज़ एक-दूसरे की कमी से जुड़ा एक ही अहसास था, जो बार-बार दोनों की नम होती आँखों से झाँक रहा था।

जब दोनों ने निकलने का मानस बनाया तब प्रखर ने शिखा से थोड़ी देर और रुकने को कहा। उस रोज़ वह उन पलों को थोड़ा-सा और समेटना चाहता था। उसकी इस ख़्वाहिश को हर कीमत पर शिखा ख़ुद भी पूरा करना चाहती थी पर हर बात का समय बहुत पहले से ही तय था।

प्रखर की मीटिंग्स थी और शिखा को समय पर घर पहुँचना था। जाने का मन न होते हुए भी दोनों ने एक-दूसरे से जब गले मिलकर विदा ली, दोनों की आँखें फिर से भर आयीं। दोनों ने एक-दूसरे के हाथ को कसकर थाम रखा था। दोनों को लग रहा था कि अलग होते ही कहीं जान न निकल जाए। इस मीटिंग की कीमत शिखा और प्रखर ही जानते थे।

प्रखर के पास शिखा का जो नंबर था, उसने किसी कॉमन मित्र से लिया था। शायद उसने भी इस मीटिंग के बाद नंबर को डिलीट कर दिया था क्योंकि इसके बाद दोनों ही कभी न मिले, न बात हुई। ऐसा करना भी किसी कठिन परीक्षा से गुज़रना था।

शिखा ने प्रखर का नंबर जानकर कहीं भी नोट करके नहीं रखा क्योंकि उसे लगता था कि ऐसा करने से वह समीर के साथ शायद न्याय न कर पाए। प्रखर का नंबर हटाते वक़्त कितनी बार उसकी आँखें भीगीं, यह सिर्फ़ शिखा जानती थी। फिर दोनों जीवन की तेज़ रफ़्तार में लगातार दौड़ते रहे। कौन किस शहर में कब, कहाँ रहा दोनों को नहीं पता था।

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रचनाकार परिचय

प्रगति गुप्ता

ईमेल : pragatigupta.raj@gmail.com

निवास : जोधपुर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 23 सितंबर, 1966
जन्मस्थान- आगरा (उत्तरप्रदेश)
शिक्षा- एम०ए० (समाजशास्त्र, गोल्ड मैडलिस्ट)
सम्प्रति- लेखन व सोशल-मेडिकल क्षेत्र में काउंसिलिंग
प्रकाशन- तुम कहते तो, शब्दों से परे एवं सहेजे हुए अहसास (काव्य-संग्रह), मिलना मुझसे (ई-काव्य संग्रह), सुलझे..अनसुलझे!!! (प्रेरक संस्मरणात्मक लेख), माँ! तुम्हारे लिए (ई-लघु काव्य संग्रह), पूर्ण-विराम से पहले (उपन्यास), भेद (लघु उपन्यास), स्टेप्लड पर्चियाँ, कुछ यूँ हुआ उस रात (कहानी संग्रह), इन्द्रधनुष (बाल कथा संग्रह)
हंस, आजकल, वर्तमान साहित्य, भवंस नवनीत, वागर्थ, छत्तीसगढ़ मित्र, गगनांचल, मधुमती, साहित्य भारती, राजभाषा विस्तारिका, नई धारा, पाखी, अक्षरा, कथाबिम्ब, लमही, कथा-क्रम, निकट, अणुव्रत, समावर्तन, साहित्य-परिक्रमा, किस्सा, सरस्वती सुमन, राग भोपाली, हिन्दुस्तानी ज़ुबान, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दैनिक ट्रिब्यून, नई दुनिया, दैनिक नवज्योति, पुरवाई, अभिनव इमरोज, हिन्दी जगत, पंकज, प्रेरणा, भारत दर्शन सहित देश-विदेश की लगभग 350 से अधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन और अनुवाद।
कविता अनवरत, कविता अभिराम, शब्दों का कारवां, समकालीन सृजन, सूर्य नगरी की रश्मियाँ, स्वप्नों की सेल्फ़ी, कथा दर्पण रत्न, छाया प्रतिछाया, सतरंगी बूंदें, संधि के पटल पर आदि साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
प्रसारण-
जयपुर दूरदर्शन से चर्चा व आकाशवाणी से सृजन का नियमित प्रसारण
सामाजिक और साहित्यिक क्षेत्र में कविता का स्थान विषय पर टी.वी. पर एकल साक्षात्कार
संपादन- अनुभूतियाँ प्रेम की (संपादित काव्य संकलन)
विशेष-
राजस्थान सिन्धी अकादमी द्वारा कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' का अनुवाद।
कहानियों और कहानी संग्रह 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' पर शोध।
प्रतिष्ठित कथा प्रधान साहित्यिक पत्रिका 'कथाबिम्ब' के संपादक मण्डल में क्षेत्रवार संपादक
कहानियों व कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद
हस्ताक्षर वेब पत्रिका के लिए दो वर्ष तक नियमित 'ज़रा सोचिए' स्तंभ
सम्मान/पुरस्कार-
हिंदी लेखिका संघ, मध्यप्रदेश (भोपाल) द्वारा 'तुम कहते तो' काव्य संग्रह पर 'श्री वासुदेव प्रसाद खरे स्मृति पुरस्कार' (2018)
'अदबी उड़ान काव्य साहित्य पुरस्कार' काव्य संग्रह तुम कहते तो और शब्दों से परे पुरस्कृत व सम्मानित (2018)
साहित्य समर्था द्वारा आयोजित अखिल भारतीय 'डॉ० कुमुद टिक्कू कहानी प्रतियोगिता' श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार (2019 और 2020)
विद्योत्तमा फाउंडेशन, नाशिक द्वारा 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' कहानी संग्रह 'विद्योत्तमा साहित्य सम्राट सम्मान' से पुरस्कृत (2021)
श्री कमल चंद्र वर्मा स्मृति राष्ट्रीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता प्रथम पुरस्कार 2021
कथा समवेत पत्रिका द्वारा आयोजित 'माँ धनपति देवी स्मृति कथा साहित्य सम्मान' 2021, विशेष सम्मान व पुरस्कार
लघु उपन्यास भेद पुरस्कृत मातृभारती 2020
विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा 'साहित्य सारंग' से सम्मानित (2018)
अखिल भारतीय माथुर वैश्य महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में 'समाज रत्न' से सम्मानित (2018)
डॉ० प्रतिमा अस्थाना साहित्य सम्मान, आगरा (2022)
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान 'रघुनंदन त्रिवेदी कथा सम्मान' स्टेपल्ड पर्चियांँ संग्रह को- 2023
पंडित जवाहरलाल नेहरु बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान द्वारा 'इंद्रधनुष' बाल कथा संग्रह को 'बाल साहित्य सृजक' सम्मान 2023 
जयपुर साहित्य संगीति द्वारा 'कुछ यूँ हुआ उस रात' को विशिष्ट श्रेष्ठ कृति सम्मान 2023
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