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नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की पाँचवीं कड़ी

नीलम तोलानी 'नीर' के लघु-उपन्यास 'करवाचौथ' की पाँचवीं कड़ी

यह सब घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ कि कबीर न तो समझ पाया न ही सम्हल पाया...आख़िर ऐसा क्या ग़लत कह दिया था उसने.... इन छः महीनों के साथ में हर क्षण उसने यही महसूस किया था कि स्निग्धा भी वही चाहती है जो वह चाहता है... फिर ग़लती कहाँ हुई, जो भी था वह सपना था, या जो अब हो रहा है वह सपना है? क्या कहेगा वह पापा मम्मी को ..हर दिन जिस की बातें करता रहा... वह लड़की मुझसे शादी ही नहीं करना चाहती ...लिव इन की बात करती है . शनैः शनैः कबीर की आँखों में अँधेरा छाने लगा... अब क्या करें न तो स्निग्धा के बग़ैर जी सकता है , न उसकी शर्ते मान कर ...

कबीर के फ्लैट की बालकनी....शाम 7 बजे..ठंडी हवा चल रही है,कबीर स्निग्धा के हाथ थामे खड़ा हुआ हैं। दोनों अपने में खोए बातचीत में मशगूल है। कभी कभी स्निग्धा के लंबे बाल उड़कर उसके मुँह पर आ जाते है, जिन्हें कबीर प्यार से वापस सँवार देता है।..)
कबीर: "स्निग्धा , कल मम्मी पापा आ रहे हैं ..तुमसे मिलने..."

"मुझसे ,क्यों"

"क्यों  मतलब क्या.... क्या हम हमेशा यूँ ही रहने वाले हैं... छः महीने तो हो ही गए ..."

"पर जो चल रहा है वह ठीक ही तो है "...

"ठीक कैसे? क्या तुम नहीं चाहतीं... कि हम हमेशा साथ रहें ..एक छोटा सा घर हो.. आगे गार्डन ..उसमें हमारे बच्चे... मैं तुम्हें पूरी तरह पाना चाहता हूँ, क्या तुम समझती  नहीं..."

"ओह, तो अपनी मुहर लगाना चाहते हो मुझ पर?"

पहले तो कुछ क्षण के लिए कबीर यह सुन झेंप गया .. फिर संयत होकर कहा "हाँ, मुहर ही तो ! तुम्हें स्निग्धा त्यागी से स्निग्धा बेदी जो बनाना चाहता हूँ। निशांत अंकल को भी बुला लेना कल..."

" कबीर एक बार मुझसे पूछ तो लिया होता..."

" क्या पूछता ...क्या तुम मेरे साथ आगे नहीं बढ़ना चाहतीं? या मुझे अभी परखना बाक़ी है...?"

"ऐसा कुछ नहीं.... तुम्हारे आने से तो मैंने इतने सालों बाद मुस्कराना  सीखा है, पर मुझे डर लगता है ...तुम्हारे प्यार की पजेसिवनेस से! हम लिव-इन में भी तो रह सकते हैं ...और बच्चे... नहीं मुझे नहीं चाहिए। मुझे नहीं लगता मैं किसी परिवार की ज़िम्मेदारी उठा सकती हूँ।"

"आर यू क्रेज़ी स्निग्धा... मुझे नहीं पता था तुम इतनी आधुनिक हो... पता है लिव-इन में कौन रहता है? जिसे अपने प्यार और इरादों पर भरोसा न हो..जिसे सिर्फ तत्कालिक दैहिक सुख की चाह हो.. कायर और  ग़ैर ज़िम्मेदार लोग होते हैं, लिव-इन में रहने वाले...(कबीर थोड़ा नरम होते हुए...) हम मिलकर सारी ज़िम्मेदारियाँ उठायेंगे स्निग्धा.... तुम हमेशा अकेली रही हो ...इसलिए डरती हो।पर बिलीव मी ...मेरे परिवार में आकर तुम संपूर्ण हो जाओगी...मेरे साथ- साथ तुम्हारे पास मम्मी पापा भी तो होंगे और बच्चें..."

"बच्चें sss"....

"होंगे न जितने तुम चाहोगी उतने.... मैं इकलौता लड़का हूँ, हमेशा सोचता रहा... कि काश मेरे भाई बहन होते ...और मज़े की बात पापा भी इकलौते और मम्मी भी।
पर हम इस परंपरा को तोड़ देंगे... ठीक है न?
दो ...तीन ...चार..."

"कबीर तुम्हें मज़ाक लग रहा है....मुझे बच्चें नहीं चाहिए... और न ही  शादी.... सॉरी कबीर पर अगर तुम्हारी यही सोच है, तो हम एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं।"

यह सब कहते, रोष से या उसके अपने भविष्य के डर से... उसके रक्तिम कपोल और भी लाल हो गए। अपना पर्स संभालती तेजी से स्निग्धा चली गई ...।

यह सब घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ कि कबीर न तो समझ पाया न ही सम्हल पाया...आख़िर ऐसा क्या ग़लत कह दिया था उसने.... इन छः महीनों के साथ में हर क्षण उसने यही महसूस किया था कि स्निग्धा भी वही चाहती है जो वह चाहता है... फिर ग़लती कहाँ हुई, जो भी था वह सपना था, या जो अब हो रहा है वह सपना है? क्या कहेगा वह पापा मम्मी को ..हर दिन जिस की बातें करता रहा... वह लड़की मुझसे शादी ही नहीं करना चाहती ...लिव इन की बात करती है . शनैः शनैः कबीर की आँखों में अँधेरा छाने लगा... अब क्या करें न तो स्निग्धा के बग़ैर जी सकता है , न उसकी शर्ते मान कर ...

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स्निग्धा जब तक घर पहुँची, थोड़ी स्थिर हो चुकी थी।
यह मैंने क्या कर दिया...कबीर  तो कहीं भी ग़लत नहीं.. क्यों मेरा अतीत  मेरा पीछा नहीं छोड़ता ...क्यों मैं चाह कर भी वर्तमान को नहीं जी सकती... अब तक तो मुझे कबीर को सब कुछ बता देना चाहिए था ...अपनी बीमारी, पापा का मम्मी के लिए इतना पजेसिव होना कि अपनी ज़िम्मेदारी से भाग जाना ...आत्महत्या कर लेना... कल सुबह होते ही कबीर के पास जाऊँगी ..और एक और 'गिरीश त्यागी' एक और' स्निग्धा त्यागी' नहीं.. नहीं... यह नहीं हो सकता, उसे मेरी  शर्ते माननी होंगी।

स्निग्धा सारी रात करवटें बदलती रही.... कल कबीर  से यह कहेगी, वह कहेगी... अपना अतीत उसके सामने खोल कर रख देगी.... उसके बाद वह ज़रूर समझेगा... मेरी बात मानेगा.... यह भी हो सकता, कि वह अपना इरादा बदल दे...आख़िर उसे भी... उसके पापा मम्मी को भी तो ...अपना वंश आगे बढ़ाना है.... इतना आगे आने के बाद फिर कबीर को खोना ...नहीं... नहीं... एक बार फिर अकेलापन ...अब नहीं। स्निग्धा अलसुबह तैयार हो कर कबीर के फ्लैट पर पहुँच गई... कबीर के फ्लैट का दरवाज़ा खुला हुआ था...अंदर घुसते हुए... "एकदम लापरवाह है यह लड़का... कबीर... कबीर..sss.. कहाँ हो?" इधर-उधर नज़रें घुमाती...बालकनी में....देखा.. कबीर वहीं नीचे गुड़ी मुड़ी सा गठरी बन घुटनों में सिर घुसाए बैठा था। स्निग्धा लगभग चिल्लाते हुए बोली... "तुम.. तुम अभी तक यहीं हो? कल शाम से न कपड़े बदले न....कबीर का हाथ पकड़ते ही...  तुम तो एकदम ठंडे हो रहे हो। क्या कल से तुम यहीं बैठे हो? चलो अंदर चलो... "तुम आ गईं ,मुझे पता था ...तुम आओगी...हमारा प्रेम सच्चा है न?" एक पल को कबीर की आँखों  में देख ठिठक सी गई स्निग्धा... इतनी मासूमियत ...इतनी सच्चाई... कैसे बताएगी सब कुछ...
"पता है रात को कई बार लगा कि इस बालकनी से नीचे कूद जाऊँ...पर मुझे पता था तुम आओगी... इसलिए सारी रात यही बैठा  रहा...।"

"कोई इंसान इतना फूलिश कैसे हो सकता है ...हालत देखो अपनी.... चलो पहले तुम्हें चाय पिलाती हूँ।"

चाय पीते पीते .... "कबीर.. तुम्हें कुछ बताना है ..बीच में मत टोकना..."

जैसे कई सालों से सुप्त पड़ा ज्वालामुखी अचानक से ही आग उगलने लगा... स्निग्धा बोलती रही ...अपना बचपन.. दादी.. पापा की पजेसिवनेस ..मम्मी की बीमारी ...जेनेटिक डिसऑर्डर ...कनाडा का परिवार... उसका अकेलापन ...जब तक धीरे-धीरे यह ज्वाला तप्त आँसुओं में न बदल गयी.... कबीर भी सुनता रहा ..स्निग्धा को शांत करने का प्रयास किए बग़ैर... कुछ देर ख़ामोशी छाई रही ... "क्या अब भी तुम मुझसे शादी करना चाहते हो ?"

"हाँ थोड़े अमेंडमेंट के साथ ! सुनो ! यह सब पहले कहा होता... तो कल की रात.."

"कल की रात ....क्या?"

"जो बालकनी में मुझे इतने सारे मच्छरों ने काटा  उनसे बच गया होता न...सो सिल्ली"

"यू आर सो इंपॉसिबल!"

कबीर स्निग्धा के दोनों कंधों को पकड़ते हुए अपने क़रीब लाता हुआ बोला..."स्निग्धा जोक्स अपार्ट... जो हुआ, उसमें तुम्हारा तो कोई दोष नहीं।"
"तुम ठीक हो यही बहुत है... बच्चें मुझे बहुत पसंद हैं पर तुमसे ज़्यादा नहीं... इसका भी हल सोच कर निकाल लेंगे हम लोग... पापा मम्मी से मिलने के लिए तैयार हो जाओ।
स्निग्धा ! फिलहाल उन्हें कुछ भी बताने की ज़रूरत नहीं..."

"एक बार और सोच लो कबीर...." "सोच लिया मिस त्यागी... मिसेज स्निग्धा बेदी.. और एक प्रॉमिस और... आज समझ आया कि क्यों तुम मेरे इतने पजेसिव होने से डरती हो।
आई प्रॉमिस ...चाहे जो हो ...मैं कभी परिस्थितियों से भागूँगा  नहीं .."

"थैंक्स कबीर.."

कबीर के माता पिता को स्निग्धा का अनाथ होना अखरा तो बहुत , पर कबीर के प्यार और स्निग्धा की बुद्धिमानी, सौम्यता, सुंदरता ने उनका मन मोह लिया। फिर कौन भारतीय नारी अप्सरा जैसी बहू पाने के लोभ से बच पाई है... वह तो अपने बेटे के  बचपन से परी जैसी बहू लाने के सपने सँजोती आई है। आने वाले दिन रुई के फाहे से उड़ते रहे... शादी की तैयारी... शादी ...हनीमून ....कबीर  तो जैसे सारा दिन स्निग्धा के  आगे पीछे  घूमता रहता। जहाँ मौका मिलता...  स्नेह की बारिश करता रहता.. कभी कहता..

" तुम्हारे कारण सारे देवलोक ने मुझ से दुश्मनी कर ली है ..और इंद्र देवता तो बस पीछे ही पड़े हैं.. मौका ढूँढ रहे हैं बदला लेने का .."

कंफ्यूज़ हो स्निग्धा आँखों से इशारों ही इशारों में हाथ घुमाकर पूछती ..|क्यों?" तो कहता

"उनकी मेनका जो चुरा ली है मैंने"

स्निग्धा झूठा ग़ुस्सा करती हुई कहती, "जाओ किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ। तुम्हारी हालत ख़राब है।"

एक दिन सुबह...
"तुम्हारे लिए मम्मी ने सरगी भिजवाई है, कल करवाचौथ है ।मम्मी से फोन पर बात कर लेना.. और सब समझ लेना । वह ख़ुद ही आना चाहती थीं ...पर उनके घुटनों का दर्द बढ़ गया है.. तो नहीं आ रहीं।"

"मेरे लिए ...?" वह मूवीस वाला करवा चौथ ! कबीर  मैं यह नहीं कर सकती। मैं तो भूखी रह ही नहीं सकती ।"

कबीर स्निग्धा को प्यार से देखते हुए..." एक बार मम्मी से बात कर लेना... जानेजाना! तुम्हें नहीं रखना... मत रखो। उन्हें मत कहना... हाँ मैं यह व्रत रखने वाला हूँ ...तुम्हारे लिए... इसलिए सब समझ लेना..."

"पागल हो तुम एकदम ..."

"हूँ तो ,तुम्हारे लिए".......

(शाम का वक़्त ....कबीर ऑफिस से घर लौट रहा है) फ्लैट में घुसते ही मेहंदी की भीनी भीनी मादक ख़ुशबू कबीर के नथुनों में भर जाती है... गहरी साँस  लेते हुए... "स्निग्धा तुम मेहंदी लगा रही हो ? और आज ऑफिस नहीं गई ?"

"कबीर मम्मी से बात हुई थी ,उन्होंने कहा कि व्रत के पहले मेहंदी लगा लेना... तो लगा रही हूँ ..."

"मतलब तुम व्रत रख रही हो... आर यू श्योर...?.भूखी रह पाओगी..

"पता नहीं कबीर... मम्मी ने कहा कि इस व्रत से तुम्हें लंबी उम्र मिलेगी...तो सोचा रख ही लेते हैं..."

'उन्हें बहुत विश्वास है इस व्रत में, तो उनकी ख़ुशी के लिए ही ,इतना तो कर सकती हूँ।"

"वैसे तुम्हें पता ,इन  मेहंदी वाले हाथों में, तुम कैसी लग रही हो ? बताऊँ?...
इधर आओ...." "बस ..बस ...रहने दो...तुम्हारी इन शरारती आँखों में ही दिख रहा है मुझे... कि कैसी लग रही हूँ ..."

"तो फिर....."

स्निग्धा अपने मेहंदी वाले हाथ आगे करते हुए बोली ...
"तो फिर... सब्र करो पतिदेव ! अभी तो मुझे बहुत भूख लगी है ..प्लीज़ कुछ खिला दो ..."

"जी मेम साहब! बंदा आपकी सेवा में हाज़िर है... कहिए क्या खायेंगी... फ्रेंच टोस्ट ,इटालियन पास्ता, अमेरिकन चॉप्सी .."

"कुछ भी ...चाय के साथ.."

" चाय !! तो... हमारे प्रेम ने आपको चाय पीना सिखा ही दिया... ऐसा नहीं लग रहा... आज ज़रा  ज़्यादा ही भारतीयता  महक रही है घर में.... "

दोनों ज़ोर से हँसने लगते हैं ...

"अच्छा कबीर! एक बात बताओ, अगर मैंने कल तुम्हारी लंबी उम्र की दुआ माँगी... और चौथ माता ने मेरी सुन ली.. और मैं पहले ऊपर चली गई... तो मेरे बग़ैर रह पाओगे क्या तुम..?

" किसी का अच्छा भला मूड चौपट करना कोई तुमसे सीखे... हर बात में मरने की बात क्यों ले आती हो...?
आखिर कब अपने पूर्वाग्रह छोड़ोगी तुम...? हाँ, नहीं जी सकता तुम्हारे बिना, एक पल भी नहीं। कहा तो है कितनी बार.... परिस्थितियों से भागूंगा नहीं... फिर भी विश्वास क्यों नहीं तुम्हें? घुमा  फिरा कर वही बातें करती हो ..."

स्निग्धा चिरौरी करते हुए बोली,"सॉरी... प्लीज़ अपना मूड मत ख़राब करो ...पता मैने सोच  लिया है कि कल मैं चौथ माता से क्या माँगूंगी?"

" क्या "??

"यही कि हम जियेंगे साथ... और मरेंगे भी साथ... तुम्हारी उम्र बस थोड़ी सी ज्यादा माँगूंगी मैं... चाहे कुछ मिनट ही सही.... ठीक है न अब तो..."

"तुम्हारी जो इच्छा हो करना ...पर प्लीज़.. अब यह टिपिकल भारतीय नारी के रूप से बाहर आओ... पता नहीं ,मम्मी ने क्या बोला है ,और तुमने क्या समझा है..वैसे एक न्यूज़ है गुड़ या बैड पता नहीं ,निशांत अंकल मिले थे, उन्होंने कहा कि हम अब बच्चा अफोर्ड कर सकते हैं... आजकल प्रेगनेंसी के चौथे महीने में अल्ट्रासाउंड से जेनेटिक डिसऑर्डर पता चल जाता है.. यह बहुत रिस्की काम है ...हर बार उम्मीद रखना और कुछ गड़बड़ होने पर ...अबो्र्ट करवाना ...फिजिकल से ज्यादा मेन्टल टॉर्चर है यह...  मैंने तो उन्हें मना कर दिया ...पर उन्होंने तुम्हें सारी जानकारी मेल कर दी है.."

"यह गुड न्यूज़ है कबीर! हम लेंगे यह रिस्क... क्या पता यही हमारी ख़ुशियों की चाबी हो ...अब तुम्हारा सपना मेरा सपना है..."

कबीर कुर्सी पर बैठी स्निग्धा के पैरों के पास नीचे बैठते हुए उसकी गोदी में सिर रखकर बोला... "सुनो, स्निग्धा,मेरी ख़ुशियाँ तुम से शुरू होकर तुम पर ही ख़त्म होती है ।यह सब सुनने में आसान लग रहा है, पर यह ख़तरनाक भी हो सकता है। बच्चें होना किस्मत की बात है ...हर बार ग़लत होने पर  और ज़्यादा टूटेंगे हम... इससे तो जैसे हैं वैसे ही ठीक है ..."

"पागल हो गए ,कबीर...कोई बिजनेसमैन ऐसा कैसे बोल सकता है ...नो रिस्क नो हनी बेबी..."

"यह  बिजनेस नहीं है ...यह हम दोनों की जिंदगी की बात है... "

"आई नो ...पर हम लेंगे रिस्क और ज़रूर ज़रूर लेंगे।"

हर करवाचौथ स्निग्धा सोचती,क्या पता इस व्रत को रखने से सचमुच कुछ होता है,या नही? मम्मी कहती हैं,श्रद्धा से सब संभव...  क्या माँगू ...कबीर के लिए लंबी उम्र या  दोनों का साथ ...ताउम्र... कबीर का प्यार जैसे उसकी रग-रग में था....डर के साथ... जितना उसके  प्यार से वह प्यार करती, उतना ही डरती ..अतीत के ज़ख़्म इतने गहरे थे ,कि वर्तमान की ख़ुशियों को दिल से अपनाने में भी खोने का डर ज़्यादा हावी होने लगता।                

कभी-कभी बुद्धिमान होना, तर्क शक्ति का प्रबल होना कितना त्रासदायी होता है। करुँ या न करुँ, जैसे यक्ष प्रश्न बनकर ,मुस्कराहटों की उम्मीदों को पीछे धकेल देता है।कितना अच्छा हो, कि जब जहाँ से ख़ुशियाँ मिलें बटोर ली जायें, बिना किसी तर्क के...बिना किसी दबाव के। स्निग्धा इन्ही प्रश्नों से उलझती, बालकनी में खड़ी स्कूल जाते छोटे-छोटे बच्चों को देख रही थी ...कि पीछे से कबीर की आवाज़ आती है " स्निग्धा!!! यह आख़िरी बार है... पिछले छः सालों में तीन बार कोशिश कर चुके हैं, अपने आप को देखो... दिनों दिन कितनी कमज़ोर हो रही हो... सुख  वह नहीं होता, जिसे पाने के लिए हम बेतहाशा उसके  पीछे भागते रहते हैं... सुख  हमारे आस पास ही होता हैं। क्या मेरा प्यार तुम्हारे लिए काफी नहीं? अगर आज भी सारे टेस्ट के बाद नतीजा नेगेटिव आता है तो बस यह आख़िरी बार है.. इसके बाद हम कोई चांस नहीं लेंगे।"

स्निग्धा मुड़ते हुए, अपने बेबी बम्प  पर हाथ रख कर बोली.." कबीर, तुम्हें क्या इससे थोड़ा सा भी अटैचमेंट फील नहीं होता है...? अगर इसमें भी वही डिसऑर्डर है.. तो भी क्या यह हमारी संतान नहीं...? इसे भी तो हक़ है इस दुनिया में आने का... हमारा प्यार पाने का ...प्यार देने का ..."

कबीर  स्निग्धा के क़रीब आकर.. पहले उसे ज़ोर से गले लगाता है थोड़ी देर  यूँ  ही उसके बालों को सहलाता रहता है, जैसे सोच रहा हो कि क्या कहूँ...फिर उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहता है..." क्या मैं इतना निष्ठुर हूँ...? तुम तो ख़ुद सब समझती हो।  क्या देख पाओगी ...रोज़ रोज़ अपनी संतान को मरते ...रोज़ एक नई मौत मरोगी  उसे देखकर... और मैं... तुम्हें ऐसे नहीं देख पाऊँगा। रोज़ रोज़ अनहोनी का इंतज़ार... होनी का सुख भी छीन लेता है। मेरे लिए तुम सबसे ज़्यादा ज़रूरी हो। चलो अब अपॉइंटमेंट का समय हो गया है ...।"


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रचनाकार परिचय

नीलम तोलानी 'नीर'

ईमेल : neelamtolani23@gmail.com

निवास : इंदौर (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 23 मई 1976
जन्मस्थान- इंदौर
लेखन विधा- गद्य एवं पद्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन।
शिक्षा- बी.एस.सी.
MFA,(FINANCE),
WSP ..IIM BANGLURU
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन-
कितना मुश्किल कबीर होना(एकल)
साझा संग्रह:
1-शब्द समिधा
2-शब्द मंजरी
3-गूँज
4- शब्दों की पतवार
5- स्वच्छ भारत
6- सिंधु मशाल(पत्रिका सिंध साहित्य अकादमी)
7- हर पेड़ कुछ कहता है
* सिसृषा ,ब्रज कुमुदेश , काव्यांजलि जैसी छंद पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।
* कई समाचार पत्र तथा पत्रिका ,दैनिक भास्कर,नईदुनिया में निरंतर प्रकाशन
प्रसारण-आकाशवाणी इंदौर से कई बार कविता पाठ
सम्मान/पुरस्कार-
1- एस एन तिवारी स्मृति कृति पुरुस्कार २०२३
(कितना मुश्किल कबीर होना कृति पर)
2- उड़ान वार्षिक प्रतियोगिता २०२३ में तृतीय पुरस्कार
3- 2019 में श्रेष्ठ लघुकथा कार व छन्द लेखन में पुरुस्कृत।
4- अंतरराष्ट्रीय पत्रिका राम काव्य पीयूष में गीत का चयन ,प्रकाशन
5- women web राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता में poet of year अवार्ड 2019
6- उड़ान सारस्वत सम्मान
7- उड़ान गद्य सम्राट
8-.सिंधु प्रतिभा सम्मान 2019
9- सिंध साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश द्वारा कई बार सिंधी रचनाओं के लिए पुरुस्कृत
संपर्क-114 बी,स्कीम नंबर 103
केसरबाग रोड,विनायक स्वीट के पास
इंदौर-452012 (मध्य प्रदेश)
मोबाइल-9977111665