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मौन जब मुखरित हुआ : एक श्रेष्ठ गीत संग्रह- अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक'

मौन जब मुखरित हुआ : एक श्रेष्ठ गीत संग्रह- अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक'

मौन जब मुखरित हुआ में देश-प्रेम, मानवीय गुण, राष्ट्रीय एकता, प्रकृति-चित्रण, भक्ति-भावना, श्रृंगार, देश के सन्तों, महात्माओं, महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता, नैतिक मूल्यों की स्थापना आदि को मुख्य रूप से रेखांकित किया गया है। साथ ही समाज में व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं कुरीतियों का प्रबल विरोध भी किया गया है।

गीत-संग्रह 'मौन जब मुखरित हुआ' में विभिन्न भावों में निबद्ध लगभग पिच्यासी गीत हैं। कवयित्री सुश्री नीरजा 'नीरू' द्वारा विरचित समस्त गीत अपनी अलग विशेषता रखते हैं। आप एक नैसर्गिक प्रतिभा सम्पन्न कवयित्री हैं। उनके अन्तस से भाव स्वतः ही प्रस्फुटित होते हैं। इसके लिये उन्हें कोई यत्न नहीं करना पड़ता। नीरजा 'नीरू' माध्यमिक विद्यालय लखनऊ में इतिहास की प्रवक्ता हैं साथ ही काव्य साहित्य की गीत विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं।

विद्वानों ने कहा है कि कवि की सोच मात्र अपने परिवार, रिश्तेदार एवं कुछ इष्ट मित्रों तक सीमित नहीं रहती। कवि इस संसार को व्यापक दृष्टि से देखता है। एक सिद्ध सन्त की भांति कवि की वाणी से भी समाज का लोकमंगल होता है, साथ ही नैतिक मूल्यों की स्थापना भी होती है, जिससे आपसी प्रेम, भाईचारा, समानता, देश-प्रेम, प्रकृति एवं समस्त प्राणियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होती है।

'मौन जब मुखरित हुआ' में देश-प्रेम, मानवीय गुण, राष्ट्रीय एकता, प्रकृति-चित्रण, भक्ति-भावना, श्रृंगार, देश के सन्तों, महात्माओं, महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता, नैतिक मूल्यों की स्थापना आदि को मुख्य रूप से रेखांकित किया गया है। साथ ही समाज में व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं कुरीतियों का प्रबल विरोध भी किया गया है।

'बचपन बीता जहाँ सलोना' शीर्षक गीत में कवयित्री ने भोले बचपन को याद किया है। वास्तव में बचपन का समय बड़ा सुहावना होता है। जीवनभर उसकी अमिट छाप व्यक्ति के मानस-पटल पर अंकित रहती है। बचपन सभी सांसारिक चिन्ताओं एवं जंजालों से मुक्त रहता है। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

सुबह जहाँ थी भोली-भाली और शाम मतवाली थी।
कौतुक से थी भरी दुपहरी, रात जादुई प्याली थी।
कल की चिन्ता चौखट छूकर, लौट द्वार से जाती थी,
बेसुध बचपन की अल्हड़ता, उसे न पास बुलाती थी।।

देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी, समस्त विश्व की श्रेष्ठतम भाषाओं में से एक है। इसकी लिपि देवनागरी, विश्व की समस्त लिपियों में श्रेष्ठ एवं वैज्ञानिक है। हिन्दी भाषा के प्रति हमें गर्व होना चाहिए। 'निज भाषा पर गर्व करें हम' शीर्षक गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

वैज्ञानिक भाषा यह प्यारी, इसका ही रस पान करें।
हिन्दी प्यारी भाषा अपनी, हम इसका सम्मान करें।।

शब्द-शब्द में ब्रह्म समाए, शब्द-शब्द मन्वन्तर है।
सीधे-सीधे मन पर यह तो, करती जादू-मन्तर है।।

जिस व्यक्ति में छल प्रपंच, कपट, लोभ, स्वार्थ एवं दम्भ समा जाता है, उसका जीवन नरक हो जाता है। जिसका मन निर्मल होता है, जो त्याग, परोकार, संवेदनशील एवं दयावान होता है, समाज उसी को सम्मान देता है। 'प्रेम पीयूष पाया पथिक पंथ में' शीर्षक गीत की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-

लोभ ने राह रोकी बहुत ही मगर,
त्याग ने हाथ जोड़े नमन जब किया।
पात्र मन का तुरत रिक्त मन से हुआ,
नेह ने ठौर हृद में तभी कर लिया।
प्रेम, करुणा, दया और ममता सभी,
भावनाएँ हृदय में उमगने लगीं।
नित्य परहित भलाई व उपकार की,
कामनाएँ सकल सुप्त जगने लगीं।

'जग किरदारों की टोली है' शीर्षक गीत में कवयित्री ने इस असार संसार का चित्रण किया है। वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक व्यक्ति किरदार के रूप में ही है, जो अपनी-अपनी भूमिका निभाकर जहाँ से आए वहीं प्रस्थान कर जाता है। देखिए जीवन दर्शन पर आधारित कुछ पंक्तियाँ-

है धूप कहीं तो छाँव कहीं, बस क्रन्दन और ठिठोली है।
है रंगमंच-सा यह जीवन, जग किरदारों की टोली है।

'फिर भी जग कहता है' शीर्षक गीत में कवयित्री ने इस संसार की मानसिकता से लोगों को परिचित कराया है। कोई व्यक्ति कितनी भी ईमानदारी, सच्चाई से जीवन व्यतीत करे, कितना ही परोपकार, दया, धर्म, संवेदना, त्याग एवं मानवता अपनाए, समाज के लोग उसमें भी उसका निजी स्वार्थ खोज लेते हैं। यह कटु सत्य है। निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-

सज्जनता को जो अपनाये, करे न तेरा-मेरा है।
फिर भी जग कहता है इसको, किसी लोभ ने घेरा है।।

इस कृति में देश-प्रेम से सम्बन्धित अनेक सुन्दर, सरस एवं भावपूर्ण रचनाएँ संग्रहीत हैं। 'दूर तक फहरे गगन में' शीर्षक गीत में देश-प्रेम के साथ-साथ प्रकृति का भी मनमोहक चित्रण हुआ है। देखिये कुछ पंक्तियाँ-

भाल पर यह विश्व के, चमके सदा बनकर विहंगम।
दूर तक फैले गगन में, हिन्द का ही नित्य परचम।
पर्वतों का भूप हिमगिरि, बन स्वयं प्रहरी खड़ा है,
क्षीर निधि का नृप सम्हाले, बोझ काँधों पर बड़ा है।
चौकसी करते सघन वन और मरुथल भी अड़ा है,
जाल नदियों का सुनहरा, दूर तक मग में पड़ा है।

'मौन जब मुखरित हुआ' कृति में भावानुकूल शब्द चयन, प्रवाहपूर्ण भाषा, स्वाभाविक रूप से आए अलंकार एवं वैविध्यपूर्ण भावों का संयोजन, सभी कुछ उत्तम है। नीरजा जी विलक्षण प्रतिभा की धनी हैं। 'मौन जब मुखरित हुआ' उनकी प्रथम कृति है, फिर भी इस कृति में प्रौढ़ गीतकारों जैसी प्रौढ़ता, सरसता, सरलता एवं सहजता विद्यमान है। यह कृति हिन्दी साहित्य की गीत विधा की अमूल्य निधि सिद्ध होगी। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। पुस्तक की रचना हेतु मैं नीरजा जी को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

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रचनाकार परिचय

अशोक कुमार पाण्डेय 'अशोक'

ईमेल :

निवास : लखनऊ( उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 10 मार्च 1950 ई.
जन्म-स्थान- लखनऊ (उ.प्र.)
सम्प्रति- दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्राम्य विकास संस्थान, बख्शी का तालाब, लखनऊ से सेवानिवृत्त।
प्रकाशन-
प्रकाशित कृतियाँ
1. व्योम की हथेली से (कवित्त- घनाक्षरी संग्रह) 1992,
2. एकलव्य (खण्डकाव्य) 1995, 3. परा (सवैया संग्रह) 1998, 4. रश्मियों की माला (कवित्त-घनाक्षरी संग्रह) 2016, 5. प्रेम पराग (खण्डकाव्य) 2021
साझा संकलनः रंग अपने-अपने, 1984
सम्पादन
1. मालती, प्रणेता- कविवर गोमती प्रसाद पाण्डेय 'कुमुदेश', 2. अंशुमालिनी (काव्यप्रधान त्रैमासिकी, वर्ष 1985 से 1988 ई.). 3. ब्रज कुमुदेश (काव्य प्रधान त्रैमासिकी, वर्ष 1997 से अब तक)
प्रकाश्य
1. द्वापर में अनुताप (महाकाव्य)
2. सुजान (प्रबन्ध काव्य)
3. मल्लिका (सवैया संग्रह),
4. लिखा लेखनी ने (लेख संग्रह),
5. रंग अनेक (काव्य संग्रह) ।

प्रमुख सम्मान • अनुरंजिका' कानपुर द्वारा सम्मानित, 2002 उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा 'सरस्वती पुरस्कार' से सम्मानित (ब्रज कुमुदेश पत्रिका पर) • राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा 'साहित्य गौरव' सम्मान, 2006 ई. एवं 'सुमित्रानंदन पंत सम्मान', 2008 • 'महाकवि रामजीदास कपूर सम्मान', 2007 • अधिवक्ता प्रकोष्ठ द्वारा 'शिखर भारती सम्मान 2007 सागर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा 'सागरिका' सम्मान, 2008 • राष्ट्रकवि पं. वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्य प्रकाशन समिति, लखीमपुर खीरी द्वारा राष्ट्रकवि पं. वंशीधर शुक्ल सम्मान, 2008 • राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड द्वारा 2009 एवं 2010 में सम्मान • 'मानस मृगेश साहित्य सम्मान 2012 सेवढ़ा, दतिया (म.प्र.) अखिल भारती वागीश्वरी साहित्य परिषद् द्वारा 'वागीश्वरी सम्मान', 2013 • अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ उत्तर प्रदेश सम्मान, 2014 • निराला साहित्य परिषद महमूदाबाद, सीतापुर द्वारा 'निराला सम्मान', 2014 • चेतना साहित्य परिषद लखनऊ द्वारा पं. शिवशंकर मिश्र स्मृति सम्मान, 2017 एवं चेतना गौरव सम्मान, 2018 युवा रचनाकार मंच उ.प्र. लखनऊ द्वारा 'आजीवन साहित्य उपलब्धि सम्मान, 2017 • जैन मिलन लखनऊ द्वारा 'कवि फूलचन्द जैन पुष्पेन्द्र साहित्य सम्मान 2017 सुन्दरम् साहित्य संस्थान द्वारा 'सुन्दरम् रत्न सम्मान, 2018 डा. जगदीश गुप्त गीतांजलि संस्थान द्वारा 'डा. जगदीश गुप्त छंद महार्णव सम्मान', 2019 • विश्व हिंदी शोध संवर्धन अकादमी वाराणसी द्वारा 'काव्य गौरव सम्मान', 2019 • सीता ग्रुप आफ एजूकेशन, महमूदाबाद, सीतापुर द्वारा 'सरल साहित्य सम्मान, 2022
विशेष- लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ द्वारा वर्ष 1998 ई. में कृतित्व एवं व्यक्तित्व' पर एम.फिल. ।
संपर्क- 209 / 20, नालबन्दी टोला, ड्योढ़ी आगामीर, लखनऊ,
मोबाइल- 9236470390