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मनोज कुमार शुक्ल 'मनुज' के घनाक्षरी छन्द

मनोज कुमार शुक्ल 'मनुज' के घनाक्षरी छन्द

ज्ञान,भक्ति,आत्मसुख, परमार्थ, दिव्यता की,
कृष्ण हैं अगर चाभी राधिका जी ताला हैं।

एक

प्रेम लाँघ जाता देश प्रेम सह लेता दण्ड,
प्रेम जाति बंध तोड़ प्रेम को निभाता है।

प्रेम धर्म से परे है प्रेम रूढ़ियों से मुक्त,
प्रेम वाहे गुरु, राम, अल्लाह को मनाता है।

प्रेम गिरजाघरों में प्रार्थनाएँ करता है,
प्रेम एक ब्रह्म का सुयोग समझाता है।

प्रेम मधुशाला से भी माँगता शरण और,
प्रेम मंदिरों में घंटियों को घनघनाता है।

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दो

प्रेम दार्शनिकता प्रदान करता अमूल्य,
प्रेम तोड़ पर्वतों को सड़कें बनाता है।

प्रेम बादलों के पार देखने में है समर्थ,
प्रेम राजसी सुखों को छोड़ भाग जाता है।

प्रेम ऊँच नीच श्रेष्ठता को नहीं मानता है,
प्रेम झोपड़ी में राजमहल बुलाता है।

आपको न बाध्य करता हूँ आप मन ही लो,
किन्तु प्रेम ज्ञानियों के ज्ञान को नचाता है।

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तीन

भारतीय सभ्यता में, हैं सदैव पालनीय,
त्याग का पवित्रता का शुद्ध प्रतिमान हैं।

निष्ठा,विश्वास से जिया समूल जीवन को,
पतिव्रत,धर्मनिष्ठ सीता स्वाभिमान हैं।

साथ राम के सदैव पालतीं रहीं स्वधर्म,
राम एक नारी व्रत पालते महान हैं।

पति सहधर्मिणी के प्रेम की बने मिशाल,
सीता-राम,सीता-राम भक्ति प्रेम गान हैं।

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चार

स्वार्थ मुक्त,निरपेक्ष,शुद्ध व अटल प्रेम,
राधा-कृष्ण प्रेम अमरत्व देने वाला है।

एक होने वाला भाव,अहंकार द्वेष मुक्त,
काल बंधनों से मुक्त मुक्ति वाली माला है।

ज्ञान,भक्ति,आत्मसुख, परमार्थ, दिव्यता की,
कृष्ण हैं अगर चाभी राधिका जी ताला हैं।

कृष्ण की परम शक्ति, शक्ति का हैं पुंज राधा,
त्याग प्रतिमूर्ति राधा प्रेम सुख हाला हैं।

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पाँच

जीवन का सुख उर अंतर में रहता है,
स्वार्थ, छल, झूठ वाली दीमक रुलाती है।

प्रेम,स्वाभिमान को किनारे कर देती और,
धन की सुदेवी धूल अपनी चढ़ाती है।

प्रेम है प्रपात शुद्ध जीवन के गौरव का,
क्षुद्र बुद्धि प्रेम के प्रपात को सुखाती है।

सारहीन वस्तुएं भी सारवान जब लगें,
घृत प्रेम दीप का बुझाता प्रेम बाती है।

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छह

ढाई आखर ने रंग ढंग बदले हैं सभी,
प्रेम ने मनुष्य को मनुष्यता सिखाई है।

प्रेम ने असीम शक्ति दे के लक्ष्य भेदे भी हैं,
प्रेम से सुबुद्धि आम जन ने भी पाई है।

यदि प्रेरणा बना रहे विछोह होने पर,
प्रेम के वियोग की भी गति सुखदाई है।

राधा के वियोग ने बनाया कान्हा जी को कृष्ण,
योग शक्ति कृष्ण में वियोग से ही आई है।

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सात

प्रेम सुख देता,देता है अनंत त्याग दृष्टि,
प्रेम क्रुद्ध भी दिखे तो मन से न रूठता।

भूलने की कोशिशों से प्यास और बढ़ती है,
नाता है ये अनमोल कभी नहीं टूटता।

प्रेम से न भाग कोई सकता न भाग सका,
प्रेम वाला घट कच्चा हो के नहीं फूटता।

प्रेम की विशेषता है ये सदैव साथ ही है,
एक बार हो गया तो प्रेम नहीं छूटता।

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251