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लता जौनपुरी की ग़ज़लें

लता जौनपुरी की ग़ज़लें

मुश्किलों में भी मिलेगी तुझको मंज़िल की डगर
सिर्फ़ अर्जुन की तरह तू लक्ष्य का संधान कर

ग़ज़ल- एक

आँख पर पट्टी चढ़ाकर यूँ न प्यारे ध्यान कर
छद्मवेशी रावणों के चेहरों की पहचान कर

मुश्किलों में भी मिलेगी तुझको मंज़िल की डगर
सिर्फ़ अर्जुन की तरह तू लक्ष्य का संधान कर

ख़ुद अहिल्या आगे बढ़कर मुक्त हो हर श्राप से
क्यों किसी की बाट जोहे वो मसीहा मान कर

हश्र क्या होगा चमन का बेख़बर है बागबाँ
इक लुटेरे को ही पहरेदार सच्चा मानकर

अम्न होगा हर तरफ बस नफ़रतों को कर दहन
प्यार की गंगा बहाकर विश्व का उत्थान कर

रंक को राजा बनाना वक़्त का ही खेल है
वक़्त के इस खेल का तू हर घड़ी सम्मान कर

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ग़ज़ल- दो

नफ़रतों के ताज़िरों पर ख़ुश है क़ुदरत आजकल
इनके कारोबार में है ख़ूब बरकत आजकल

मीर ओ ग़ालिब की तरह अशआर मैं कैसे कहूँ
शायरी में काम कब आती है उल्फ़त आजकल

रौनकें बाज़ार की जादूगरी है जान लो
फाँस लेना जाल में उनकी है फ़ितरत आजकल

शाम ढलते ही तेरी यादों के पंछी घेर कर
मेरे दिल को देते हैं पैग़ाम ए उल्फ़त आजकल

क्या हुआ इस शह्र को भयभीत है हर आदमी
हर तरफ़ फैली है क्यों बेख़ौफ़ दहशत आजकल

किस दिशा में ढूँढते हो यार ख़ैर-ओ-आफ़ियत
बढ़ गई है चारसू ही बुग्ज़ ओ नफ़रत आजकल

चारागर सच्चा वही है मेरी नज़रों में लता
बेसहारों पर जो करता है इनायत आजकल

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ग़ज़ल- तीन

दोस्त होने का हक़ अब अदा कीजिए
राह ए उल्फ़त में हूँ मैं दुआ कीजिए

उम्र भर रीढ़ सीधी न हो पाएगी
सबके सम्मुख न ऐसे झुका कीजिये

है फटा उसका दामन हटा लें नज़र
मुफ़लिसी यूँ किसी की ढका कीजिए

जब से झुलसा है सूरज की गर्मी से वो
कह रहा है शजर अब हरा कीजिये

राह कितनी ही मुश्किल हो ऐ हमनवा
सच से पीछे न हरगिज़ हटा कीजिए

है चुनावों का मौसम सँभलिए ज़रा
यूँ न वादों पे उनके लुटा कीजिये

प्यार ग़ज़लों से है गर लता आपको
दर्द मज़दूर का भी लिखा कीजिये

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ग़ज़ल- चार

उदास राह पे बचपन है क्या किया जाए
अजब-सी दौड़ में जीवन है क्या किया जाए

छुपा लूँ कैसे भला ख़ामियाँ तुम्हारी मैं
मेरा वजूद ही दर्पण है क्या किया जाए

यहाँ हरेक मसर्रत पे सूद लगना है
ये ज़िन्दगी भी महाजन है क्या किया जाए

लुटा सुहाग तो रूठी हुई हैं सब ख़ुशियाँ
ख़मोश उसका अब आँगन है क्या किया जाए

बढ़ा है आरियों का शोर जब से उपवन में
बहुत उदास मेरा मन है क्या किया जाए

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ग़ज़ल- पाँच

न्याय की हालत है ऐसी आज के हालात में
धुंध छाई हो कि जैसे सर्दियों की रात में
 
रास्ते आसाँ नहीं हैं ज़िंदगी की राह के
हर गली हर मोड़ पर हैं धूर्त बैठे घात में
 
बाप के दम पर अकड़ते थे सभी के सामने
दूर घर से वो हुए तो आ गए औकात में 
 
माल ओ दौलत से न क़ायम रह सकेगी ज़िंदगी
ये सदा रहती है ज़िंदा प्यार के जज़्बात में
 
धर्म भी लाचार सा रोता है बेघर की तरह
गर जला है घर किसी का मज़हबी उत्पात में

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V

Vyas pandey

28 March 2025

बहुत ही सुन्दर ग़ज़लें 🙏🙏🙏l

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रचनाकार परिचय

लता जौनपुरी

ईमेल : latapandey861@gmail.com

निवास : वाराणसी(उत्तर प्रदेश)

नाम- लता पाण्डेय 
जन्मतिथि
- 12 जून

प्रकाशन- हंस, विश्वगाथा, उड़त गुलाल, इस दौर की गज़लें, नागरी पत्रिका, कृतिका, ग़ज़ल पंच शतक, आधी आबादी की ग़ज़लें, ग़ज़ल त्रयोदश', प्रतिरोध की ग़ज़लें, अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन, विभिन्न संस्थाओं एवं मंचो पर कार्यक्रम प्रस्तुति।
सम्पर्क- B 35, सुखमय विहार
चाँदमारी, वाराणसी
उत्तर प्रदेश
221003