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कोलाहल से परे : एक अनूठी पुस्तक- मीना दत्ता

कोलाहल से परे : एक अनूठी पुस्तक- मीना दत्ता

समीक्ष्य पुस्तक- कोलाहल के परे
रचनाकार- डॉ० कामायनी शर्मा
विधा- लघुकथा
प्रकाशक- इरा पब्लिशर्स, कानपुर
संस्करण- प्रथम, 2024
पृष्ठ संख्या- 115
मूल्य- 230 रुपए

डॉ० कामायनी शर्मा का लघुकथा संग्रह है कोलाहल से परे। पाँच-सात दिन पहले पुस्तक विमोचन में मैं उपस्थित रही। हाथ में पुस्तक थी, कोमल रेशमी स्पर्श पुस्तक कलेवर का और उस पर उकेरी एक स्त्री, मानों कामायनी शर्मा जी न जाने कितने मानवीय सम्वेदनाओं के कोलाहल पर व्यथित हों! प्रत्येक हृदय के कोलाहल को सकारात्मक दिशा दे रही हैं अपनी कलम के जादू से।

शीर्षक और पुस्तक कलेवर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है किसी पुस्तक के लिए पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने में। प्रथम दृष्टि का आकर्षण, अंदर पढ़ने को आतुर स्वतः ही पाठक हो सकते हैं। 'कोलाहल से परे' कुल 87 लघुकथाओं का संग्रह है। लेखिका का अपना देखा, अनुभव किया हुआ पार्क, घर, दुकान, कार्यस्थल, बस, सड़क, हाट आदि स्थल पर मानवीय संवेदनाओं के कोलाहल को बहुत ही सरल सहज तरीके से बयान किया है।

पुस्तक की शीर्षक लघुकथा 'मालती के साठ साल के पति' सोमवार बाज़ार के संध्या कोलाहल में अपने मन के कोलाहल की सुनते हैं और खिलौने बेचते युगल से बचे खिलौने में कुछ ख़रीद लेते हैं। घर के रैक पर सजा रखते है। बचपन, जो पीछे छूटा है, उसे जीते मालती के पति, ख़ुद के कोलाहल पर मरहम साथ में खिलौने वाले की परोक्ष मदद।

लघुकथा 'बोझ' में बाबूजी बेटे-बहु के घर पत्नी की मृत्यु के बाद स्वयं को उपेक्षित महसूस करते, बहु बेटे की बातें सुनते हैं। स्वयं के लिए जिसमें उनकी इतनी परवाह का राज़ पता चलता है तो उपेक्षा का आंतरिक कोलाहल दूर चला जाता है और जीवन जीने की ललक पुनः अंगड़ाई लेने लगती है। 'पाकड़ का वृक्ष' लघुकथा में लेखिका पाकड़ के वृक्ष के लिए मर्मान्तक संवेदना को मुखरित करती हैं। 'दंड' लघुकथा में रामनाथ जी सड़क पर पड़े 1000 रुपये उठाते हैं लोभवश, फ्रीज ठीक करने आये मैकेनिक को 1200 देते हैं 200 अतिरिक्त यह कहकर पत्नी से कि 200 रुपये मन के लोभ का दंड हुआ।

लघुकथा 'दृष्टिकोण' में पति-पत्नी दुकान के लिए अशुभ हुए आज, जबकि दुकान वाले ने कुछ न कहा। कल पुनः दुकान जाते हैं सकुचाते डाइनिंग टेबल के लिए शीशे के टॉप लेने। इसी तरह 'मुआवजा', 'जिसमें सबका भला हो', 'मोतीचूर का लड्डू', 'अर्थ के अनर्थ' आदि लघुकथाओं में हमारे आसपास घूमते, उठते, बैठते, चलते लघुकथा के सभी पात्र हैं।

कामायनी जी की भाषा कतई क्लिष्ट साहित्यिक नहीं। अलंकरण, प्रतीक-बिम्ब नहीं लेकिन एकदम ख़ास, सरल भाषा में लिखी सभी कहानियों के पात्र मन में उतरते चले जाते हैं। कामायनी जी ने हिंदी की क्लिष्टता से परे कितनी ही सम्वेदनाओं को सहजता से पाठक के हृदय में उतारा है।

सबसे बड़ी विशेषता न जाने मनुष्य दिन प्रतिदिन के वातावरण, परिस्थितिजनित अंतर कोलाहल से इतना जूझ रहा है कि नकारत्मकता से स्वभावतः घिरता जा रहा है, ऐसे में कामायनी जी ने 87 लघु कथाओं में मानव मन के कोलाहल को नई दिशा दी, सकारात्मक सोच के साथ, पात्रों के माध्यम से।
कथा पढ़कर कितने ही अवसाद मिट सकते हैं पाठकों के। नई दृष्टि से अपनी सोच को, जो उनके अंदर का शोर है, उसे खत्म कर सकते हैं, कम कर सकते हैं।

इन लघुकथाओं की प्रासंगिकता आज के वर्तमान में और बढ़ जाती है। समयाभाव के संकट से घिरे हम सब लघुकथाओं को कम समय देकर पढ़ सकते हैं।
बहुत शुभकामनाएँ और बधाई कामायनी जी को एक उच्चकोटि के लघुकथा संग्रह के लिए।

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रचनाकार परिचय

मीना दत्ता

ईमेल : duttameena39@gmail.com

निवास : पानीपत(हरियाणा)

जन्मतिथि- 26 जनवरी 1956
जन्मस्थान- गुरमाहा, दरभंगा, बिहार
शिक्षा- BA ( Pol Sc.Hons), एम .ए ( इतिहास), BEd
संप्रति-अवकाश प्राप्त,के.वी( केंद्रीयविद्यालय )
प्रकाशन
* कोई पुस्तक नहीं,बहुत पत्र -पत्रिकाओं में गद्य, पद्य की सभी विधाओं में लेखन और प्रकाशन, काव्य संग्रह में कविताएं प्रकाशित
* पुस्तक समीक्षक, 
* फेसबुक पर साहित्य लेखन,
विशेष- बहुत समूहों से जुड़ी हुईं,  online काव्य गोष्ठी, पुस्तक समीक्षा
अपना साहित्यिक मंच का संचालन एवं प्रबंधन,
प्रसारण- आल इंडिया रेडियो पर प्रसारण, दरभंगा से...विद्यापति का निर्वाण
सम्मान/पुरस्कार- राष्ट्रीय / राज्यस्तरीय कोई पुरस्कार नहीं।
पता
 फ्लैट न. 1C, आनंदश्री अपार्टमेंट, लोहिया पथ, जगदेव पथ, पटना- 800014.
बिहार, 
विला न. G1/7, sec. 6, Phase 2, Eldeco Estate One, Panipat, Haryana, pin : 132103