Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

कानपुर का नवजागरण भाग सात- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण भाग सात- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर में सन् 1914 में प्रथम छात्र आन्दोलन राजकीय स्कूल के हेडमास्टर जे.एम. होल्ट के विरुद्ध हुआ था। कारण यह था कि परेड में उन दिनों पानी की टंकी बन रही थी, और स्कूल के लड़के मध्यावकाश में उसे देखने गए और वहाँ वे मिस्त्रियों से किसी बात पर लड़ बैठे, और अच्छी मारपीट हुई।

प्रथम छात्र-आन्दोलन

कानपुर में सन् 1914 में प्रथम छात्र आन्दोलन राजकीय स्कूल के हेडमास्टर जे.एम. होल्ट के विरुद्ध हुआ था। कारण यह था कि परेड में उन दिनों पानी की टंकी बन रही थी, और स्कूल के लड़के मध्यावकाश में उसे देखने गए और वहाँ वे मिस्त्रियों से किसी बात पर लड़ बैठे, और अच्छी मारपीट हुई। दूसरे दिन पुलिस को लेकर मिस्त्रियों ने स्कूल में प्रवेश किया। होल्ट ने पुलिस को कक्षाओं में जाकर उन लड़कों को पकड़ने की अनुमति दे दी जिनको वे मिस्त्री पहचान लें। पचास लड़के गिरफ्तार हुए। छात्रों में असन्तोष जागा और दूसरे दिन बिना किसी नारेबाजी और धरने के सम्पूर्ण स्कूल में हड़ताल रही और सम्पूर्ण स्कूल के भीतर तथा नगर के प्रमुख भागों में ये पोस्टर चिपके हुए मिले: "जे. एम. होल्ट इस्कायर ह्वाइट स्किन्ड स्वाइन, डंकी, मंकी चिड़िया।" यह हड़ताल भावी नेताओं के प्रबल संगठन शक्ति की पूर्व भूमिका थी। सी.आई.डी. तक इस अभूतपूर्व छात्र हड़ताल के आयोजनकर्ताओं का पता न लगा पाई।

होमरूल लीग की शाखा स्थापित

सन् 1915 में गोखले के निधन पर परेड में विशाल सभा का आयोजन हुआ जिसमें कानपुर ने अश्रुपूरित श्रद्धान्जलि दिवंगत नेता के प्रति अर्पित की। सभा बाबू नारायणप्रसाद निगम की अध्यक्षता में हुई थी। "पूर्ण" जी ने अपनी अन्तिम कविता "गोखले! हा गोखले!" इसी अवसर पर पढ़ी। वे भी कुछ मास उपरान्त दिवंगत हो गये। गणेश जी केसमूह में से अब डा. मुरारीलाल जी राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगे थे। डा. मुरारीलाल बड़े निष्ठावान व्यक्ति थे और म्युनिसिपल बोर्ड के हेल्थ आफिसर पद को त्याग कर वे जन सेवा मे आए थे। प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के शब्दो में "अपने दीर्घ जीवन में स्वप्न में भी डा. मुरारीलाल ने उल्टे पाँव रखने की नहीं सोची। कई बार जेल यात्रा कर विपत्तियों को झेल कर सदा तप्त कांचन की भाँति वे चमके। इस समय तक की अवधि में कानपुर सार्वजनिक जीवन में जो पुरानी वजह के रईसी ठाट-बाट वाले सरकिर के पिछलगुए नेता थे वे डाक्टर साहब के सार्वजनिक क्षेत्र में पदार्पण करने से चिढ़ते थे और फिकरे कसते थे। इस गुट में अनेक रायबहादुर और खां बहादुर थे।" इसी समय डा. जवाहरलाल का भी कांग्रेस मे पदार्पण हुआ और आपने अनेक कांग्रेस कार्यकर्ताओं और गरीबों का नि:शुल्क उपचार करके उनके प्राणों की रक्षा की है। वैसे डा. जवाहरलाल जी ने बड़े मनोयोग से शीर्षस्थ नेताओं की अभ्यर्थना की है और सभी आंदोलनों में जेल जाने के साथ ही साथ अपने परिवार के भविष्य और अर्थ के संबंध में सदैव बड़े सतर्क एवं कर्तव्यरत रहे हैं। कानपुर की पुरानी नेता मंडली में अब केवल लाला सालिगराम बजाज और डाक्टर जवाहरलाल ही भगवान की कृपा से हमारे मध्य विद्यमान है।
सन्1916 में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा संचालित होमरूल लीग की शाखा कानपुर में प० रामप्रसाद मिश्र के आवास मेस्टन रोड में खुली थी। लीग का दो रंग वाला झण्डा लाल और हरा मिश्र जी के मकान पर लहराता रहता था। प० रामप्रसाद मिश्र, प० पृथ्वीनाथ मिडिल स्कूल, इटावा बाजार में सहायक अध्यापक थे, किन्तु हेड मास्टर सजीवनलाल से न पटने के कारण आपको त्यागपत्र देना पड़ा। इसी विद्यालय में कुछ समय तक श्री गणेश शंकर विद्यार्थी तथा श्री नारायणप्रसाद अरोड़ा भी अध्यापक रह चुके थे। मिश्र जी प्रतिभा सम्पन्न और स्वाध्यायरत व्यक्ति थे। हिन्दी, अंग्रेजी, राजनीति आदि पर आपने विशेष व्युत्पन्नता प्राप्त कर ली थी। आपने क्रमश: "जीवन"और "उत्साह" नामक साप्ताहिक पत्र निकाले, किन्तु वे सभी शीघ्र ही काल कवलित हो गए। आप आर्थिक अभाव में भी लंगोटी पर फाग खेलते रहे। मिश्र जी कानपुर कांग्रेस के निर्माताओं में हैं और कांग्रेस के सभी आंदोलनों में आपका सक्रिय सहयोग रहा और आप कई बार जेल भी गए। आपकी कभी भी गणेश जी से नहीं पटी और आप वास्तविक अर्थों में गणेश जी के प्रतिद्वंदी रहे। आपका अपना अलग गुट था। ये थे अतिशय वर्चस्वपूर्ण व्यक्ति।

******************
क्रमशः

1 Total Review
K

Kailash Bajpai

18 May 2025

कानपुर में रुचि रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी।

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।