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जानकी वाही विष्ट की लघुकथाएँ

जानकी वाही विष्ट की लघुकथाएँ

जानकी वाही विष्ट की दिल को छू लेने वाली लघुकथाएँ पढ़िए। 

एक- सावन की महक

"हे इंदर देव, कित्ता बरस रहे हो? आज चार रोज हो गये मूसलाधार पानी पड़ते।और ये बूढ़व भी जाने कहाँ चले गये इस पानी में।"

चिंता और बैचेनी से हरुली ने दरवाज़े से बारिश की दीवार के पार देखने की असफ़ल कोशिश की, पर कुछ नज़र ना आने पर सिगड़ी में दो और लकड़ियाँ  डाल ठण्डे हाथ सेंकने लगी। तभी सीढ़ियों में फच फच की आवाज़ सुन दरवाज़े की ओर लपकी। देखा पति बारिश में लथपथ कांपता दोनों हाथों में भुट्टे थामे द्ववार पर खड़ा है।

"ये ले बूढ़ी!  दाँत तेरे अब ठहरे नहीं शौक भुट्टे खाने। सुबह से कह रही थी भुट्टे खाने की हुड़क (तलब) लग रही है। बहुत ठंडा लग रहा है। जल्दी से सूखे कपड़े तो दे।"

भुट्टे हरुली के हाथ में थमाए ही थे जग्गी ने कि हरुली ने दन्न से सारे भुट्टे वहीं जमीन पर दे मारे और बिफर कर बोली-

"इन भुट्टों के लिए मरने गये थे इस तूफ़ान में बाहर। कहीं रपट जाते तो? ये उमर है तुम्हारी ऐसे में बाहर जाने की ? पत्थर पड़े ऐसी अकल पर।"

कपड़े हाथ में पकड़ा गुस्से में हरुली रसोई में जा घुसी।

 कपड़े बदलते जग्गी राम का भुट्टे लाने का सारा उत्साह पानी में बह गया।

"ये हरुली भी? पलटन वाले साहब ठीक कहते थे इन औरतों को समझना आदमज़ात के वश का नहीं।" मन ही मन बुदबुदाते और

पलटन के दिनों को याद कर सिगड़ी की आँच को ठीक कर हाथों को सेंकते जग्गी ने उदास नज़रों से खिड़की के बाहर देखा।

"ये लो चा, दालचीनी वाली कड़क बनाई है तुम्हारी पसन्द की। तुम तो अभी भी जुवान समझते हो अपने को। भीगी हड्डियों में जान आ जायेगी।"

हरुली चाय देकर तौलिये से जग्गी राम का सिर पोंछने लगी।जग्गी राम ने कनखियों से देखा भुट्टे अपनी जगह पर नहीं थे। बरसता सावन और भुट्टे भूनने की सौंधी महक से  घर सराबोर हो चुका  था।

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दो- जुगनू

मैंने जहाज की खिड़की से नीचे झाँका तो शीशे के पार बहुत नीचे रोशनी से नहाया एक शहर दिखा। ऊपर से ये शहर कितने सुव्यस्थित और सुंदर लगते हैं। एक साफ़ कटा बर्फी का टुकड़ा सा, मेरे होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

"काश कि ये नीचे भी इतने ही सुंदर होते?"

मैं, शीशे पर होंठ सटाकर हौले से बुदबुदाया। सहयात्री ने मेरे इस बचपने को देखा और मुस्कुराया।

"हम सब एक बचपन हमेशा जीते हैं चाहे उम्र के कितने भी पड़ाव पार कर लें। मुझे राजीव गुप्ता कहते हैं।"

बात करने की पहल की उसने। उसकी दिलचस्पी अब मुझमें जग चुकी थी।

"मैं अनिरुद्ध  जोशी!" कहकर मैं फिर अपने में ग़ुम हो गया। मैं तुरन्त उड़कर अपनी नन्हीं परी के पास पहुंचना चाहता था। मैंने जेब से एक ख़त निकाला और पढ़ने लगा।

"कोई इंतज़ार कर रहा है?"

इस बार सहयात्री ने औपचारिकता छोड़ पूछ ही लिया।

"हाँ ,मेरी नन्ही बिटिया और मेरी प्रिय अर्धांगिनी, हमारे आँगन की पहली कली है ये ।"

"पहली बार उसे देखोगे?"

"नहीं, मैं तो उसके नौ महीने के सफ़र के एक-एक पल का साक्षी हूँ। पर हमारे आँगन में उतर कर वह आजकल अपने ननिहाल आई है। आज मैं वहीं जा रहा हूँ।"

मुझे लगा मैं बोलते-बोलते ख़ुशी के अतिरेक से भर उठा हूँ।

"हूँ... पहली बार पिता बने हो, इसलिए उत्साहित हो।" लगा सहयात्री की दिलचस्पी अचानक मुझमें खत्म हो गई।

"मैं एक बात बोलूँ?"

सहयात्री ने प्रश्नवाचक नज़र मुझपर डाली।

"मेरी पत्नी ने नौ महीने में जो कुछ जिया या सहा, मैं उसका मोल नहीं चुका सकता।"

"इसमें कौन सी नई बात है? हर औरत जो माँ बनती है ये सब करती है उसमें मोल चुकाने की क्या बात है।बच्चा उसका भी तो है।"

उसकी लापरवाही से लबरेज़ बात मुझे चुभ गई।

"पर मैं महसूस करता हूँ औरत की भावनाओं और त्याग को!"

"अच्छा! तो आप क्या मोल देंगें? "अब उसकी आवाज़ में परिहास छलक रहा था।

मैंने बिना बोले अपने हाथ का ख़त उसे पकड़ा दिया। जिसे पढ़ते हुए उसके चेहरे पर कई रंग गुज़र गये। 

प्रिय, शेफाली

गर्भ दिया, रक्त दिया; त्याग किए, क्या न सहा।

कोख़ दी, चैन दिया; उफ़ न की, कुछ न कहा।

प्यार दिया, अन्न दिया; रोग लिए, व्यवसाय रुका।

शक्ति दी, मुस्कान दी; सामने हर दर्द झुका।

मैं कृतज्ञता से इस मोल का एक अंश देता हूँ

'जननी' हमारी 'बेटी' को तुम्हारा वंश देता हूँ।"

तुम्हारा अनिरुद्ध

सहयात्री ने अबूझी आँखों से देखते हुए ख़त मुझे लौटाया , जिसे मैंने साथ लाई रजनीगन्धा की टोकरी में हौले से रख दिया। मेरी पत्नी मेरे प्यार के लिए।

"तुम क्या सोचते हो? तुम समाज को बदल दोगे?" वह कुछ अकबकाया सा लगा।

"नहीं, जुगनू ने ये कभी कहा कि वह संसार को रोशन करता है?”

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रचनाकार परिचय

जानकी विष्ट वाही

ईमेल :

निवास : नोएडा (उत्तर प्रदेश)

जन्म स्थान- पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड
शिक्षा- एम.ए.अर्थशास्त्र,बी.एड.
लेखन विधा- लघुकथा,कहानी , कविता,हायकू और वर्ण पिरामिड, व्यंग्य और सामयिक विषयों पर  लेखन ,आलेख
पिता का नाम- श्री मोहन सिंह बिष्ट
संप्रति- शिक्षिका एवम् लेखिका
प्रकाशन- कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में कथाएँ प्रकाशित। लघुकथा ,हायकू और वर्ण पिरामिड के साझा संकलन प्रकाशित।
संपर्क- बी.150, प्रथम तल
सेक्टर 15, नोयडा, 201301, उत्तर प्रदेश
मोबाइल- 7838405528