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घनाक्षरी के भेद-मनोज शुक्ल 'मनुज'

घनाक्षरी के भेद-मनोज शुक्ल 'मनुज'

इससे पूर्व अंकों में आप घनाक्षरी के आठ भेदों (मनहरण घनाक्षरी,रूप घनाक्षरी, जनहरण घनाक्षरी, डमरू घनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी, विजया घनाक्षरी,कृपाण घनाक्षरी व हरिहरण घनाक्षरी)के बारे में पढ़ चुके हैं। इस अंक में पढिए शेष चार भेद। 

इससे पूर्व अंकों में आप घनाक्षरी के आठ भेदों (मनहरण घनाक्षरी,रूप घनाक्षरी, जनहरण घनाक्षरी, डमरू घनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी, विजया घनाक्षरी,कृपाण घनाक्षरी व हरिहरण घनाक्षरी)के बारे में पढ़ चुके हैं। शेष चार भेद निम्न हैं:-

9. सूर घनाक्षरी- (30 वर्ण) -8, 8, 8, 6 अंत में गुरु या लघु कुछ भी ही सकता है।

उदाहरण

चार चरणों में लिखें,आठ,आठ,आठ,छह,
मात्रा नहीं गिनें आप,अक्षरों का ध्यान।

वर्ण कुल तीस ही हैं,अंत में गुरु या लघु,
सूर है घनाक्षरी ये, श्रेष्ठ यह ज्ञान।

सीखिए सिखाइए भी,आपको मिलेगा यश,
विद्या दान ही है होता,बहुमूल्य दान।

श्रेष्ठतम छंद है ये,भेद भी अनेक हैं ही,
लिखते घनाक्षरी हैं ,यह अभिमान।

-मनोज शुक्ल"मनुज"

10.मनोज घनाक्षरी- (30 वर्ण)- 8,7,8,7 यतियों पर अन्त्यानुप्रास (अन्तरतुकान्तता)होता है।सिंहावलोकन,15-15 वर्णों पर यति व चरणान्त गुरु।

उदाहरण

है घनाक्षरी प्रकार तीस वर्ण ढाला है,
अंतर तुकांत लिए छंद मतवाला है।

मतवाला है घुमावदार लगे जाला है,
दृष्टि सिंह वाली गुरुता ने रचा पाला है।

पाला गुरुता ने दीर्घ चरणान्त डाला है,
पंद्रह -पंद्रह पर यति वाली माला है।

माला है"मनुज"वाली शुभ मृगछाला है,
है उमंग देने वाला छंद ये निराला है।

-मनोज शुक्ल"मनुज"

11.कलाधर घनाक्षरी- (31 वर्ण) -8, 8, 8, 7 प्रत्येक चरण में गुरु लघु क्रम से पंद्रह बार व अंत में गुरु होता है।

उदाहरण

राम नाम है अमोघ,मंत्र कष्ट काट- काट,
आपको प्रदान दिव्य ,ज्ञान हो व मान दे।

दुष्ट नाश हो स्वमेव,संत का बढ़े समाज,
पाप नष्ट हो समूल,आन -बान -शान दे।

नाम का प्रभाव लक्ष्य,उच्च हों बढ़े प्रभाव,
देश काल में समस्त, सृष्टि में बखान दे।

कौन कर्म के विधान, से बचा रहा सदैव,
किन्तु राम नाम सत्य,मोक्ष का सुदान दे।

-मनोज शुक्ल"मनुज"

12.देव घनाक्षरी- (33 वर्ण) -8, 8, 8, 9 और चरणान्त में तीन लघु होते हैं।

उदाहरण

प्रेम परिदृश्य होते , हैं अदृश्य गुम से हैं,
मन फिर टीसता है, जाता है दरक-दरक।

त्याग प्रतिमान होते, हैं धड़ाम व अचेत,
गणितीय बुद्धि जब, जाती है ठरक-ठरक।

मान अभिमान यदि,प्रेम पर छूट गया,
शीशा प्रेम वाला फिर,जाता है दरक-दरक।

तर्क से न प्रेम बचे, और बचती न भक्ति,
सुख वाली पोटली भी, जाती है सरक-सरक।

-मनोज शुक्ल"मनुज"

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रचनाकार परिचय

मनोज शुक्ल 'मनुज'

ईमेल : gola_manuj@yahoo.in

निवास : लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

जन्मतिथि- 04 अगस्त, 1971
जन्मस्थान- लखीमपुर-खीरी
शिक्षा- एम० कॉम०, बी०एड
सम्प्रति- लोक सेवक
प्रकाशित कृतियाँ- मैंने जीवन पृष्ठ टटोले, मन शिवाला हो गया (गीत संग्रह)
संपादन- सिसृक्षा (ओ०बी०ओ० समूह की वार्षिकी) व शब्द मञ्जरी(काव्य संकलन)
सम्मान- राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश द्वारा गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' पुरस्कार
नगर पालिका परिषद गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत सम्मान
भारत-भूषण स्मृति सारस्वत सम्मान
अंतर्ज्योति सेवा संस्थान द्वारा वाणी पुत्र सम्मान
राष्ट्रकवि वंशीधर शुक्ल स्मारक एवं साहित्यिक प्रकाशन समिति, मन्योरा-खीरी द्वारा राजकवि रामभरोसे लाल पंकज सम्मान
संस्कार भारती गोला गोकरन नाथ द्वारा साहित्य सम्मान
श्री राघव परिवार गोला गोकरन नाथ द्वारा सारस्वत साधना के लिए सम्मान
आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा सम्मान
काव्या समूह द्वारा शारदेय रत्न सम्मान
उजास, कानपुर द्वारा सम्मान
यू०पी०एग्री०डिपा०मिनि० एसोसिएशन द्वारा साहित्य सेवा सम्मान व अन्य सम्मान
उड़ान साहित्यिक समूह द्वारा साहित्य रत्न सम्मान
प्रसारण- आकाशवाणी व दूरदर्शन से काव्य पाठ, कवि सम्मेलनों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता
निवास- जानकीपुरम विस्तार, लखनऊ (उ०प्र०)
मोबाइल- 6387863251