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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

डॉ० ज्योत्सना मिश्रा की कविताएँ

डॉ० ज्योत्सना मिश्रा की कविताएँ

उस अंतिम वर्षा के
उस भीगे पल में
एक बूँद थी मैं !
तुम्हारी हथेलियों की गुनगुनी
ताल में गीत सी बहकती
अब पतझड़ की पीत गंध हूँ
बिखरी दूर तक
दिशायें मुग्ध हैं मेरे
वैराग्य पर!

एक

प्रेम दिन की दस्तक है अँधेरों पर
प्रेम रहता है हरे पेड़ो पर

प्रेम चिड़िया की
चोंच में दबा तिनका है
प्रेम घोसलों का स्वप्न है
प्रेम सूरज के होने की संभावना है
प्रेम सुबहों का जश्न है

दिन भर की मशक्कत के बाद मिली रोटी है
प्रेम शाम को घर लौटने की आस है
प्रेम नदी नहीं
नाव नहीं ,नाविक नहीं
प्रेम दिशा है धारा की
किनारो का उल्लास है

प्रेम तुलसी का चौरा है
ध्रुव तारे की अपलक दीठ है
अरघ देती व्रती स्त्री है
इबादत में झुकी पीठ है

प्रेम बेटी को कॉलेज छोड़ता बाप है
प्रेम गीले में सोई माँ है
प्रेम नीलामी है मौसमों की
जो भी जैसा भी है जहाँ है


प्रेम लौटता हुआ चाँद है
प्रेम चकोर की भीगी हुई पुकार है
प्रेम पार्क की सूनी बेंच है
प्रेम बारिश का इंतजार है

प्रेम दुख की सुतवाँ जवानी है
प्रेम सुख की सतरंग कहानी है
प्रेम अनपढ है ,प्रेम ज्ञानी है
प्रेम चुप रह जाना है
प्रेम जंग का बहाना है
प्रेम उगना है बंजरों में
प्रेम चलना है खंजरो पे
प्रेम मीरा का गीत गाना है
किसी जंगल में भटक जाना है

प्रेम में खोना है प्रेम का पाना
प्रेम में होना है खुदा हो जाना .....

*****************

दो

प्रीत ,तुम अपरिचित ही रहना.
लहरों में मन की ,
अभिमंत्रित तिनके सी बहना .
अनजाने राग में ,
अनहोनी लय में कविता कहना .
माधुर्य प्रेम का अनिश्चित ,
क्षणभंगुर है चंद्रिका का रूप .
और उतनी ही नश्वर,
समय की कटु ,तीखी धूप
इसलिये न विचलित होना.
ठहरना अद्वैत में ,
आँखों से स्वप्न सी झरना .
प्रीत तुम अपरिमित ही रहना .
मुठ्ठी भींचे रह गये संकल्प सभी ,
आश्वासन दरकने लगे हैं .
रुपहली अनुभूतियों के कालीन ,
पाँव तले से सरकने लगे हैं .
इसलिये न रुकना,मोहित हो
पड़ेगा द्वंद से उबरना
प्रीत तुम अजनबी ही रहना
बारूदी गंध बिंधे ,
भोली शाखों के ,
रक्त ह्रदय हरसिंगार .
वंध्या हो गयी धरती ,
चल रहीं तेजाबी हवायें,
बंद करो द्वार .
आओ ,सामूहिक शोक करें !
अब किसका बाकी है मरना ?
प्रीत तुम अनमनी ही रहना .

*****************

तीन प्रेम कवितायें

उस आदिम पल के बाद

उस अंतिम वर्षा के
उस भीगे पल में
एक बूँद थी मैं !
तुम्हारी हथेलियों की गुनगुनी
ताल में गीत सी बहकती
अब पतझड़ की पीत गंध हूँ
बिखरी दूर तक
दिशायें मुग्ध हैं मेरे
वैराग्य पर !

तुम यूँ ही रहो

तुम्हारी पीठ के
विस्तार पर मुझे उकेरना है
ऊँगलियों से एक महाकाव्य
तुम टोकना मत
हिलना मत
यूँहीं रहना वीतराग
स्पंदन विहीन
पीठ मेरी तरफ किये हुये

कितना कम

कितना कम कहना था
कितने कम शब्दों की जरूरत थी मुझे
कितने धीमे से बस फुसफुसा कर लेना था
तुम्हारा नाम !
ओ मेरे शब्दातीत सुनो!
नहीं लिया
कहाँ कह पायी ?
उतना भी ?

*****************

चार

सुनो एक बार मिलो फिर

मिलो कि समय की रेत में ,
दबा आये थे खेल खेल में ,
डूबते सूरज की जो अँगूठी ,
खोजनी है वो .
खोजनी है कि ,
सुबह की उँगली पर सूना पड़ा ,
निशान सज जाये.
बहुत अकेली है नदी,
नाम लेकर पुकारती है तुम्हें .
और बुलाती है ,
तट पर औंधी पड़ी कश्ती .
और,
शाख के छोर पर जो छोड़ दी थी तनहा,
पतझड़ में भी न टूटी ,
वो निकम्मी उदास पत्ती.
और,
वो मुठ्ठी भर हवा जो मेरी खुश्बुओं से झगड़कर भी ,
पहुँच सकी न थी तुम तक.
तुम्हें मेरी उम्र के उस नमकीन पल की कसम.
मिलो कि तराशनी है पेंसिले दर्द की
छीलने हैं रेशे एहसास के बलूत से
और बनाना है एक ज़र्द कागज़
याद जैसा
और लिखनी है कविता !
लिखनी है न ?

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4 Total Review
D

Divakar Pandey

18 February 2025

वाह बढ़िया कविताएं

वसंत जमशेदपुरी

17 February 2025

प्रेम पगी उत्कृष्ट कविताएँ

गायत्री सिंह

15 February 2025

बहुत ही सुंदर रचनाएं खास करके प्रेम पर जो पंक्तियां हैं वह लाजवाब है

सरोज सिंह परिहार

14 February 2025

खूबसूरत रचनाएँ

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रचनाकार परिचय

ज्योत्सना मिश्रा

ईमेल : docjyotsna1@gmail.com

निवास : नई दिल्ली

नाम- डॉ० ज्योत्सना मिश्रा 
जन्मस्थान- कानपुर

शिक्षा- एम बी बी एस, डी जी ओ
सम्प्रति- स्त्री रोग विशेषज्ञ
विधा- कविता, कहानी, लेख एवं यात्रा-वृतांत
प्रकाशन- औरतें अजीब होती हैं (काव्य संग्रह)
देश के प्रतिष्ठित पत्र , पत्रिकाओं में लेख, कहानी एवं कविताओं आदि का प्राकाशन।
सम्पादन- साझा-स्वप्न 1 (साझा-काव्य संग्रह)
सम्मान- विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित  
संपर्क- नई दिल्ली 
मोबाईल- 9312939295