Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
वरिष्ठ कथाकार अमरीक सिंह ‘दीप’ का साक्षात्कार- राजेश क़दम

भले ही उपनाम ‘दीप’ है, लेकिन साहित्य की तिलिस्मी दुनिया की मायावी गहरायी में डूबने-उतराने वाले अस्सी और नब्बे के दशक में अधिकांश नवांकुर लेखक और लेखिकाओं को सूरज की तरह रोशनी देने वाले अमरीक सिंह ‘दीप’ आज भी अपनी ऊर्जा और सृजन की भूंख का ईंधन तलाशते रहते हैं। स्वभाव से निहायत घुमक्कड़, जिज्ञासु, विनम्र, सहज, सरल और संकोची अमरीक सिंह ‘दीप’ हमेशा से ही किसी संस्था, ग्रुप और गुट से ख़ुद को बचाते-छिपाते रहे हैं। 

रमेश बक्षी का पूर्व में लिया गया साक्षात्कार- प्रतिमा श्रीवास्तव

उनका पूरा घर उनके व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति का राज़ खोलता है। सबसे पहले यह मुझे अपनी स्टडी में ले गये।- एक खूबसूरत झोपड़ीनुमा कमरा जो बाँस से बना था, ऊपर एक लालटेन लगी थी। और मेज पर रखा था टाइपराइटर।

सुधा अरोड़ा का साक्षात्कार- गंगा शरण सिंह

तराजू में तौलकर मैंने कागज़ नहीं रँगे

कथाकार प्रेम गुप्ता 'मानी' से कल्पना मनोरमा की बातचीत

प्रेम गुप्ता 'मानी' सुप्रसिद्ध लेखक और 'यथार्थ कथा संस्थान' की संस्थापिका रहीं, जिन्होंने कविता, कहानी, लघुकथा समेत साहित्य की सभी विधाओं में क़लम चलाई। 'बाबूजी का चश्मा' उनका चर्चित कथा संग्रह है। उनके कथा साहित्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। प्रेम गुप्ता मानी जी की कहानियों में किस्सागोई का आनंद तो मिलता ही है, साथ में उनकी कथाएँ सीधे-सीधे समाज में आमजन से जुड़ती हैं। मानी जी एक दोस्त लेखक रहीं। उनकी लिखी कहानियों से पाठक झटपट जुड़ जाता है। मानी जी बहुत ही मृदुभाषी स्वभाव की लेखिका रहीं। उनसे बात करके ज्ञात होता रहा कि वे प्रौढ़ साहित्य के साथ बाल साहित्य लिखने में भी रुचि रखती थीं। उनका साहित्य कल्पना के साथ यथार्थ की भी बात करता है। प्रेम गुप्ता मानी जी के साहित्य को पढ़ते हुए बार-बार जिज्ञासा उत्पन्न होती रही कि इतनी सुंदर कृतियाँ सिरजने वाली मानी जी का अपना जीवन कैसा रहा होगा? उन्होंने लेखन की प्रेरणाएँ कहाँ से प्राप्त की होंगी, जो उन्हें साहित्य सृजन ही नहीं साहित्य सेवा की राह पर लेकर आईं। मानी जी ने बड़े खुलेपन और साफगोई से मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। इसके साथ ही उनके जीवन के कुछ ऐसे पहलू भी जानने को मिले कि मुझे लगा, मैं उन्हें एक नए रूप में जान रही हूँ।

प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की प्रमुख स्तंभ प्रेम गुप्ता मानी जी से कल्पना मनोरमा के द्वारा लिया गया साक्षात्कार, जो उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं के उद्घाटन के साथ-साथ साहित्य की कई गंभीर सवालों की भी पड़ताल करता है।