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वीणा चंदन के गीत

वीणा चंदन के गीत

आए दिन उत्सव के
गीत के गुंजार के

कुछ सपने स्नेेहिल
छाँह छाँह पलते हैं
कुछ मरुथल रातों में
बूँद बूँद गलते हैं

झरते अंजुरियों में
फूल हरसिंगार के

गीत- एक

कुछ पल जैसे
बन प्रवास के पंछी आते,
ताल सरीखे
मन में तिरते,
नहीं ठहरते,
दूर देश को क्यों जाते हैं

मृदुल तरंगे
ठहरे जल को
गहरे तक
उन्मन कर जातीं,
संग साथ अठखेली करते
जगी उमंगें,
बाँच रही
अनबीती बातें,
लहरों को
जोगन कर जातीं,

फिर तो ज्यों
हर घाट वियोगी,
ऐसे जोगी
अपने मन को
क्यों भाते हैं.....

भोर विदाई
बेला में
अँसुआई आँखें
सँवलाए सपनों को रोतीं 
बिखरे आँसू बन के मोती
क्षितिज छोर तक
भीग रहीं हैं
पुनः मिलन की
सब आशाएँ
मौन हो उठीं 
सभी दिशाएँ

तपती आस
बुझा ना पाते
बस ललचाते
ऐसे बादल
क्यों आते हैं .....

******************


गीत- दो

आए दिन उत्सव के
गीत के गुंजार के

कुछ सपने स्नेेहिल
छाँह छाँह पलते हैं
कुछ मरुथल रातों में
बूँद बूँद गलते हैं

झरते अंजुरियों में
फूल हरसिंगार के

कोई छवि करती है
सुधियों में पहुनाई
लहकाती अंतरमन
भावों की तरुणाई

नैनों में नव दर्शन
आगत के द्वार के

सुरभित दिशाओं ने
खोले हैं वातायन
मानस के मंदिर में
नेह गीत का गुंजन

सुमिरन में महके क्षण
मान के मनुहार के

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गीत- तीन

सहज नहीं मनुहारों का
गंतव्य बिंदु तक जाना,
अझुराए संवादों के अब
सिरे नहीं मिलते हैं,

कुछ संकेतों अनुमानों पे
सपने हैं पथराए
इस अरण्य सभ्यता में मन
पहर पहर भर आए,

सधते नहीं राग,
सरगम के
बिखरे स्वर हिलते हैं।

जीवन से भी सुंदर
मुस्कानों के रंग सजाए,
एक अहेरी संबोधन की
माया में उलझाए,

कौन कहे, समझाए
मन के भेद नहीं खुलते हैं। 

सूनी पगडंडी है
और कुछ रुकी हुई संज्ञाएँ,
पूर्ण विराम लगाती सी
स्मृतियों की रेखाएँ

सिहरे क्षण
लय,आलापों के
हाथ थाम चलते हैं।

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गीत- चार

नये कथानक रचते
कितने,
बाँच नहीं पाते हैं
मन आँखों की भाषा से क्यूँ
अनकहनी कह जाता है। 

साँसों में
हरदम रहता है
एक अनिर्णय का भारीपन,
कितने संदेशों को फिर से
दुहराते हैं
बिन संबोधन,

यूँ तो बादल
हवा चाँदनी
बनके हाल सुनाया,
कहने को फिर भी जाने क्यूँ
कितना कुछ रह जाता है। 

परिचय का स्पर्श
बदलता रंग,
पिघलता
भीतर भीतर,
बहुत सहेजा
लेकिन कुछ यादों के हिस्से
में बस पतझर। 

जिन लहरों पे
उम्मीदों के रखे थे उजियारे,
रेत महल उनसे ही देखो
सपनों का ढह जाता है। 

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गीत- पाँच

पुलक भरे क्षण की
परछाई
हरदम साथ रही। 

पीले पन्ने
एक अधूरी
बात उचारे,
तरल छुअन
अक्षर अक्षर के
पाँव पखारे

बीते मौसम ने
धीरे से
कोई बात कही। 

आँखों में
मुस्कानों के
पैबंद लगाते ,
थकता मन
जीवन में
महके छंद सजाते

चुभन मिथक
बनते सपनों की
क्यों हर बार सही। 

आँगन गलियों में
उतरे
झिलमिल हरकारे ,
पर सहमे अँधियारे
किसकी
राह निहारे

पुरवाई पैगाम किसी का
लेकर
रात बही। 

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रचनाकार परिचय

वीणा चन्दन

ईमेल :

निवास : देवरिया (उ०प्र०)

विधा- गीत
संप्रति- शिक्षिका (बेसिक शिक्षा परिषद,
उ०प्र०)