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सुनीता जैन 'रूपम' की कविताएँ

सुनीता जैन 'रूपम' की कविताएँ

काँच की आलमारी के अंदर
तुम्हारी तस्वीर लगा कर
नहीं बनाना चाहती तुमको
प्रदर्शन की वस्तु।
तुम तो आज भी प्रतिष्ठित हो
मेरे हृदय पटल पर,

एक- मधुर स्मृतियाँ तुम्हारी

मैंने अपने विशाल ड्राइँग रूम में
नहीं लगाई है तुम्हारी तस्वीर।
मैं ड्राइँग रूम में बनी
काँच की आलमारी के अंदर
तुम्हारी तस्वीर लगा कर
नहीं बनाना चाहती तुमको
प्रदर्शन की वस्तु।
तुम तो आज भी प्रतिष्ठित हो
मेरे हृदय पटल पर,
किसी प्रतिमा की तरह।
मैंने ड्राइँग रूम में
मेज पर रखे हुए
पीतल के कलात्मक फूलदान में
नहीं सजाए हैं गुलाब के फूल।
क्योंकि
मेरा अंतर्मन तो सुवासित होता रहता है
तुम्हारी मधुर स्मृतियों से।
मेरे कानों में गूँजते रहते हैं
तुम्हारे हँसने, खिलखिलाने के
मधुरिम स्वर।

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दो- प्रीत

प्रीत होती है गहरी वहीं
जहाँ कोई आस न हो
कुछ पाने की।
बस बिना किसी स्वार्थ के
सिर्फ़ चाहत हो,
प्रगाढ़ चाहत।
रांझा ने क्या माँग लिया था
अपनी हीर से!
क्यों उकर आए मजनू के
घाव
मासूम लैला की
हथेलियों पर!
क्यों डूब गया महिवाल
किसी सोहनी से
मिलने की आस में!
यूँ ही नहीं बन गईं,
ये मिसालें इनकी प्रीत की।
ये तो हैं
चंद निशानियाँ
उस प्रगाढ़ प्रीत की।

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रचनाकार परिचय

सुनीता जैन 'रूपम'

ईमेल :

निवास : अजमेर (राजस्थान)

जन्मतिथि- 10 जुलाई, 1959 
शिक्षा- स्नातकोत्तर (इतिहास), अपराध शास्त्र में डिप्लोमा और आपराधिक विधि में स्नातकोत्तर।
संप्रति- पूर्व सहायक निदेशक अभियोजन, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, विधिक सलाहकार, राजस्थान उच्च न्यायालय, ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’, (महिला प्रकोष्ठ) राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवम मानवाधिकार संगठन।
प्रकाशित पुस्तकें:
‘मेरी भी कविता’, ‘पत्र पिता के’, ‘अश्क प्रीत के’, ‘अनुभूति एक एहसास’, ‘मेरा भी विमर्श’, ‘श्रेष्ठ लघुकथाएं’, ‘प्रेम सागर’, ‘भारत की आधुनिक हिंदी कवयित्रियां’, ‘सृजना नवांकुर’, ‘मेरे प्रिय साहिबे कलम’, ‘मैं बाबुल की परछाई’ (सभी साझा संकलन)

विशेष- राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से ‘मखमली आवाज’ काव्य संग्रह का प्रकाशन।
संपर्क- C-3, वैशाली नगर, अजमेर।
मोबाइल- +91-92148-06294