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देवेन्द्र कुमार पाठक 'महरूम' के गीत

देवेन्द्र कुमार पाठक 'महरूम' के गीत

हमने दुख को मीत बनाया !
 
हाथ हिला, कह 'हैलो' हँस दिया,
सुखाभास भुजपाश कस लिया,
पर अछोर आकाश दुखों का
दो आंखों में नहीं समाया, 
 
नयनकोर से बहा अश्रु बन
शोकगीत निःशब्द सुनाया।

गीत- एक 
 
हमने दुख को मीत बनाया !
 
हाथ हिला, कह 'हैलो' हँस दिया,
सुखाभास भुजपाश कस लिया,
पर अछोर आकाश दुखों का
दो आंखों में नहीं समाया, 
 
नयनकोर से बहा अश्रु बन
शोकगीत निःशब्द सुनाया।
 
जब भी हुआ पारिभाषित सुख
दुख के ही सापेक्ष हुआ,
पर दुख सदा स्वयं सत्यापित,
स्वानुभूत, निरपेक्ष हुआ।
 
आखिर सुख के अट्टहास का
आँसू पर ही हुआ समापन,
हर बासंती राग विरागी
आतप के आगोश समाया।
 
यह जड़हीना अमरवल्लरी सा
जंजाल जीव जग जीवन,
फूल फल रहा दुख धरती पर
हर दिशि, हर पग,हर दिन,पल-छिन।
 
दुख के पास कभी जा बैठें,
उसका साक्षात्कार कर सकें,
दुख में भी सुख सिरज रहे हैं
हमने दुख को मीत बनाया।
 
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गीत- दो 
 
लहालोट भेड़ों की रेहड़
 
समय हुआ कब भला- बुरा,
कब किसके पक्ष- विपक्ष हुआ;
समय - आरसी में हम हैं जो
वह ही सत्य समक्ष हुआ।
आशय- अर्थ बदल शब्दों के
मनमाफ़िक परिभाषा गढ़ ली,
वाग्चातुरों ने अमानुषिक
लिप्साओं की सीढ़ी चढ़ ली;
 
अंतिम जन के सुख सपनों का
स्वीकृत लक्ष्य अलक्ष हुआ।
 
खैराती चारे पर होती
लहालोट भेड़ों की रेहड़,
औंधेमुँह गिर रहीं गर्त में
धार छुरों पर देते बूचड़;
 
मात्र छाँव का आश्वासन है
छल खजूर का वृक्ष हुआ;
          
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रचनाकार परिचय

देवेन्द्र कुमार पाठक 'महरूम'

ईमेल : devendrakpathak.dp@gmail.com

निवास : कटनी (मध्य प्रदेश)

जन्मतिथि- 27 अगस्त 1956
लेखन विधा- वरिष्ठ कथाकार, कवि
संप्रति शिक्षक पद से सेवानिवृत्त। अब अध्ययन, लेखन, काश्तकारी।
प्रकाशनउपन्यास, कहानी, कविता, व्यंग्य, कथेतर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित। चार दशक से लेखन, पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन।
सम्मान- विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित
संपर्क- 1325, साईपुरम कॉलोनी, कटनी, मध्यप्रदेश
मोबाइल- 8120910105