Ira Web Patrika
जुलाई 2025 अंक पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
कविता का अरण्य- डॉ० शिव कुमार दीक्षित

‘मनुष्य को खंडित रूप में देखने की जिस शैली का सूत्रपात तुम सबने किया है, उससे सिंहासन सदैव अभिशप्त रहेगा और मैं इस बार रघुनंदन का अवतरण बड़ी सावधानी से रचूँगी। अब रघुनंदन किसी दशरथ के आँगन में नहीं , निषाद के श्रद्धापूत कठौते के निर्मल जल में अवतरित होंगे , जिसमे मेरी वैदेहीस अरण्य में सदैव के लिये मनुष्यता की कविता का विहार सज्जित हो सकेगा और तब कविता शब्दमयी नहीं ध्वनिमयी होकर मनुष्यता का संकीर्तन भी होगी‘

तालाब: ग्राम्य जीवन का आधार- आशा पाण्डेय

हमारी संस्कृति में प्रकृति के विभिन्न रूपों– जिनसे हमें कुछ प्राप्त होता है, हमारा जीवन सहज हो चलता है– के प्रति कृतज्ञ होने की परम्परा है। बरगद, पीपल, तुलसी, साँप, गाय, बैल आदि के प्रति कृतज्ञ होकर उनकी पूजा करने वाला ग्राम्य-जीवन भला तालाब की पूजा को कैसे भूलता! इसलिए घर के वैवाहिक उत्सवों में तालाब पूजन का विधान रखा गया।