कविता का अरण्य- डॉ० शिव कुमार दीक्षित
‘मनुष्य को खंडित रूप में देखने की जिस शैली का सूत्रपात तुम सबने किया है, उससे सिंहासन सदैव अभिशप्त रहेगा और मैं इस बार रघुनंदन का अवतरण बड़ी सावधानी से रचूँगी। अब रघुनंदन किसी दशरथ के आँगन में नहीं , निषाद के श्रद्धापूत कठौते के निर्मल जल में अवतरित होंगे , जिसमे मेरी वैदेहीस अरण्य में सदैव के लिये मनुष्यता की कविता का विहार सज्जित हो सकेगा और तब कविता शब्दमयी नहीं ध्वनिमयी होकर मनुष्यता का संकीर्तन भी होगी‘