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शालिनी सिन्हा की बाल कहानी 'सच हुआ सपना'

शालिनी सिन्हा की बाल कहानी 'सच हुआ सपना'

रूई की फाहों सी गिरती सफ़ेद बर्फ़ ने सारे घरों को ढक लिया था। सड़कें, मकान की छतें, पेड़ पौधे जैसे सब सफ़ेद चादर ओढ़े हुए थे, प्रकृति के पास मानो और कोई रंग ही ना बचा हो! ये दृश्य देख कर घर की खिड़की से झाँकती याना की आँखों से भी जैसे सब रंग ग़ायब हो गए थे।

रूई की फाहों सी गिरती सफ़ेद बर्फ़ ने सारे घरों को ढक लिया था। सड़कें, मकान की छतें, पेड़ पौधे जैसे सब सफ़ेद चादर ओढ़े हुए थे, प्रकृति के पास मानो और कोई रंग ही ना बचा हो! ये दृश्य देख कर घर की खिड़की से झाँकती याना की आँखों से भी जैसे सब रंग ग़ायब हो गए थे। आज उसका जन्मदिन है पर सुबह से ही घर में कितना सूना लग रहा था ! पिताजी तो सुबह उसके उठने से पहले ही काम पर चले गये थे, माँ ने सुबह पूजा का प्रसाद देते समय मुस्कुराती आँखों से जो आशीर्वाद दिया था उसके बाद शांत हो काम में ऐसी व्यस्त हो गई थी मानो उन्हें कुछ याद ही ना हो कि आज क्या है! माँ का यह व्यवहार उसे तक़लीफ़ दे रहा था।

उसने माँ के पास जाकर ख़ुश होते हुए माँ से पूछा, “ माँ, आज कौन सी फ्रॉक पहनूँ ?” माँ ने बिना कोई विशेष ध्यान दिये हुए कहा कोई भी फ्रॉक पहन लो पर ऊनी मोज़े ज़रूर पहनना, आज ठण्ड बहुत है! माँ के इस उत्तर से उसकी उदासी और बढ़ गई, उसे मोतियों वाली गुलाबी फ्रॉक याद आ रही थी जिसे घाटी के पास वाली काकी ने विशेष उसके जन्मदिन के लिए बनाया था और प्यार से कहा था कि, " इसे अपने जन्मदिन के रोज़ ज़रूर पहनना।" पर माँ को कुछ याद ही नही, उसे अपनी बेटी की फ़िक्र ही नहीं, याना ने उदास होते हुए सोचा।

दोपहर हो चुकी थी, पर सतरंगी चिड़ियों , सुनहरी बिल्ली और बंदर के शोर से गूँ जने वाली घाटी आज कितनी शांत लग रही थी। सोना, मोनू, मोलू और गुब्बारे वाले काका सब अपने घर मे छुपे बैठे थे कोई चाहकर भी बाहर नहीं निकल सकता, बाहर बर्फ़ ही बर्फ़ थी।" मैं अपने दोस्तों से आज कैसे मिलूँगी !" उसने उदासी से सोचा, "पिताजी भी शायद मेरा जन्मदिन भूल गए हैं ... किसी को कोई खुशी ही नहींं!" वो दूर क्षितिज में देखते हुए सोचने लगी। दूर गिरती बर्फ़ के कारण आकाश भी सफ़ेद दिख रहा था। उसको ये बर्फ़ आज बिलकुल अच्छी नहीं लग रही थी।

कितने सुंदर सुंदर सपने देखे थे अपने जन्मदिन के लिए! ये सोचते सोचते पता नहीं कब उसकी आँख लग गई। कुछ देर बाद अचानक किसी के स्पर्श से उसकी नींद खुल गई। माँ उसके सिरहाने बैठी धीरे से उसे जगाने की कोशिश कर रही थी। उसने अलसाई आँखों से माँ की ओर देखा, उनके चेहरे पर चमक थी और हाथों मे गुलाबी फ्राक! उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम ये फ्रॉक पहन लो तो कितनी अच्छी लगोगी, मैंने इससे मेल खाता मोतियों वाला रिबन बनाया है और वैसे ही गुलाबी मोज़े बुने हैं।"

ये सुनकर उसकी खुशी और अचरज का ठिकाना नहीं रहा। आह... लगता है माँ आज सुबह से मोज़े और रिबन बिन रही थीं, ये रिबन और मोज़े तो बहुत सुंदर हैं ! उसकी प्रसन्नता अनायास ही शब्द बन कर फूट पड़ी। फ्रॉक पहन कर उसे लगा मानो हर तरफ मधुर संगीत बज रहा हो!

"अरे ! ये क्या है ? " उसने आश्चर्य से माँ से पूछा, कमरे में एक चार पहिये वाली नाव रखी थी, वो कौतूहल से उसे देखने लगी, आज तक उसने ऐसी नाव नहीं देखी थी।

"तुम्हारे पिताजी घाटी के उस पार से लाये हैं।” माँ ने खुश होते हुए बताया, इस नाव की विशेषता यह है कि ये पानी में भी चल सकती है और ज़मीन पर भी। अच्छा ! उसने आश्चर्य से कहा। "पिताजी कहाँ हैं ?" उन्हें ढूँढते हुए उसने पूछा। आज उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ना थ , अचानक ही उसकी आँखों में उदासी की जगह चमक आ गई।

"वो तुम्हारे दोस्तों को लेने गए हैं, इतनी बर्फ़ में वो अकेले कैसे आ पायेंगे?" माँ ने फूलों के रस का शरबत बनाते हुए कहा। "अरे वाह !" उसने मुस्कुराते हुए कहा। तभी सामने से पिताजी के साथ नीमा, मोलू , मोना और सोना को आते देख याना खुशी से उछलने लगी। थोड़ी ही देर मे बच्चों की बातों और उनकी शरारतों से पूरे घर का माहौल बदल गया। सबने मिलकर उसके जन्मदिन का गीत गाया। माँ ने सबको फूलों का शरबत, मेवे की खीर तथा फलों की रंग बिरंगी चॉकलेट खिलाई। मालू ने उसे उपहार में लकड़ी का घोड़ा दिया जिसके पंख भी थे, सोनू ने उसे अपने हाथो से काढ़ा हुआ रूमाल तथा सोनू और नीमा ने उसके पसंद के रंग बिरंगे रिबन।

"पिताजी मेरे दोस्तों को लाने के लिए धन्यवाद और इस पहिए वाली नाव के लिए भी !" याना ने पिताजी से खुश हो कर कहा। पिताजी ने मुस्कुराते हुए आशिर्वाद दिया "हमेशा खूब खुश रहो, कभी किसी का बुरा मत सोचो!"
"जी पिताजी!" उसनें गंभीर हो कर कहा।

"मेरे पिताजी और माँ कितने समझदार और अच्छे हैं और मैं कितनी नासमझ !" वो मन ही मन सोचने लगी। तभी सोनू ने पियानो के स्वर छेड़ दिये, बस फिर क्या था, धीरे धीरे करके सब उसकी धुन पर थिरकने लगे। याना ने तभी खिडक़ी से बाहर देखते हुए माँ से कहा, “ये बर्फ़ से ढके पेड़ और घर कितने सुंदर लग रहे हैं…… है ना माँ!”

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वसंत जमशेदपुरी

22 April 2025

एकदम बाल -मन को झंकृत करने वाली कहानी

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रचनाकार परिचय

शालिनी सिन्हा

ईमेल : shalini9dps@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 9 नवंबर 67
जन्मस्थान- कानपुर , उत्तर प्रदेश
लेखन विधा- कविता एवं कहानी
शिक्षा- M.Sc , B. Ed
सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन
प्राकाशन- * कविता संग्रह पारिजात  , साँझा संकलन कादंबरी , साझा स्वप्न इत्यादि
* दैनिक जागरण समाचार पत्र में कुछ लेख प्रकाशित
विशेष- अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमो में सहभागिता का अवसर
उत्तर प्रदेश संगीत एवं नाटक अकादमी द्वारा अभिनय के लिए प्रथम पुरुस्कार
संपर्क- B 3 - 102,  शालीमार विस्ता, गोमतीनगर, लखनऊ(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल- 9729276222