Ira Web Patrika
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

राजीव राज के गीत

राजीव राज के गीत

प्रतिबन्धों के बन्धन तोड़ें, संतृप्ति के पार चलें।
पिंजड़े तोड़ें सभी नापने अम्बर का विस्तार चलें ।।

गीत- एक 

अपना कहूँ कि सपना कह दूँ। 
सच ना कहूँ कल्पना कह दूँ।
खुशी कहूँ ना तो खुशियों के,
दर पर सजी अल्पना कह दूँ।
मोड़ ज़िंदगी का फिर द्वार तुम्हारे लाया है।
ऐसा लगता है यादों का मौसम आया है।।

सोया मधुबन सारा, गन्ध अकेली जाग रही।
अश्कों से धो-धो कर चाँद,सहेली जाग रही।
घात रात की सहता, कहता व्यथा नहीं मन की
दीपक इधर जल रहा, उधर चमेली जाग रही।
पूरी कहूँ, अधूरी कह दूँ।
जाती सही न, दूरी कह दूँ।
सूनी मांँग कभी अभिलाषा
की, न हुयी सिन्दूरी कह दूँ।
विरह वारुणी पीकर मौन मुखर हो आया है
ऐसा लगता है यादों का मौसम आया है।।

तुम्ही हृदय की धड़कन जीवन का एहसास तुम्हीं।
भले गगन से दूर, हृदय के सबसे पास तुम्हीं।
मन - मंदिर में बजी चेतना की घंटी का स्वर,
जाकर वापस लौटी साँसों का विश्वास तुम्ही।
चंदन कहूं कि बंधन कह दूँ।
या सुख का गठबंधन कह दूँ।
जीवन की आपा - धापी में,
कर ना सका अभिनंदन कह दूँ।
स्वयं समय ने आज आरती थाल सजाया है।
ऐसा लगता है यादों का मौसम आया है।।

चंदा के मुख पर देती है थकान दिखाई सी।
लजा रहे हैं हंस, सुबह लगती शरमाई सी।
ओस कली के मुख पर जैसे बूँद पसीने की,
भेद रात का, खुलने के भय से घबराई सी।
पायल कहूं कि आंचल कह दूं।
खुली विगत की साँकल कह दूँ।
कल न कहीं पा सका आज तक
मन, तुमको ही हाँ कल कह दूँ।
गीतों के पथ ने भी बस तुम तक पहुंचाया है
ऐसा लगता है यादों का मौसम आया है।।

जो भी खोया पाया, रोया गाया बस तुमको।
दर्द गीत में भर-भर कर पहुँचाया बस तुमको।
जब नैनो का दीप बुझा कर सोयी निंदिया भी,
कंगन की खनखन खन बना जगाया बस तुमको
साधन कहूँ , साधना कह दूँ।
पूजन कहूँ , अर्चना कह दूँ।
पीठ कहूँ जिसकीपरिक्रमा की
या भक्ति भावना कह दूँ।
मन का पंछी उड़ जहाज को छोड़ ना पाया है
ऐसा लगता है यादों का मौसम आया है।।

******************


गीत-दो

ख़्वाहिशों के फूल महके
आस के खग वृन्द चहके
हसरतों के हाथ पीले
पायलों के सुर लज़ीले
झुक रहा आकाश भू पर
छा रहा मधुमास भू पर
बज उठी हर मन चमन में धुन भ्रमर गुंजार की।
साँकलें खटकीं हृदय के द्वार की।
याद आयी पहले-पहले प्यार की।।

वो विकल मन ले भटकना जैसे आवारा पवन।
भाव के अनुवाद वाला कार्ड देने की लगन।
लाल स्याही से बने दिल में छपा वो एक अक्षर,
आरती का श्लोक था वो और संध्या का भजन।
जब किताबों में छुपाए
इष्ट के नज़दीक आये
साँस की आँधी में बिखरी कोशिशें इज़हार की।
हालते दिल पर हँसी दिलदार की।
याद आयी पहले-पहले प्यार की।।

सीढ़ियाँ लट की उतर कर जल अधर तक आ गया।
मेघ का मोती गुलाबी गाल को सहला गया।
रूह तक महका गया जब रूप का बादल छलक कर,
एक सौंधा सन्दली झौंका क़दम बहका गया।
साँस पर छायी ख़ुमारी,
रात दिन थी बेक़रारी।
कामना की डाल पर थीं कोंपलें मनुहार की।
गुदगुदाती सावनी बौछार की।।
याद आयी पहले पहले प्यार की।।

सीप ज्यों फेंकी किसी ने झील में हलचल हुयी।
घंटियाँ बजने लगी थीं प्रश्न सी वो हल हुयी।
चाँदनी बेकल हुयी जब चूमने नीरज नयन ख़ुद,
दूधिया जग हो गया था यामिनी संदल हुयी।
हंस थे मन के मगन सब,
संग तारों के गगन जब,
चल पड़ा था देखने को झाँकियाँ शृंगार की।
मालती महकी शरद में प्यार की।
याद आयी पहले पहले प्यार की।।

स्वप्न सम्मुख था कि जिसको आँख का काजल किया।
दीप सा ज्योतित स्वयं को जिस लिए पल पल किया।
गोद कम्बल और मफ़लर नर्म बाहों का बनाकर,
ओढ़ ली हमने रुबाई, गीत को मखमल किया।
जब ठिठुरती शीत आयी।
प्रीत ने तब थी निभाई।
हर रिवाजो रस्म मन से,
स्वागतो सत्कार की।
सर्द लम्बी रात ने हद प्यार की।
याद आयी पहले पहले प्यार की।।

चिन गयी फिर रीत की ही भीत में यह भी कथा।
प्रीत के हिस्से हमेशा की तरह आयी व्यथा।
जो मिला है वो रहेगा कब तलक, जाना न कोई,
जो खिला वो तो झरेगा क्यों न माने दिल बता।
चक्र ऋतुओं का अटल है।
वक़्त तो जाता बदल है।
बाद बारी शीत के आती सदा पतझार की।
चाँदनी तो है सहेली ज्वार की।
याद आयी जीत वाली हार की।
याद आयी पहले पहले प्यार की।।

******************


गीत- तीन

हुयी तो हर बरस बारिश कभी सावन कभी भादौं,
मगर जो बात इस बारिश में है , पहले नहीं थी वो।।

धुले पत्तों पे छम - छम नाचती बूँदें पहन पायल।
रिझातीं लोच भर कर देह में, नैना करें घायल।
वो छूते ही परस्पर घुल के एकाकार हो जाना।
कि जैसे कह रहीं सबसे, यही है प्यार हो जाना।

ये बूँदें कब नहीं थिरकीं, हवाओं के इशारों पर,
मगर जो बात इस जुंबिश में है , पहले नहीं थी वो।।

भिगोये तन बदन देखो, तने को चूमती डाली।
न रहने दे रही चैतन्य, सौंधी गन्ध मतवाली।
घटाओं के खुले जूड़े, लुढ़कता जल, धरा बेसुध।
विफल तटबंध, संयम खो न दे ऐसे में क्यों सुधबुध।

इरादों का हिमालय कब नहीं घेरा घटाओं ने,
जो शोख़ी आज की साज़िश में है , पहले नहीं थी वो।।

पपीहे गा रहे रह रह के मीठे प्रेम के दोहे।
कपोतों की जुगलबंदी लुभाये सबका मन मोहे।
खड़े हैं जो कि बरसों से शिलाएँ मौन की लादे।
निभाने आ गयीं हैं बिजलियाँ उनसे किये वादे।

मेहरबाँ हो गया मौसम, फिरे दिन पर्वतों के भी
जो मस्ती आज इस बंदिश में है, पहले नहीं थी वो।।

******************


गीत- चार

संकोचों के बन्धन तोड़ें परम्परा के पार चलें।

प्रेम मुक्ति है, प्रेम शक्ति है, अपरिमेय अनहद है।
अवरोधों को तोड़ उमड़ पड़ता निर्झर है, नद है।
है जनमों के संस्करण से परे, अनादि, चिरन्तन,
प्रेम कि जिसको बाँध न पायी रूप रंग की ज़द है।

दरस परस के बन्धन तोड़ें, अहसासों के पार चलें।
भौतिक साज़ सिंगार मुखौटे तन के सभी उतार चलें।।

बादल सा कुछ पिघल रहा बस बहने को आमादा।
प्रबल प्रवाह थामना मुश्किल वेग नदी का ज़्यादा।
नियम, व्यवस्था, संस्कार के छोटे-छोटे साँचे,
शब्दों की अपनी सीमाएँ, भाषा की मर्यादा।

व्याकरणों के बन्धन तोड़ें, परिभाषा के पार चलें।
गहरे उतरें और उफनती नदिया की मँझधार चलें।।

देखो पर्वत पर तटमुक्त नदी कैसे बल खाए।
जैसे हिरणी भरे कुलाँचें जहाँ जिधर जी चाहे।
ख़ुशबू ने भी कब माना है उपवन का अनुशासन,
गोद फूल की छोड़ पवन की साँसों में घुल जाए।

प्रतिबन्धों के बन्धन तोड़ें, संतृप्ति के पार चलें।
पिंजड़े तोड़ें सभी नापने अम्बर का विस्तार चलें ।।

******************

0 Total Review

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

राजीव राज

ईमेल :

निवास : इटावा (उत्तर प्रदेश)

नाम- डा० राजीव राज
जन्मतिथि- 08-12-1975
शिक्षा- एम०एससी० ( रसायन विज्ञान) पी०एच०डी०
बी० एड०, एम०ए० (हिन्दी साहित्य), एम०ए० (संस्कृत साहित्य), एम०ए० (भूगोल), साहित्य रत्न (प्रयाग)
सम्प्रति- शिक्षण एवं स्वतन्त्र लेखन
प्रकाशन-
गीत संग्रह- वेदना के फूल
सम्पादन- सम्पादन
श्रीकृष्ण उदघोष (त्रैमासिक पत्रिका)
ज्योत्स्ना (वार्षिक पत्रिका)
पुरस्कार एवं सम्मान- श्री के0एल0गर्ग सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान-2014
(माननीय मुख्यमन्त्री उ०प्र०शासन, श्री अखिलेश यादव द्वारा ) प्रहलाद यदुवंशी अलंकरण-2015
(महामहिम राज्यपाल उ०प्र०शासन, श्री राम नाईक द्वारा )
मानव संसाधन विकास मन्त्रालय भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला
राष्ट्रीय शिक्षक पुरूस्कार-2015
( महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा)
पं0 दुर्गाप्रसाद दुबे स्मृति सम्मान-2016
(मानस मंच कानपुर द्वारा )
चौ0 चरण सिंह स्मृति साहित्य सम्मान - 2017
(माननीय लोक निर्माण मंत्री उoप्रoशासन, श्री शिवपाल सिंह द्वारा )
महाप्राण निराला सम्मान-2018
( निराला स्मृति संस्थान डलमउ, रायबरेली द्वारा )
शिक्षक - साहित्यकार अलंकरण 2018
(शिवोहम साहित्यिक संस्था कानपुर द्वारा )
गोपालदास नीरज युवा गीतकार सम्मान-2018 (गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट आगरा द्वारा )
डा० विष्णु सक्सेना गीत सम्मान (तृतीय) - 2018
(सरला नारायन ट्रस्ट द्वारा )
कविवर बृजशुक्ल घायल काव्य रत्न सम्मान-2019
(साहित्यप्रेमी मण्डल, हिन्दी भवन दिल्ली)
विशेष- ब्राण्ड अम्बेसडर, नगर पालिका इटावा, स्वच्छ भारत अभियान
सदस्य, जिला विकलांग कल्याण बोर्ड, इटावा
सम्पर्क- 239 प्रेम विहार विजय नगर इटावा उ0प्र0-206001
मोबाइल- 9412880006, 7017232011