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पूजा अग्निहोत्री की लघुकथाएँ

पूजा अग्निहोत्री की लघुकथाएँ

 
नवल और नीता का प्रेम विवाह था। लेकिन जबसे उनके जीवन में नन्ही परी ने दस्तक दी उनके परिवार में तो खुशियाँ बढ़ी लेकिन उन दोनो में दूरियाँ बढ़ती जा रही थी।
कारण भी समझ में नही आ रहा था।

एक- वंदे मातरम
 
"दादी, ये जो मालिन काकी हैं न, ये कोई बहुत बड़ी हस्ती हैं क्या?" - कहते हुए स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में स्कूल से मिली बूंदी को अपने रूमाल से निकाल कर खाती हुई तेरह वर्षीय श्वेता रसोई में काम कर रही दादी के पास आ बैठती है।
"क्यों ऐसा क्यों पूछ रही है?" 
"मालिन काकी सा को मैं जबसे देख रही हूँ, पूरे गाँव में फूल-पुड़िया ही देती हैं, माली काका कहाँ गये?"
"दस साल पहले भगवान ने अपने पास बुला लिया।"
"अरे! वो कैसे?"
"वो फूल चुनने बगीचे गया वहीं बेला के झाड़ को हाथ लगाते ही, नागराज ने डस लिया। वैसे भी रेगिस्तान के साँप बहुत जहरीले होते हैं, गांव भीतर आने से पहले ही बेचारे ने दम तोड़ दिया, तभी से मालिन ने काम शुरू कर दिया।"
"ऐसे तो कई औरतें काम करके अपना घर चलाती हैं, पर दादा सा मालिन काकी को बहुत इज्जत देते हैं।"
"ऐसी क्या इज्जत दे दी तेरे दादा सा ने?"
"आज झंडा में बाँधने के लिये फूल लेकर आयी थी स्कूल, झंडा फ़हराने के बाद दादा सा ने मालिन काकी सा के पैर छुये, जबकि मैने दादा सा को कभी किसी के सामने झुकते न देखा आज तक, और वैसे भी, जब काकी सा पुड़िया बाँटते हुये कभी रास्ता में मिल जाएं तो भी दादा सा बड़े अदब से हाथ जोड़कर धोक देते हैं।"
"हाँ बेटा, जो तेरी मालिन काकी सा हैं न, वो अपने गाँव के शहीद होने वाले हर वीर जवान के वास्ते ग्यारह पुष्पचक्र भी बनावे हैं जो शहीद जवानों के पार्थिव देह पर डाले जाते हैं।"
"ये तो मुझे भी पता है दादी सा, और ये भी कि वो कोई कीमत भी नहीं लेती, और खुद ही जाती हैं पुष्पचक्र मसानघाट तक पहुँचाने।"
"अरे वाह छोरी, तू तो बड़ा जाने है गाँव के बारे में।"
"दादी सा, पूरे भारत में सबसे ज्यादा शहीद भी तो हमारे ही गाँव के सपूत होते हैं। सब अपने-अपने स्तर से सहयोग करते हैं, लेकिन इस में अलग क्या है दादी सा?"
"एक घटना हुई, तब से मालिन का ओहदा गाँव में सबसे ऊपर हो गया, सब उसे दिल से इज्जत देते हैं।"
"क्या हुआ था दादी सा, मुझे भी बताइये न।"
"रे छोरी! मालिन के भी एक छोरा था, जो उसे 'खाँटू श्याम जी' ने बीती उमर में दिया था।"
"फिर, दादी सा?" ठुड्डी को हाथ पर टिकाते हुये श्वेता बोली।
"वो भी बचपन से ही सेना का जवान बनना चाहता था, फिर उन्नीस का होते-होते वो भी फौज में चला भी गया, और एक दिन खबर आई कि शहीद हो गया। गाँव में चिंता छा गई कि, इस बार पुष्पचक्र कहाँ से आवेंगे?" - आँखों को आँचल से पोंछते हुये दादी बोली।
"फिर...?"
"फिर क्या छोरी, उसकी पार्थिव देह के लिये भी मालिन ने ग्यारह पुष्पचक्र बनाये और मसान तक देने भी खुद ही गयी।"
 
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दो- स्ट्रैचमार्क्स
 
नवल और नीता का प्रेम विवाह था। लेकिन जबसे उनके जीवन में नन्ही परी ने दस्तक दी उनके परिवार में तो खुशियाँ बढ़ी लेकिन उन दोनो में दूरियाँ बढ़ती जा रही थी।
कारण भी समझ में नही आ रहा था।
ये बात नवल की माँ को भी महसूस हो रही थी, पर वो मर्यादावश चुप थी और नीता लज्जावश।
एक दिन परेशान होकर उसने नवल से पूछ ही लिया, "अब ऐसा क्या हुआ कि आप अब मुझसे दूर दूर रहते है।"
"कुछ भी तो नही।"
"नही कुछ तो है, बताओ मुझे सच सुनना है।"
"तो सुनो, तुम्हारे शरीर (पेट) पर पड़े निशान देखकर मुझे घिन आती है। ऊपर से तुमने जो मोटापा बढ़ाया है न, इससे तुम पहले जैसी रही ही नहीं।"
जैसे ही पति ऑफिस के लिए निकले तो सासू माँ ने बहु की आँखें नम देखी। उन्होंने ज्यों ही पूछा उसकी रुलाई फुट पड़ी।
और जब उन्होंने प्यार से सर पर हाथ रखकर पूछा तो नीता के अंदर का लावा शब्दों के रूप में फूट पड़ा। 
उसने बताया, "माँ जी, इनको अब मैं पसंद नही, इन्होंने  कहा कि मेरा बेडौल शरीर देखकर घिन आती है, मेरे पेट के निशान देखकर उल्टी करने का मन होता है।"
शाम को जब नवल घर लौटा तो माँ ने उसके सर में तेल डालने के बहाने से बात शुरू की, और उसे बताया – “दुनिया की कोई भी समतल वस्तु खूबसूरत नही हो सकती। जब तक कि प्रकृति उसपर अपनी चित्रकारी न करे। चाहे वो उन्नत पर्वत श्रृंखला हो या मरुथान के वलय। ठीक उसी तरह स्त्री की देह पर बनने वाले माँसल वलय और उसके पेट पर प्रसव के बाद पड़ने वाले  खरोंच के निशान दुनिया की सबसे खूबसूरत पेंटिंग होती है जो उसके बच्चे ने बनाई होती है।“
नवल की समझ में माँ की बात आ गयी, और उसने मन ही मन आज की रात को मधुरयामिनी बनाने का निश्चय कर लिया और पैदल ही चौराहे की तरफ निकल गया, मोगरे की वेणी खरीदने।
 
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तीन- कौन
 
सुबह-सुबह डायनिंग टेबल पर कप और प्लेट आपस में बात कर रहे थे। कप ने कहा,- "अपना अस्तित्व मिटाकर दूसरों को खुश करना कोई इससे सीखे।"
"सच कहा तुमने, कितनी तपन झेलती है, ताकि किसी के मुँह का स्वाद बना सके।"
"हाँ जैसे पैदा ही रंग भरने के लिये हुई है।"
"देखो, इसके साथ पाते ही पानी भी रंगीन होकर महक उठता है।"
"साथ ही ऊर्जा और ताजगी देने में भी इसकी कोई बराबरी नही कर सकता।"
"सच! इंसानो के लिये अस्तित्व मिटाने के बाद खाद बनकर प्रकृति के फूल-पौधों में रंग भरती है।"
"कौन?", चौंक कर प्लेट ने पूछा।
"चाय! और तुमने क्या सोचा?" कप ने प्रतिप्रश्न किया।
"मुझे लगा 'औरत', वो भी तो...।
 
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5 Total Review
D

Divakar pandey

24 March 2025

तीनों लघुकथाएं अच्छी हैं

S

Sneh goswami

20 March 2025

बहुत प्यारी लघुकथा

S

Salendraa k pyasi

20 March 2025

बहुत सुंदर लिखा आपने उत्कृष्ट शब्दों का संयोजन अच्छी कहानी

S

Sandeep Agrawal

20 March 2025

बहुत ही शानदार प्रस्तुति कमाल का लेखन शब्दों का जबरजस्त चयन

संदीप तोमर

20 March 2025

बेहतरीन लघुकथाएँ

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रचनाकार परिचय

पूजा अग्निहोत्री

ईमेल : agnihotrypooja71@gmail.com

निवास : छतरपुर(मध्यप्रदेश)

जन्मतिथि- 4 सितंबर , 1983
जन्मस्थान- छतरपुर (मध्यप्रदेश)
शिक्षा- इंटरमीडिएट (विज्ञान संकाय), स्नातक (कला संकाय), परास्नातक (अंग्रेजी साहित्य), पीजीडीसीए।
संप्रति- स्वतंत्र लेखन, पटकथा लेखन, ।
अभिरुचि- पाककला, पोषाक सज्जा।
प्रकाशित /अप्रकाशित– अभिनव इमरोज, लघुकथा कलश, किस्सा कोताह, विश्वगाथा, स्रावन्ति (दक्षिण भारतीय हिंदी प्रचारिणी महासभा), दृष्टि, क्षितिज, क्राइम ऑफ नेशन, पलाश, धर्मयुग, इत्यादि पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों में लगातार लघुकथाएँ, कविताएँ, आलेख आदि प्रकाशित।
साझा संकलन- काव्य पुंज, दास्तान-ए-किन्नर।
यूट्यूब चैनल (किडलॉजिक्स, बैडटाइम स्टोरी) के लिये पटकथा लेख ।
विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रकाशित ।
मोबाइल- 7987219458