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नीरजा 'नीरू' के गीत

नीरजा 'नीरू' के गीत

शत्रु संपत्ति समझीं गयीं नारियाँ
वस्तुओं के सदृश मोल उनका हुआ,
आपसी युद्ध हों याकि हों संधियाँ
वस्तु विनिमय सदृश तोल उनका हुआ।

एक- मृत्यु के बाद भी लोक में मान हो

मृत्यु के बाद भी लोक में मान हो
कर्म ऐसे सदा तुम जगत में करो,
मित्र की आँख नम शत्रु भूले नहीं
पाँव परलोक में जो कभी तुम धरो।

रंक हों याकि राजा सभी मूर्तियाँ
माँस- मज्जा लिए श्वाँस पर हैं टिकीं,
एक गंतव्य पर जा रहीं यंत्रवत
ज्यों लगे ये किसी हाथ में हैं बिकीं।

है मरण सत्य शाश्वत युगों से रहा
मौत को मात देकर अमरता वरो,
मृत्यु के बाद भी लोक में मान हो
कर्म ऐसे सदा तुम जगत में करो।

रास में रंग में मर्त्य जो हैं रमे
काल के गर्त में मर्त्य सम हैं मिले,
कर्म की अग्नि में जो तपे रात-दिन
सूर्य सम पुष्प वो हर सदी में खिले।

हो भला झूठ से भी किसी का अगर
लोक में निंदकों से न तुम फिर डरो,
मृत्यु के बाद भी लोक में मान हो
कर्म ऐसे जगत में सदा तुम करो।

दीन के हीन के हित लड़ो लोक में
बेधड़क बात अपनी जगत से कहो,
सत्य कड़वा लगे जो किसी को अगर
रंच भी बात मत तुम किसी की सहो।

संत की भाँति नित नेह वर्षा करो
पीर पल में सदा तुम सभी की हरो,
मृत्यु के बाद भी लोक में मान हो
कर्म ऐसे सदा तुम जगत में करो।

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दो- लेखनी लिखना मन की बात

मिले राजसी भेंट तुझे या
काँटों की सौगात,
लेखनी! लिखना मन की बात।

सच पर डटना सच ही कहना
सच के पथ पर ही चलना,
खोकर अपना मत विवेक तू
जग के साँचे में ढलना।
डिगना मत तू दीन-धर्म से,
हों मुश्किल हालात।
लेखनी! लिखना मन की बात ।

इसके मुँह पर इसकी कहते
उसके मुँह पर उसकी जो,
रखते हैं वे कई मुखौटे
नीयत खोटी जिसकी हो।
हवा संग ये इत-उत डोलें,
बिन डाली के पात।
लेखनी! लिखना मन की बात।

स्याह रंग का है अतीत पर
श्वेत वसन जो धारे हैं,
जीते दुनिया छल-छद्मों से
खुद पर ही जो वारे हैं।
करें कुलीनों की सी बातें,
पंक सने कुछ गात।
लेखनी! लिखना मन की बात।

मोटी रकम ऐंठ कर बाबा
मंचों पर जब आते हैं,
होता पैसा मैल हाथ का
जग को यह बतलाते हैं।
बड़े-बड़ों के कान काटते,
बनते उनके तात ।
लेखनी! लिखना मन की बात।

इस ईश्वर की पूजा करते
उस ईश्वर से नफ़रत हैं ,
फैलाने को घृणा मर्त्य कुछ
करते निशि-दिन कसरत हैं।
सबका रक्त एक जैसा पर,
एक न मानव जात।
लेखनी! लिखना मन की बात।

मन की लिखना मन की कहना
मन पर अंकुश मत करना,
जो भी अच्छा- बुरा लगे तो
लिखने से तू मत डरना।
तू ही ला सकती है जग में,
बिन बादल बरसात।
लेखनी! लिखना मन की बात।

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तीन- चंद्र फिर व्योम पर मुस्कुराने लगा

हट गया जब ग्रहण कालिमा है छँटी
गीत फिर से मिलन के सुनाने लगा,
चंद्र फिर व्योम पर मुस्कुराने लगा।

दाग झूठे जगत ने लगाए सभी
सत्य के साथ से साफ सब हो गए,
चोट गहरी कभी लोक से जो मिली
अश्रु उर में लगे घाव को धो गए ।
रूप धूसर हुआ और पाषाण हृद
आस विश्वास पर डगमगाया हृदय,
व्यंग आक्षेप से नित्य घायल हुआ
भीति पर जीत ने फिर बनाया अभय।

भूत के कष्ट सब भूत को दानकर
पीर अपनी पुरानी भुलाने लगा,
चंद्र फिर व्योम पर मुस्कुराने लगा।

कृष्ण सी थी अमावस बनी जिंदगी
दूर तक राह कोई न सूझे कहीं,
पीर अपनी भला वो सुनाए किसे
हाल तक मीत अपना न बूझे कहीं।
नित्य सुनसान में चीखता था हृदय
मौन ही मौन मन प्रश्न करता रहा,
प्रश्न ही प्रश्न घेरें उसे हर घड़ी
शून्य हल की जगह रिक्त भरता रहा।

दंभ से थे भरे क्षुद्र से दीप जो
दीप्ति से शीश उनके झुकाने लगा,
चंद्र फिर व्योम पर मुस्कुराने लगा।

है कमी तो रही हर किसी में कहीं
पूर्ण कोई कहाँ ही जगत में हुआ ,
दाग से है भरा लोक सारा दिखे
कौन सच्चा यहाँ पूर्ण मत से हुआ।
मेघ सत्कर्म के दोष सारे ढकें
और पीयूष जग को पिलाते रहें,
कर्म आधार हैं मान-अपमान के
कर्म अनुसार फल ये दिलाते रहें ।

मौन एकांत को मित्र अपना बना
ज्ञान की गंग में मन डुबाने लगा,
चंद्र फिर व्योम पर मुस्कुराने लगा।

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चार- प्रेम का घट सभी को न मिलता कभी

प्रेम का पीर से दिव्य अनुबंध है
प्रेम की प्यास उर को हमेशा रही,
भाव की भूख है, भावना भी मगर
प्रेम का घट सभी को न मिलता कभी।

है तपस्या बड़ी माँगता ये रहा
एक दिन की कहानी नहीं प्रेम है,
धैर्य का है हिमालय सरित आस की
राह कोई सुहानी नहीं प्रेम है।
जी सके ये सदी एक पल में कभी
और पल एक लगता सदी सम कभी,
सार इसका नहीं शब्द जो कह सकें
सैकड़ों ग्रंथ इस पर लगें कम सभी।

है समय माँगता और पोषण उचित
प्रीति का पुष्प पल में न खिलता कभी,
प्रेम का घट सभी को न मिलता कभी।

भाग्य दे यातनाएँ बड़ी प्रेम को
प्रेम फिर भी नहीं भाग्य से है डरा,
ले परीक्षा बड़ी से बड़ी विधि कभी
प्रेम युग- युग जिया कब पलों में मरा ।
लाँघ गिरि को गया लाँघ सागर गया
प्रेम ने प्रेम में प्रेम से विष पिया ,
छीनना नेह ने तो न सीखा कभी
प्यार ने तो सदा प्यार ही है दिया ।

स्वत्व को हारकर मौन को साधकर
शून्य को ताकता ओष्ठ सिलता कभी,
प्रेम का घट सभी को न मिलता कभी।

प्रेय को पास पाकर खिले पुष्प सा
प्रीति के ही लिए प्रेम जग से भिड़े,
एक ही नाम केवल हृदय पर रहे
बिक गए प्रेम में तो बड़े से बड़े।
कौन राजा रहा कौन है रंक ही
प्रेम में पद- प्रतिष्ठा रही मौन है,
जाति के धर्म के बंधनों से विलग
प्रेम पूछे नहीं प्रेय से कौन है।

व्यर्थ ही कंटकों से भरे मार्ग पर
पाँव कोई सुकोमल न छिलता कभी,
प्रेम का घट सभी को न मिलता कभी।

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पाँच- रानियों की कथा कौन पोथी कहे

पुस्तकालय पड़े पोथियों से पटे
हैं प्रशंसा करें बस नृपों की सभी,
दासियों की दशा पर सभी मौन हैं
रानियों की कथा कौन पोथी कहे ?

आँकड़े रानियों दासियों के बने
मात्र पर्याय बस भूप के दंभ के,
राव रनिवास हो या हरम शाह का
सब धराधीश की शक्ति के थंभ थे।
राजकन्या बनीं राजरत्नों सदृश
भव्य प्रासाद में माणिकों सी जड़ीं,
कौन पूछे कभी राय उनसे कहीं
जो अलंकार की वस्तु सम हों पड़ीं।

थीं घुटन बेबसी ढो रहीं पीढ़ियाँ
अश्रुपोषित व्यथा कौन पोथी कहे ?
दासियों की दशा पर सभी मौन हैं
रानियों की कथा कौन पोथी कहे ?

शत्रु संपत्ति समझीं गयीं नारियाँ
वस्तुओं के सदृश मोल उनका हुआ,
आपसी युद्ध हों याकि हों संधियाँ
वस्तु विनिमय सदृश तोल उनका हुआ।
राज्य विस्तार के हेतु कारक बनीं
दंभ अभिमान की ये निवारण बनीं,
मूक होकर समाधान बनती रहीं
राज्य की ढाल बन राज्य तारण बनीं।

मातृ अस्तित्व को जो कुचलती रही
क्रूर ऐसी प्रथा कौन पोथी कहे ?
दासियों की दशा पर सभी मौन हैं
रानियों की कथा कौन पोथी कहे ?

मात्र सम्राट को ही रिझाना रहा
देह सौंदर्य से बुद्धि चातुर्य से,
टूटती जूझतीं आपसी द्वंद्व में
हों वही बस प्रिया स्वत्व माधुर्य से।
बाँटना प्रेय को नित्य दुष्कर लगे
रीति फिर भी निभाती रहीं रानियाँ,
शून्य सी रात्रि में ताकतीं चंद्र को
प्रीति फिर भी निभाती रहीं रानियाँ।

भव्य अंत:पुरों की सभी हलचलें
शब्दशः सर्वथा कौन पोथी कहे ?
दासियों की दशा पर सभी मौन हैं
रानियों की कथा कौन पोथी कहे ?

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रचनाकार परिचय

नीरजा 'नीरू'

ईमेल : neerjalal44@gmail.com

निवास : लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

जन्मतिथि- 10 फ़रवरी 1977
जन्मस्थान- ग्राम परसेहरा ( जिला -लखीमपुर खीरी )
लेखन विधा- गीत ,छंद मुक्तक , छंदमुक्त 
शिक्षा- एम.ए., बी.एड.
सम्प्रति- प्रवक्ता
प्राकाशन- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं व संकलनों में रचनाएं प्रकाशित
सम्मान- उड़ान साहित्य रत्न , प्राइड वीमेन ऑफ इण्डिया व अन्य अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित, वूमेन प्रेस्टीज अवार्ड, विभिन्न साहित्यिक मंचों से सम्मान। 
विशेष- १- गोष्ठियों का आयोजन व सहभागिया
          २- सचिव-उड़ान लखनऊ(अंतराष्ट्रीय साहित्यिक संस्था)
संपर्क- 5/243,जानकीपुरम विस्तार लखनऊ ।
मोबाइल- 9721720059