कर्मण्ये वा अधिकारस्ते- डॉ० दीप्ति तिवारी

एक विशेष बच्चे की माँ के जीवन की सफलता का मंत्र।
बचपन से स्कूल में संस्कृत पढ़ते वक्त एक श्लोक पढ़ा था-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥
हमारी शिक्षिका ने इसका अर्थ बताया कि कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, उसके फल में कदापि नहीं। अत: तू कर्म फल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
मेरे बाल मन को इस श्लोक ने आकर्षित किया और अक्सर श्लोक और इसका अर्थ मेरे मानस पटल पर उभर आता था और अपनी आदत के अनुसार मैं इस पर मनन भी करती थी। सैद्धांतिक रूप से मैं इस कथन से पूर्णतया सहमत थी और जब कभी जीवन में कठिन पल आए और अपनी आशा के अनुरूप नतीजे नहीं मिले, इसी श्लोक ने मेरा संबल बढ़ाया और निरंतर आगे बढ़ते रहने में मेरी मदद की।
अब बात करते हैं मेरे कौमार्य की अवस्था को पार करके मातृत्व की अवस्था में आने के बाद के समय की। शादी के लगभग दो वर्ष पश्चात ईश्वर ने मुझे एक प्यारा सा बेटा दिया। आठ-नौ महीने की अवस्था में मुझको एहसास होने लगा कि यह बच्चा कुछ असामान्य है किन्तु क्या समस्या है यह नहीं समझ आता था। इसी उहापोह में समय बीतता रहा और लगभग साढ़े तीन वर्ष की में इस बच्चे को दौरे पड़ने लगे। फिर जो सिलसिला शुरू हुआ अस्पतालों और डाक्टरों के चक्कर लगाने का तो इसका कहीं अंत ही नहीं नजर नहीं आ रहा था। हर बार हम एक नया इलाज शुरू करते तो लगता कि शायद अबकी बार फायदा हो जाएगा और बच्चा ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ न हुआ और बच्चे की स्थिति खराब होती चली गई। साथ ही साथ मेरी मनोदशा भी बिगडती जा रही थी। इसी समय एक कार्यक्रम के दौरान मुझे फिर से श्लोक सुनाई दिया-
"कर्मण्येवा अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचने।। और एक हताश, निराश और परेशान माँ ने एक बार फिर इस श्लोक पर मनन किया। मैने ये पाया कि छात्र जीवन में जो भी चुनौतियाँ आईं उस में स्वयं को फल या रिजल्ट की चिंता ना करके अपने कर्म पर ध्यान देने में मैं सफल रही। किंतु जब भी परिस्थितियाँ ज्यादा विकट हुई, मैंने अपना रास्ता बदल लिया और दूसरे विकल्प की तरफ स्वयं को मोड़ लिया। और इस प्रकार श्लोक की दूसरी पंक्ति आत्मसात नहीं कर पाई। यह एहसास होने के बाद मैं एक बार फिर स्वयं के प्रति जागरूक हुई और निरंतर मनन करके स्वयं को इस बात के लिए तैयार किया कि चाहे फर्क दिखे या ना दिखे, मुझे अपने बच्चे को समय पर दवा देनी ही है। क्योंकि ये ही मेरा कर्म है। फायदा होगा या नहीं ये ईश्वर इच्छा है। साथ ही मन के एक कोने में जो इच्छा थी कि दवा का फायदा दिखने लगे उस इच्छा को मैंने ईश्वर को समर्पित किया। इसका नतीजा ये हुआ कि मन की हताशा और निराशा चली गई। और पूरे उत्साह से अपने कर्म करने लगी। ईश्वर ने वक्त आने पर मुझे इसका फल भी दिया और आज मेरा बेटा पहले से बहुत बेहतर है। और, इस पूरी प्रक्रिया से आज मैं स्वयं को एक सशक्त स्त्री के रूप में देख रही हूँ।
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मैम, आप से सदैव प्रेरणा मिलती है । हमेशा मार्ग दर्शन करती रहें ।
Very inspiring ma'am . Your life experience gives us inspiration not to loose hope and keep fighting with all difficulties of our life with calmness.
ईमेल : deptitew@gmail.com
निवास : कानपुर(उत्तर प्रदेश)
नाम- डॉ० दीप्ति तिवारी
जन्मतिथि- 30 सितंबर 1972
जन्मस्थान- कानपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- एम बी बी एस, एम ए (मनोविज्ञान),डिप्लोमा ( मेंटल हेल्थ), पी जी डिप्लोमा(काउंसलिंग एंड बिहैवियर मैनेजमेंट), पी जी डिप्लोमा(चाइल्ड साइकोलजी), पी जी डिप्लोमा(लर्निंग डिसबिलिटी मैनेजमेंट)
संप्रति- फैमिली फिजीशियन एंड काउन्सलर, डायरेक्टर, संकल्प स्पेशल स्कूल, मेडिकल सुपरिन्टेंडेंट, जी टी बी हॉस्पिटल प्रा. लि.
प्रकाशन- learning Disability: An Overview
संपर्क- फ्लैट न. 101 , कीर्ति समृद्धि अपार्टमेंट, 120/806, लाजपत नगर, कानपुर(उत्तर प्रदेश)
मोबाईल- 9956079347
Indu
09 July 2024दीप्ति जी आप से जब भी मिलो एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है..अपने बच्चे के लिये तो हर माँ सब कुछ करती है लेकिन आप इतने सारे बच्छों के भविष्य के लिए प्रयासरत हैं ये देख के बहुत शक्ति मिलती है। ईश्वर से प्रार्थना है आपके कर्म हमेशा सफलतापूर्वक पूर्ण हो ।🙏