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कानपुर का नवजागरण भाग पाँच- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण भाग पाँच- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

प० पृथ्वीनाथ चक के बाद बागडोर हिन्दी के महाकवि नगर के शीर्षस्थ वकील ओजस्वी वक्ता श्री राय देवीप्रसाद "पूर्ण" के सुदृढ़ हाथो मे आई, उन्होंने कानपुर का चतुर्दिक विकास किया। 'पूर्ण' जी ने कानपुर को जगाया।  

कांग्रेस की बागडोर " पूर्ण " के हाथो में 
 
प० पृथ्वीनाथ चक के बाद बागडोर हिन्दी के महाकवि नगर के शीर्षस्थ वकील ओजस्वी वक्ता श्री राय देवीप्रसाद "पूर्ण" के सुदृढ़ हाथो मे आई, उन्होंने कानपुर का चतुर्दिक विकास किया। 'पूर्ण' जी ने कानपुर को जगाया।  
"कुमति नींद अहो अब त्यागिए,
भारत खंड प्रजा गण जागिए " 
और उसे राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों की ओर सचेष्ट किया। दक्षिण अफ्रीका मे भारतीयों के प्रति हो रहे अमानुषिक अत्याचार के विरोध में थियेटर हाल लाटूश रोड मे आयोजित सभा में आपने ओजपूर्ण भाषण दिया । 
उन दिनों सनातनधर्मियों और आर्यसमाजियों में परस्पर अच्छी चोटें होतीं थीं, और दोनों की ओर के उपदेशक अपनी अपनी बातें बड़े तार्किक ढंग से, किन्तु चुटीली भाषा मे जनता के सामने रखते थे। आर्य समाज के उत्सवों में महात्मा मुंशीराम ( स्वामी श्रद्धानंद), लाला लाजपतराय, महात्मा हंसराज आदि के उपदेश होते रहते थे।  सनातनधर्म के उत्सवों में प० ज्वालाप्रसाद मिश्र, प० भीमसेन शर्मा, प० अखिलानंद, प० कालूराम शास्त्री, प० नन्दकुमार शर्मा, स्वामी दयानंद (आधुनिक), प० नन्दकिशोर शुक्ल आदि आमंत्रित होते थे, और ' पूर्ण ' जी तो परम श्रेष्ठ वाग्मी थे ही | ३ - ४ दिन तक अथवा कभी कभी अधिक दिनों तक आर्यसमाज तथा सनातनधर्म के अधिवेशन समाज के लिए आकर्षण के विषय होते थे | आर्य समाज के कर्णधार थे - बाबू आनन्द स्वरूप , मुंशी ज्वालाप्रसाद , प० जमुनाप्रसाद पांडेय, महाशय चित्रसेन आदि। पूर्ण जी कट्टर सनातनधर्मी, थियोसाफिकल सोसाइटी सदस्य, रसिक समाज के प्राण और श्री ब्रह्मावर्त सनातनधर्म महामंडल के संस्थापक थे। आप म्युनिसिपल बोर्ड के सभासद, और पीपुल्स एसोसिएशन के सभापति रह चुके थे।  कानपुर आपका चिर ऋणी रहेगा। उनके सहयोगियों में ठाकुर महावीर सिंह प्रधानमंत्री, प० चन्द्रशेखर अग्निहोत्री, प० सहदेव प्रसाद आदि थे। 
सन् 1905 में आधुनिक हिन्दी के पितामह आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने कई वर्षों तक जुही में रहकर ही 'सरस्वती' का सम्पादन करते रहे। जुही हिन्दी प्रेमियों का तीर्थ बन गया था। श्री अरोड़ा जी , श्री गणेश जी, श्री उदय नारायण बाजपेयी, प० देवी प्रसाद शुक्ल, श्री शिवनारायण मिश्र, श्री कौशिक जी, प० रमा शंकर अवस्थी, प० बालकृष्ण शर्मा प्रभृति जुही जाकर द्विवेदी जी से प्रेरणा ग्रहण करते थे।  राष्ट्रीय जागरण में द्विवेदी जी द्वारा खरादे गए इन साहित्यकारों और संपादको - श्री गणेश जी, प० रमाशंकर अवस्थी, श्री उदयनारायण बाजपेयी, प० देवीप्रसाद शुक्ल ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  कानपुर से मुंशी दया नारायण निगम का 'जमाना' निकलता था, जो उर्दू की सर्वाधिक प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका थी और जिसमे प्रेमचन्द्र की कहानियाँ मुंशी नवाबराय उर्फ नौबतराय के नाम से छपती थी। प्रेमचन्द्र जी द्विवेदी जी के सानिध्य में आकर हिन्दी मे लिखने लगे थे।  आप उस समय सब डिप्टी इन्सपेक्टर शिक्षा विभाग तथा फिर राजकीय हाईस्कूल में अध्यापक पद पर रहे थे। कानपुर के राष्ट्रीय पुनर्जागरण में यह समय वरदान सिद्ध हुआ और इसने नवजीवन के संदेश कानपुर को दिए।  प्रेमचन्द्र जी नौकरी छोड़कर नवस्थापित श्री मारवाड़ी विद्यालय में प्रधानाध्यापक भी कई वर्ष तक रहे।  
नई पीढ़ी नया संदेश लेकर आती है और अपने उन्मुक्त प्रवाह से जड़ता का विनाश कर नए समाज और जीवन का सृजन करती है। बिना छात्र जागरण क्रान्ति हो नहीं सकती, और बिना उनके सहयोग के जन आन्दोलन अग्रसर नहीं हो सकता। सन् 1912 में श्री ब्रजनारायण सक्सेना द्वारा स्थापित हिन्दू विद्यार्थी धार्मिक सभा तत्कालीन कानपुर की एक मात्र सक्रिय प्रगतिशील राष्ट्रीय सेवा संस्था थी जिसकी साप्ताहिक बैठकें और वादविवाद गोष्ठियाँ सक्सेना साहब के मकान ला प्रेस के अहाते मे हुआ करती थीं। डा० बेनीप्रसाद, श्री हीरा सिंह, श्री शंभूनाथ सेठ, मुंशी राम नरायन सिंह, श्री गोविन्द तिवारी, श्री इकबालकृष्ण कपूर, भावी डी.ए.वी. के प्रोफेसर श्री रामदुलारे त्रिवेदी, श्री दुर्गाप्रसाद रोहतगी, श्री परशुराम मेहरोत्रा आदि इसके सक्रिय सदस्य थे। गुप्तचर विभाग की इस पर विशेष निगाह रहती थी। श्री रामकिशोर जी शुक्ल के संरक्षण में तथा ठाकुर गदाधर सिंह के निर्देशन में "आर्य कुमार सभा" नवचेतना के अंकुर विद्यार्थियों में बो रही थी। इसी के समान श्री लक्ष्मीकांत त्रिपाठी, श्री सत्यनारायण मिश्र, श्री लक्ष्मीनारायण शुक्ल, श्री गणेशदत्त शुक्ल, आदि के नेतृत्व मे "कुमार सनातनधर्म सभा" भी छात्रो के मध्य सक्रिय थी।  यह प्राचीन संस्कृति को नवयुग में विस्मृत होने से बचाने के निमित्त प्रयत्नरत थी। 
सन् 1912 में कांग्रेस का नेतृत्व बाबू नारायणप्रसाद निगम के हाथों में आया और उनके एक बस्ते में कांग्रेस तथा दूसरे में हिन्दू सभा विराजती थी, और इनकी गोष्ठियाँ वर्ष में कभी कभी हो जाया करती थीं। आपने कानपुर फ्रेन्डस एसोसिएशन की स्थापना की थी और इसके पास, राम गोला में स्थित एक अच्छा खासा पुस्तकालय था। प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के अनुसार ( अप्रकाशित संस्मृति समुच्य)" यह एसोसिएशन कानपुर की पुरानी कांग्रेस का एक प्रकार से यूथविंग था। इसके संचालन मे क्राइस्टचर्च कालेज के कुछ जागरुक एवं जिज्ञासु छात्र सक्रिय भाग लेते थे जिनमें प्रमुख थे महाशय काशीनाथ, स्वर्गीय डा० बेनीप्रसाद , स्व० जस्टिस शंभूनाथ सेठ, स्व० श्री गौरीशंकर त्रिपाठी,स्व० श्री हरिहरप्रसाद श्रीवास्तव, स्व० श्री पुरुषोत्तम गणेश केतकर, श्री द्वारिकाप्रसाद मिश्र, श्री कृष्ण विनायक फड़के, श्री रामनाथ सेठ, श्री मन्नीलाल अवस्थी आदि। " बाबू नारायणप्रसाद जी प्रबुद्ध एवं सौम्य वकील थे और मालवीय जी के अनन्य भक्त थे। आप कई वर्षों तक बार एसोसिएशन के प्रधानमंत्री तथा म्युनिसिपल बोर्ड के सदस्य रहे। आप नि:संदेह कानपुर के बीसवीं सदी के प्रथम चरण के सार्वजनिक तथा राजनैतिक जीवन के प्रबुद्ध अग्रदूतों में रहे। 

क्रमशः.... 

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रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।