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कानपुर का नवजागरण भाग छह- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण भाग छह- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

सन् 1913 मे बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा, प० शिवनारायण मिश्र वैद्य तथा प० यशोदानन्दन शुक्ल ने मिलकर साप्ताहिक प्रताप का प्रकाशन प्रारम्भ किया। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी उन दिनो मालवीय जी द्वारा संचालित साप्ताहिक अभ्युदय के सम्पादक थे। वे सहर्ष 'प्रताप' के सम्पादक होकर कानपुर आ गए।

"प्रताप" का प्रकाशनारम्भ 
सन् 1913 मे बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा, प० शिवनारायण मिश्र वैद्य तथा प० यशोदानन्दन शुक्ल ने मिलकर साप्ताहिक प्रताप का प्रकाशन प्रारम्भ किया। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी उन दिनो मालवीय जी द्वारा संचालित साप्ताहिक अभ्युदय के सम्पादक थे। वे सहर्ष 'प्रताप' के सम्पादक होकर कानपुर आ गए। 'प्रताप' का सम्पूर्ण कार्य, सम्पादकत्व के अतिरिक्त ग्राहको से चन्दा वसूल करना, डाक द्वारा अंको को भेजना आदि सब मित्र मंडली - प० ब्रह्मानंद तिवारी, प० गिरिजानन्दन त्रिवेदी आदि करती थी। " प्रताप "समग्ररूप से उग्र राष्ट्रीय संघर्ष का मुखर प्रतीक, जनभावना का प्रतिबिम्ब तथा शोषित और पीड़ित मानव का सबल संबल था। प्रताप कानपुर की राजनीति मे एक नया बवण्डर लेकर आया था और गणेश जी के सम्पादकत्व मे उसने अपने त्याग और उत्सर्ग से विद्रोही भारत के मानचित्र मे ईर्ष्यालू स्थान प्राप्त कर लिया था। गणेश जी केवल कलम के ही धनी नही थे बल्कि नेतृत्व और संगठन की उनमे विलक्षण प्रतिभा थी। सच तो यह है कि वे आधुनिक कानपुर जनक थे और उनके ऐसा नेता पाकर कानपुर धन्य हो उठा था। कलम और कर्म का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण कानपुर के किसी नेता मे आज तक नही मिला। वे धुन के पक्के और लगन के सच्चे थे। प्रताप राष्ट्र प्रेमियों का मन्दिर और तरुणों का गुरुकुल था। कई बार प्रताप की जमानतें जब्त कर ली गईं, और अनेक बार उस पर मानहानि के मुकदमे भी चले। किन्तु वह अपने सहज तेज से सदा अग्रसर रहा। विद्यार्थी के कानपुर में बस जाने से कानपुर में डा० मुरारीलाल और गणेशशंकर का युग आरम्भ होता है।
सन् 1913 में ही मछली बाजार की मस्जिद का कुछ भाग भावी मेस्टन रोड में आ जाने के कारण तथा उसके विरोध मे एकत्र दंगाई मुस्लिम भीड़ पर पुलिस की गोली चल जाने के कारण एक ऐसा अखिल भारतीय मुस्लिम आन्दोलन चला जिसके परिणाम स्वरूप ब्रिटिश शासन को चिन्ता हुई। इस आन्दोलन का नेतृत्व मौ. आज़ाद सुभानी, उस्मान साहब, कासिम साहब आदि ने किया। अन्त मे स्वयं वाइसराय लार्ड हार्डिग को कानपुर आना पड़ा और मुसलमानों के विरुद्ध मुकदमे वापस लेने पर ही यह मामला शान्त हुआ। मस्जिद के गिराये हुए भाग के बारे में समझौता हो गया। मुसलमानों की पैरवी के लिए पटना के प्रसिद्ध बैरिस्टर मजहरुल हक आये थे।
सन् 1914 में कानपुर थियोसाफिकल स्कूल की स्थापना जहाँ आजकल खत्री स्कूल है -श्री नारायण गणेश परांजपे के प्राचार्यत्व मे हुई। यह स्कूल राष्ट्रीय नवचेतना का दीप बनकर सम्पूर्ण कानपुर को प्रभासित करता रहा। श्री परांजपे स्वयं बड़े विद्वान अंग्रेजी के अच्छे वक्ता तथा सहानुभूतिपूर्ण शिक्षक और शासक थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से निबन्धित और सरकारी सहायता न लेने के कारण उसका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व था और उसके पाठ्यक्रम आदि पूर्णरूपेण राष्ट्रीय थे। इसी स्कूल के छोटे हॉल मे श्रीमती एनी बिसेंट, डा० जार्ज अरेन्डल, श्री श्रीनिवास शास्त्री, श्री जिनराजदास, गोवर्धनमठ के शंकराचार्य, श्री सी.वाई. चिन्तामणि, प्रभृति राष्ट्रप्रेमियों के भाषण हुए थे। जिससे न केवल छात्रों में बल्कि नगर में राष्ट्र प्रेम की लौ प्रज्वलित हुई थी। क्राइस्टचर्च कॉलेज हाल में इसी प्रकार श्रीमती सरोजिनी नायडू, कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर, इतिहासाचार्य चिन्तामणि विनायक वैद्य, प्रो. कर्वे आदि के भाषणों से कानपुर आप्लावित हुआ। थियोसाफिकल स्कूल कानपुर में सुव्यवस्थित एवं राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित आदर्श विद्यालय था। आज तक कोई भी विद्यालय इसके उच्च स्तर तक नहीं पहुँच पाया है। किन्तु यह गाँधी युग में अर्थाभाव से बन्द हो गया।

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....... क्रमश:

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रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।