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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। फ़रवरी 2025 के प्रेम विशेषांक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

डॉ० प्रभा दीक्षित की कविताएँ

डॉ० प्रभा दीक्षित की कविताएँ

तुम्हारी सभ्यता का चरम ऐश्वर्य
समाहित है भाषा में
तुम्हारी संस्कृति के
स्याह हिंसक पशु भी
विचरते हैं भाषा के जंगल में
इसी से तुम्हारी सभ्यता की
सबसे निचली सीढ़ी पर बैठी है औरतें
गालियों की पोशाक पहने
एक विद्रूप मुस्कान सजाए

एक- साझी उड़ान

मैं नहीं चाहती
वह अतिरिक्त सम्मान
जो एक स्त्री होने के नाते
तुम मुझे देते हो

मैं नहीं चाहती
वह नफ़रत और अपमान
जो एक स्त्री होने के नाते
तुम मुझे देते हो

मैं नहीं चाहती
वह कुत्सित दृष्टि
जो एक स्त्री होने के नाते
तुम मुझ पर रखते हो

मैं नहीं चाहती
संदेह की वह गंध
जो अपने पूरे समर्पण के बावजूद
मैं तुममे पाती हूँ

मैं नहीं चाहती
वह क्रूर आक्रोश
जो तुम मुझ पर
व्यक्त करते हो

मैं नहीं चाहती
प्यार का वह शिखर
जहाँ से तुम मुझे कभी भी
नफरत के विषैले सागर में
फेकने को स्वतंत्र हो

मैं नहीं चाहती
तुम्हारी वह अनुरक्ति जो तुम
अपनी होने के नाते मुझ पर रखते हो
और पराया होते ही एक अश्लील
गाली में बदल जाती है


मैं नहीं चाहती
तुम्हारी वह जुगुप्सा
जो एक औरत को
औरतपन के निजी पैमाने से नापती है

मैं नहीं चाहती
तुम्हारी वह ना समझी
जो सत्य के मर्म को समझे बिना
तुम्हारे मूड की गुलाम होती है

मैं चाहती हूंँ
तुम्हारे साथ
एक सहज इंसानी संबंध

मैं चाहती हूँ
तुम्हारे साथ
अपने सपनों की धरती में
एक साझा सपन रोपना

मैं चाहती हूँ
तुम्हारे साथ
अपनी मंजिल के आकाश में
परिंदों की भाँति
एक साझी उड़ान

मैं चाहती हूँ
हर रिश्ते में तुम्हारे साथ
एक ऐसे भाव तंतु से जुड़ना
जो हमारे दिलों के दरवाजे खोल सके

मैं चाहती हूँ
तुमसे एक ऐसी पहचान
जो मेरे वजूद को
मुझसे बेहतर समझ सके

आओ हम कदम बा कदम
साथ-साथ चलते हुए
रेतीले सागर के तट पर
अपने पद चिन्ह अंकित करें।

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दो- जंगल

कितने सरल होते थे कभी
हमारे तुम्हारे संबंध
पशु पक्षियों की तरह
सहज और उन्मुक्त
धरती से आकाश तक
बिना किसी ग्रंथि के

कैसा है सभ्यता का यह विकास
जब हम समानता की बातें कर रहे हैं
पर व्यवहार में कितना क्रूर
जंगल उग आया है
हमारे संबंधों में
और हम देख रहे हैं
एक दूसरे को
संदेह ईर्ष्या और नफ़रत छुपाए
प्यार भरी नज़रों से।

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तीन- रिश्ता फूल और खुशबू का

तुमने मुझे दिया है
एक ऐसा परिवेश
जिसमें संभव नहीं दिखती
मेरी मुक्ति
अधूरे हैं और अधूरे रहेंगे
तुम्हारी प्रगतिशीलता के दावे
छोड़ नहीं सकते तुम
अपनी स्वच्छंद सुविधाएँ
फिर क्यों नहीं सहन कर पाते हो विकास हमारी स्वाधीन चेतना का
हमारी सुविधाओं और कष्टो में
तुम शरीक़ होते हो
एक शासक की तरह
तात्कालिक सहानुभूति के साथ।
पर सच कहना अपनी पूरी चेतना से
क्या तुम सहन कर सकोगे
अपनी मर्ज़ी के खिलाफ़
मेरा ज़ोर से हँसना
फूल सा खिलना ...मुस्कुराना

तुम कब जानोगे
फूल और खुशबू के रिश्ते के समान ही गुथे हैं
हमारी खुशियों के सूत्र आपस में,
जिसे तुम्हारा पुरुष
तोड़ता रहा है सदियों से जाने अनजाने

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चार- नई भोर की अगवानी

जितने आत्मविश्वास से
धरती पर पाँव रखते हो तुम
उतने ही आत्मविश्वास से
धरती पर चल नहीं पाती हूँ मैं
जिस आत्मविश्वास से तुम
चलते हो गर्वोन्नत हो
उसी आत्मविश्वास से क्यों
सिर नहीं उठा पाती हूँ मैं?
तुम करके अनगिनत अपराध
जी लेते हो एक सम्मानित जीवन और
तरेरते हो आँखें सच के सूरज को
पर बिना किए कोई अपराध
एक अपराध बोध जीती हूँ मैं
बिना कुछ किये ही
कटघरे में खड़ी हूँ मैं
बिना कुछ कहे सुने ही
सजा हो जाती है मुझे
प्रतिबंधित हो जाती है मेरी हँसी
पेटेंट कानून में जकड़े किस की तरह
जिसे अपने हृदय की फसल में उगे
मुस्कान के बीजों को
आत्मीय हृदयों के खेतों में
बोने का अधिकार नहीं है

मुझे तो खरीदने ही होंगे
आयातित न्यून कोणीय मुस्कानों के बीज
किसी विदेशी कंपनी के दफ्तर से
और डालनी होगी अपनी गाढी कमाई
अपने मुनाफ़ाखोर क्रूर शासको की झोली में

मुझे क्यों जीना पड़ रहा है घर बाहर एक भयावह असुरक्षा में
मेरी बची-खुची अस्मिता गिरवी है
इस घर बाज़ार में
यूँ तो मैं अखबारों में अब साधारण स्त्री नहीं
इस भूमंडलीकृत विश्व की एक सशक्त देह बन गई हूँ
पर मेरी हैसियत बाज़ार का एक उपकरण मात्र रह गई है
मेरा अस्तित्व दैहिक दर्शन का पर्याय बन गया है
इसीलिए मैं "हम" बनकर
आधी ज़मीन की काली पर्तों में
अँधेरे के घने जंगलों में बो रही हूँ
शब्दों के क्रांति बीज
ये बीज धरती की पर्तों को तोड़कर उगेंगे
लाल गुलाबों की शक्ल में
नई भोर की अगवानी के लिए।

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पाँच- भाषा और औरतें

तुम्हारी सभ्यता का चरम ऐश्वर्य
समाहित है भाषा में
तुम्हारी संस्कृति के
स्याह हिंसक पशु भी
विचरते हैं भाषा के जंगल में
इसी से तुम्हारी सभ्यता की
सबसे निचली सीढ़ी पर बैठी है औरतें
गालियों की पोशाक पहने
एक विद्रूप मुस्कान सजाए

वैदिक विचारों से
उत्तर आधुनिक स्त्री विमर्श तक
साहित्य और संस्कृति की दिव्य प्रतिमा
खंडित हो जाती है एकाएक
तुम्हारी उत्तेजना के एक पल में
जब तुम्हारे नपुंसक आक्रोश की
चपेट में आ जाती है
कोई न कोई निर्दोष स्त्री
तुम्हारी गालियों की भाषा
या भाषा की गालियाँ
धारदार नहीं हो पातीं किसी
माँ बहन या अनाम स्त्री की
उपस्थिति के बिना
भाषा की दरारों से ही झाँकते हैं
हमारे प्रच्छन्न निहितार्थ
इसी से औरत को
गाली का पर्याय बनाकर
अपनी जुबान से
जब तुम बरसाते हो भाषाई कोडे़
सभ्यता की पीठ पर लगातार
तब उसके स्याह निशान
अक्सर उभर आते हैं
औरत की नंगी पीठ पर
उसके जीवन पर
जब कभी बदलेगी भाषा
बदलेगा शब्दों का अर्थबोध
सभ्यता के उच्चतम सोपानों पर
चढ़ेंगी औरतें
तब शायद गुम हो जाएँगे
इन कोडों के निशान
मनुष्य की जुबान से लेकर
औरत की नंगी पीठ और आत्मा से
और हमारी संस्कृति के जंगल में
शायद लुप्त हो जाएँ
हिंसक पशुओं की प्रजातियाँ।

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2 Total Review

वसंत जमशेदपुरी

06 April 2025

नारी विमर्श पर सार्थक लेखन के लिए हार्दिक बधाई

डॉ मधु प्रधान

03 April 2025

स्त्री विमर्श पर लिखी हृदयस्पर्शी रचनायें बधाई प्रभा दीक्षित जी सुन्दर रचनाओं से रूबरू कराने के लिए आभार " इरा "

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रचनाकार परिचय

प्रभा दीक्षित

ईमेल : dr.prabhadixit93@gmail.com

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

नाम- डॉ० प्रभा दीक्षित 
जन्मतिथि- 22 फरवरी 1962

जन्म स्थान- रायबरेली, उत्तर प्रदेश
शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत व अंग्रेजी,बी एड,पीएच डी हिंदी
संप्रति- प्राचार्या, श्री स्वामी नागर जी बालिका डिग्री कॉलेज,भरुआ सुमेरपुर हमीरपुर
प्रकाशन- कविता संग्रह 1,अधूरी कविता, 2 साझी उड़ान, 3
प्रेम करती हुई स्त्री
गजल संग्रह 4 रोशनी की इबारत,5 हर नजर भीगी हुई है
नवगीत संग्रह 6 गौरैया धूप की
गीत संग्रह 7,एक कविता हाथ मलती रह गई
स्त्री विमर्श 8 गूँगी कलम का बयान 9 स्त्री अस्मिता के सवाल
समीक्षा कृति 10 मुक्तिबोध व नागार्जुन का काव्य दर्शन 11 माधवीलता शुक्ला के काव्य में दार्शनिक चिंतन 12 हिंदी के समकालीन हस्ताक्षर
चिंतन कृति 13 भूमंडलीकरण का अमानवीय चेहरा 14 भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में संस्कृति दलित एवं
उत्तर आधुनिक विमर्श,
लघु कथा संग्रह 'जंगल रंग बदल' पुरस्कृत के अतिरिक्त अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में कवि कलम लेखन गीत गजल कविताएं लघु कथाएं शोध आलेख निबंध आदि प्रकाशित
प्रसारण आकाशवाणी लखनऊ आकाशवाणी महोबा व राँची दूरदर्शन से कविता वार्ता आदि प्रसारित
सम्मान व पुरस्कार-
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पुरस्कार एव सम्मान के अतिरिक्त अनेक साहित्यिक संस्थानों एवं संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत
पता- 128 / 222 y1 ब्लॉक किदवई नगर कानपुर 2080 11
मोबाइल- 9336702090